MESSENGER OF ART

  • Home
  • About Us
  • Contact Us
  • Contribute Here
  • Home
  • इनबॉक्स इंटरव्यू
  • कहानी
  • कविता
  • समीक्षा
  • अतिथि कलम
  • फेसबुक डायरी
  • विविधा

12.22.2022

डॉ. सदानंद पॉल की खोज "फर्मा का अंतिम प्रमेय (FLT) का 'आकृति संख्या' या नॉन-एफ.एल.टी. से आसान हल"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     22 December     अतिथि कलम, शोध आलेख     No comments   

आइए, मैसेंजर ऑफ आर्ट में आज पढ़ते हैं, डॉ. सदानंद पॉल के गणितीय सिद्धांत को...

डॉ. सदानंद पॉल 

डॉ. सदानंद पॉल की खोज "फर्मा का अंतिम प्रमेय (FLT) का 'आकृति संख्या' या नॉन-एफ.एल.टी. से आसान हल"

FLT प्रमेय को पहली बार 1637 में फ्रांसीसी अधिवक्ता और गणितज्ञ पियरे डि फर्मेट द्वारा अंकगणित की एक पुस्तक के एक पृष्ठ के हाशिये यानी मार्जिन में अनुमान लिए लिखा गया था और उन्होंने दावा भी किया था कि उनके पास सबूत है, किन्तु मार्जिन में इसे हल करने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है !

The FLT theorem was first written in 1637 by French lawyer and mathematician Pierre de Fermat to estimate the margins of a page of a book of arithmetic in the margins, and he also claimed that he had proof, but to solve it in the margin there is  not enough space for !

गणित की दुनिया का यह अद्भुत थ्योरम यानी फर्मेट या फर्मा का अंतिम प्रमेय (FLT) उनके निधन वर्ष 1665 से अनसुलझा है, जब उनके पुत्र द्वारा उक्त पुस्तक को आलमारी किसी कारणश: निकाली गई थी। आज के गणितज्ञ 17 वीं शताब्दी के गणितीय ज्ञान के समकक्ष ले जाने की नहीं सोचते हैं, इन्हीं कारणों से पियर डि फर्मा के प्रमेय का प्रमाण अब तक गणितज्ञ नहीं खोज सके हैं। इसे रायल सोसायटी, लंदन द्वारा इसे 1676 में प्रकाशित किया गया। फर्मा का हल 16 वीं शताब्दी के आसपास छिपा था, जिसे मैंने खोज निकाला है, वैसे कई गणित जानकारों, शिक्षकों और गणितज्ञों ने इनका हल व इनकी काट निकालने का दावा-प्रतिदावा किया है ! इसे मैंने (Sadanand Paul) "Non FLT" का नाम दिया है यानी यह वैसी प्रक्रियाएँ हैं, जिनसे FLT की काट हो। 

This amazing theorem ie Fermat's or Ferma's final theorem (FLT) of the world of mathematics has been uncertain since his death in the year 1665, when the aforesaid book was removed by his son for some reason.  Today's mathematicians do not think of carrying the equivalent of mathematical knowledge of the 17th century, for which reason mathematicians have not yet been able to find proof of Pier de Fermat's theorem.  It was published in 1676 by the Royal Society, London.  Format's solution was hidden around the 16th century, which I have discovered, by the way, many math experts, teachers and mathematicians have claimed to have solved it and cut it out!  I (Sadanand Paul) have named it "Non FLT", that is, the processes by which FLT is cut.

पाइथागोरस प्रमेय (p^2 + b^2) = h^2 को लेकर पियरे D' FERMAT ने एक कल्पना प्रस्तुत किया था कि उक्त प्रमेय की भांति (p^n + b^n) = h^n में n = कोई भी संख्या हो सकता है या नहीं ! इसे FERMAT का अंतिम प्रमेय FLT कहा जाता है, किन्तु इसपर ध्यान देने से स्पष्ट होता है कि यह "त्रिभुज आकृति" के सूत्र है, यथा-

With regard to the Pythagoras theorem (p ^ 2 + b ^ 2) = h ^ 2, Pierre D'FERMAT presented a hypothesis that n = any of the above theorems (p ^ n + b ^ n) = h ^ n.  Number may or may not!  This is called FLT the last theorem of FERMAT, but it is clear from this that it is the formula for the "Triangle shaped Figure Number" :-

(3^2) + (4^2) = 5^2, जो कि वर्ग (square) के लिए ऐसा ठीक है, किन्तु घन (cube) या चतुर्घात या पंचघात या कोई घात ऐसी स्थिति में त्रिभुजीय सोच लिए ही संभव हो सकता है, किन्तु किसी संख्या की सोच लिए नहीं, इसलिए Non FLT सोच के साथ ये सब "आकृति संख्या" होगी , यथा-

(6^3) + (8^3) + (10^3) = 12^3

(9^3) + (12^3) + (15^3) = 18^3

(4^4) + (6^4) + (8^4) + (9^4) + (14^4) = 15^4

(8^4) + (12^4) + (16^4) + (18^4) + (28^4) = 30^4

.....इत्यादि आकृति संख्याएँ हैं।

That (3 ^ 2) + (4 ^ 2) = 5 ^ 2, which is exactly the case for a square, but cube or quadrilateral or panache or any power can only be possible for triangular thinking.  Is, but not thinking of any number, so with non FLT thinking it will all be "Figure number", like-

(3^3)+(4^3)+(5^3) =6^3,

(6^3)+(8^3)+(10^3)=12^3,

(9^3)+(12^3)+(15^3)=18^3,

(12^3)+(16^3)+(20^3)=24^3

(4^4)+(6^4)+(8^4)+(9^4)+(14^4)=15^4,

(8^4)+(12^4)+(16^4)+(18^4)+(28^4)=30^4,

(12^4)+(18^4)+(24^4)+(27^4)+(42^4)=45^4 

  ..... etc  are figure numbers. 

घन हेतु चतर्भुज और चतुर्घात हेतु षट्भुज आदि के प्रमेय सूत्र आकृति संख्या यानी Figure Numbers कहलाती हैं, इसलिए (x^n) + (y^n) = (z^n) केवल n = 2 के रूप में ही संभव है n > 2 के रूप में नहीं !

Theorems of the quadrilateral for cube and hexagon for quadrilateral etc.  are called figure numbers i.e.  Figure Numbers, so (x ^ n) + (y ^ n) = (z ^ n) is possible only as n = 2 n> 2. not as !

Non FLT अबतक खोजी गई "Fermat's Last Theorem" की काट के लिए अत्यधिक सटीक और सबसे लघुत्तम प्रक्रिया (Shortest Process) है। ध्यातव्य है, मैंने अल्पायु में गणित विषय व गणितीय-सूत्रों पर पहली डायरी की रचना की थी, जो दो-दो संस्करण लिए 'सदानंद पॉल की गणित-डायरी' के नाम से प्रकाशित भी हुई थी।

Non FLT is the most accurate and shortest process for cutting "Fermat's Last Theorem" discovered so far.  It is noteworthy that I had composed the first diary on the subject of Mathematics and Mathematical Formulas at an early age, which was also published as 'Sadanand Paul's Mathematics Diary' with two editions.

नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं। इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि" हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।

Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

गणित में नोबेल पुरस्कार (The Nobel Prize in Mathematics)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     22 December     अतिथि कलम, शोध आलेख     No comments   

22 दिसंबर यानी 'राष्ट्रीय गणित दिवस',जो कि भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजम् के जन्मदिवस पर प्रतिवर्ष मनाई जाती है, लेकिन जहाँ आज तक उनकी नोटबुक के काफी सवालों के हल नहीं हो पाये हैं, तो वहीं हिंदी के भाषा विज्ञानी और गणितज्ञ डॉ. सदानंद पॉल ने गणित के संख्याओं पर विचित्र शोध कर रखा है। आइए,मैसेंजर ऑफ़ आर्ट में आज पढ़ते हैं उनके शोध को--

डॉ. सदानंद पॉल 

गणित में नोबेल पुरस्कार (The Nobel Prize in Mathematics)

"डॉ. सदानंद पॉल की खोज "अभाज्य संख्याओं से अभाज्य संख्या निकालने का एक अद्भुत कोरोनाइट फॉर्मूला" को गणित में नोबेल पुरस्कार तुल्य"

"The Nobel Prize In Mathematics to an Unique Coronait Formula to extract prime numbers from prime numbers discovered by Dr. Sadanand Paul"

लॉकडाउन में 'कोरोना' के आतंक से स्वयं को बचते हुए एकांतवास हो चुका हूँ, तभी तो गणित की दुनिया के आतंकित संख्या या अब तो इसे 'कोरोनाइट संख्याएँ' (Coronait Numbers) भी कह सकते हैं यानी अभाज्य संख्याएँ (Prime Numbers) निकालने के नवीन-सूत्र (New Formula) की खोज मैंने (सदानंद पॉल) कर लिया है। ध्यातव्य है, सम्पूर्ण गणितीय संसार अभाज्य संख्याओं से सुपरिचित भी है, तो इनमें उलझने के कारण दु:परिचित भी है । यह तो तयशुदा सच है कि अभाज्य संख्याएँ 'विषम' संख्या होती हैं, किंतु 2 को छोड़कर; क्योंकि 2 एकमात्र अभाज्य संख्या है, जो सम है । वहीं सभी विषम संख्याएँ अभाज्य संख्याएँ नहीं होती।

Having escaped from the terror of 'corona' in lockdown, I have lived in seclusion, then only the terrorized numbers of the mathematical world or now it can also be called 'Prime Numbers. I (Sadanand Paul) have discovered the New Formula 'Coronait Formula' to extract prime numbers from prime numbers. It is important to note that the entire mathematical world is also familiar with prime numbers, so it is also familiar because of the confusion.  It is certainly true that prime numbers are 'Odd' numbers, but excluding 2;  Because 2 is the only prime number, which is even.  At the same time, all odd numbers are not prime numbers.

मेरे द्वारा ईजाद किये गए फॉर्मूला यानी यह अभाज्य संख्याओं से ही अभाज्य संख्याओं को जानने व निकालने को लेकर है, यह लॉकडाउन की उपलब्धि कही जा सकती है । लेखन और गणित के प्रति रुचि है । अगर लेखन के कारण 'लेखक' कहला सकते हैं, तो गणितीय अन्वेषण के कारण 'गणितज्ञ' क्यों नहीं कहला सकता हूँ ! आइये, अभाज्य संख्या जानने या आगामी अभाज्य संख्या जानने के लिए मैंने कुछ प्रमेयों को तलाशा है, यह सूत्रबद्ध है:-

The formula that I have developed, it is about knowing and removing prime numbers from prime numbers itself, it can be called a lockdown achievement. An Interested in writing and mathematics. If writing can be called 'writer', then why can't I be called 'Mathematician' because of mathematical investigation !  Come, I have searched some theorems to know the prime number or the upcoming prime number, it is formulated:-

कंडिका- 1.

प्रथम से लेकर सभी क्रमिक अभाज्य संख्याओं (Consecutive Prime Numbers) को आपस में गुणा करते हैं,  जहाँ तक के लिए अभाज्य संख्याओं को जानना चाहते हैं, किंतु अंक 5 को इस गुणन में शामिल नहीं करते हैं । याद रहे, प्रथम अभाज्य संख्या 2 अंक है। यथा-

2 × 3
2 × 3 × 7
2 × 3 × 7 × 11
2 × 3 × 7 × 11 × 13
2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17
2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19

Rule of Method - 1

Multiply all the Consecutive Prime Numbers from the first to the nearest, so far as the prime numbers want to know, but the digits do not include 5 in this multiplication.  Remember, the first prime number is 2 digits. As-

2 × 3
2 × 3 × 7
2 × 3 × 7 × 11
2 × 3 × 7 × 11 × 13
2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17
2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19

कंडिका- 2.

कंडिका- 1 को लेकर प्राप्त गुणनफल में 1 जोड़ते हैं, तो यह अभाज्य संख्या के रूप में प्राप्त होता है। यथा-

2 × 3 = 6 +1 = 7 (अभाज्य संख्या)

कंडिका- 1 से उसी तरह :-

42 + 1 = 43 (अभाज्य संख्या),
462 + 1 = 463 (अभाज्य संख्या),
6006 + 1 = 6007 (अभाज्य संख्या),
102102 + 1 = 102103 (अभाज्य संख्या),
1939938 + 1 = 1939939 (अभाज्य संख्या)

Rule of Method - 2

 If we add 1 to the product obtained by taking Rule of Method-1, then it is obtained as a prime number.  As-

 2 × 3 = 6 +1 = 7 (prime number)

 In the same way as from Condica-1:

 42 + 1 = 43 (prime number),
 462 + 1 = 463 (prime number),
 6006 + 1 = 6007 (prime number),
 102102 + 1 = 102103 (prime number),
 1939938 + 1 = 1939939 (prime number)

कंडिका- 3.

कंडिका-2 को लेकर गुणनफल में 1 जोड़ने पर परिणामी संख्या का इकाई अंक अगर 0, 5 या सम संख्या आए, तो यह सीरीज अभाज्य संख्या नहीं होंगे। इसलिए इसतरह के सीरीज को छोड़ आगामी सीरीज में आएंगे, किंतु क्रमिक अभाज्य संख्याओं के गुणन में किसी भी क्रमिक अभाज्य संख्याओं को गुणा करने से वंचित नहीं करेंगे। यथा-

2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19 × 23 = 44618574 + 1
= 44618575 में इकाई अंक 5 है, इसलिए यह भाज्य संख्या है।

अब चूंकि अभाज्य संख्या '23' के कारण गुणनफल और योगफल से जो संख्या प्राप्त होती है, वह संख्या 'भाज्य' होने के बावजूद हम अगले चरण (सीरीज) के लिए '23' नामक अभाज्य संख्या का उपयोग निश्चित करेंगे, उसे त्यागेंगे नहीं। यथा-

2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19 × 23 × 29 = 1293938646 + 1
= 1293938647 अभाज्य संख्या प्राप्त होती है।

Rule of Method - 3

Adding 1 to the product by taking Rule of Method-2, if the unit digit of the resulting number is 0, 5 or even, then it will not be a series prime number.  Therefore, leaving this type of series will come in the next series, but will not deprive multiplication of any consecutive prime numbers in multiplication of successive prime numbers.  As-

 2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19 × 23 = 44618574 + 1
 = 44618575 has unit digit 5, so it is a composite number.

 Now since the number obtained from the product and sum is due to the prime number '23', we will decide to use the prime number called '23' for the next step (series), even if the number is 'divisible', not discard it.  As-

 2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19 × 23 × 29 = 1293938646 + 1
 = 1293938647 The prime number is obtained.

कंडिका- 4.

इसतरह के सीरीज के सभी गुणनफल भाज्य संख्या होंगे, किंतु उपर्युक्त कंडिकाओं में उद्धृत शर्त्तानुसार गुणनफल में +1 करके 'अभाज्य संख्या' तलाशेंगे ! यथा-

2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19 × 23 × 29 × 31
= 40112098026 + 1 = 40112098027 अभाज्य सं. (PN) है।

2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19 × 23 × 29 × 31 × 37
= 1484147626962 + 1 = 1484147626963 (PN)

Rule of Method - 4

All the product of such series will be a composite number, but by finding the condition quoted in the above mentioned terms, find the 'prime number' by +1 in the product!  As-

 2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19 × 23 × 29 × 31
 = 40112098026 + 1 = 40112098027 Prime No.  (PN).

 2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19 × 23 × 29 × 31 × 37
 = 1484147626962 + 1 = 1484147626963 (PN)

कंडिका- 5.

कोई भी संख्या अभाज्य संख्या है या नहीं, इसे जानने के लिए सर्वप्रथम उस संख्या का वर्गमूल निकाल लीजिए । प्राप्त वर्गमूल संख्या में से अगर दशमलव के बाद अंक हो, तो उसे उपयोग में नहीं आते हैं, अपितु दशमलव से पहले जो संख्या आती है, उस संख्या को +1 कर जो संख्या प्राप्त होती है, उस संख्या सहित उनके नीचे की तमाम संख्याओं  से भाज्य करने का प्रयास करते हैं । ज्ञात हो, सम संख्या तथा 0 और 5 'इकाई' अंक वाली संख्या स्वाभाविक है कि वह भाज्य होंगे । इसे छोड़कर अन्य सभी संख्याओं या अंकों से कटाने का प्रयास करेंगे, नहीं विभाजित होते हैं, तो वे संख्या अभाज्य होंगे, यथा-

37 का वर्गमूल = 6.0827625303 में 6 को रखते हैं, फिर 6+1 करते हैं, जो कि 7 प्राप्त होता है । अब 7 सहित उनके नीचे 1, 2, 3, 4, 5, 6 और 7 है, इन अंकों से 37 को विभाजित करने का प्रयास करते हैं, जो कि किसी से नहीं कटते हैं । विदित है, 37 सम संख्या भी नहीं है । इसलिए नियमानुकूल 1, 2, 4, 5, 6 से 37 को नहीं कटाते हैं, यह काम आसान के लिए भी है।

123 का वर्गमूल = 11.0905365064 में 11 रखते हैं, फिर 11+1 करते हैं, जो कि 12 प्राप्त होता है । अब 12 सहित उनके नीचे 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 है, इन अंकों से 123 को विभाजित करने का प्रयास करते हैं, जो कि 3 से कट जाते हैं । विदित है, 123 सम संख्या नहीं है । इसलिए नियमानुकूल 1, 2, 4, 5, 6, 8, 10, 12 से 123 को नहीं कटाते हैं, यह काम आसान के लिए भी है।

Rule of Method - 5

To find out whether a number is a prime number or not, first find the square root of that number.  If the square root number obtained is numbered after the decimal, it is not used, but the number that comes before the decimal, by +1 the number that is received, including all the numbers below them.  Let's try to divide.  Let it be known that even numbers and numbers with 0 and 5 'unit' digits are natural that they will be divisible.  Except this, we will try to deduct from all other numbers or numbers, if not divided, then those numbers will be prime, as-

 Square root of 37 = 6.0827625303 Put 6 in it, then do 6 + 1, which is 7.  Now they have 1, 2, 3, 4, 5, 6 and 7, including 7, trying to divide 37 by these digits, which are not cut off from anyone.  It is known that 37 is not even even.  So rules do not cut 1, 2, 4, 5, 6 to 37, this is also easy to do.

 Square root of 123 = 11.0905365064, put 11, then 11 + 1, which is 12.  Now they have 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12, including 12, trying to divide 123 by these digits, which are cut by 3.  It is known that 123 is not an even number.  So rules do not cut 1, 2, 4, 5, 6, 8, 10, 12 to 123, this is also easy to do.

कंडिका- 6.

आपवादिक स्थितियाँ कंडिका के साथ आबद्ध हो New PN के  लिए नियम और शर्त्तें यथाप्रसंगश: सम्मिलित की जाएगी!

Rule of Method - 6

In exceptional circumstances, be bound with the condyle, the rules and conditions for New PN will be incorporated as soon as possible ! The above approach can also be called Coronait Formula.


नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं। इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि" हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।





Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

7.08.2022

'डिलीवरी ब्वॉय भी इंसान हैं...'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     08 July     अतिथि कलम     No comments   

आइये, मैसेंजर ऑफ़ आर्ट में पढ़ते हैं, सुश्री भावना ठाकुर 'भावु' की वर्त्तमान परिदृश्य पर लिखित आलेख.......

सुश्री भावना ठाकुर 'भावु' 

आजकल ऑनलाइन शॉपिंग और बाहर का खाना खाने का शौक़ हम लोगों पर कुछ ज़्यादा ही चढ़ा है, जिसकी वजह से घर-घर फ़टाफट खाना और सामान पहुँचाने वाली एप्स में जैसे प्रतियोगिता चल रही है। कोई आधे घंटे में पिज्जा पहुँचाने की एनाउंसमेंट करती है, तो कोई पंद्रह मिनट में तो कोई दस मिनट में। हम भूख के मारे जो सबसे कम समय में खाना डिलीवरी करते हैं, ऐसी एप पर खाना ऑर्डर करते हैं, पर जब हम Zomato और Swiggy जैसे फूड एग्रीगेटर्स से अपना खाना ऑर्डर करते हैं और डिलीवरी बॉय हमारे दरवाजे पर समय पर नहीं पहुंचता तब हम देर से आने के लिए उसे ऐसे डांटते हैं, जैसे उसने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो, उनकी शिकायत कर देते है जैसे वह इंसान नहीं मशीन है। कई कंपनी हमारी शिकायत पर डिलीवरी ब्वाॅय को या तो नौकरी से निकाल देते है या सैलरी काट लेती है। उन लोगों के बारे में कभी आपने सोचा है, आप बड़े घरों में बैठकर ऑर्डर देने में माहिर है, पर उस नौकरी से उस लड़के का घर चलता है या स्कूल कालेज की फ़ीस निकलती है। महज़ छोटा समझकर किसी के साथ ऐसा व्यवहार अशोभनीय है। हर इंसान को अपना आत्मसम्मान प्यारा होता है।
ऑनलाइन शॉपिंग में कई बार कुछ ग्राहकों का रवैया डिलीवरी ब्वॉयज़ के प्रति काफ़ी खराब होता है। सर्विस में कमी, उत्पाद के पहुंचने में हुई देरी या सामान में खराबी का सारा गुस्सा डिलीवरी ब्वॉय पर उतरता है, जिसको शायद यह भी मालूम नहीं होता कि आपने मंगवाया क्या है ?
हम लोगों में इतना पेशन, इतनी मानवता नहीं बची, उसके देर से आने का कारण जानें, उनसे पूछे कि क्यूँ देर हुई ? हो सकता है किसी दुर्घटना की वजह से लेट हो गए हो, कोई हेल्थ इमरजेंसी आ गई हो या वह लड़क बीमार हो या ट्रैफिक जाम में फंसा हो। हम इतने स्वार्थी बन गए है कि किसी की मजबूरी का गलत फ़ायदा उठाने लगे है। समय पर खाना नहीं पहुँचा तो नौकरी बचाने के चक्कर में डिलीवरी ब्वॉय कई बार एक्सिडेंट का शिकार बन जाते हैं, उनके हाथ पैर टूट जाते हैं या जान भी जा सकती है। सोचिए वह भी किसी के जिगर का टुकड़ा होता है या हो सकता है घर में एक ही कमाने वाला हो, अगर हमें जल्दी खाना पहुँचाने के चक्कर में उसके साथ अनहोनी हो जाती है तो क्या हम खुद को माफ़ कर पाएंगे ? जब ऑनलाइन सुविधा नहीं थी तब हम सारी चीज़ें लेने खुद ही दुकानों और  रेस्टोरेंट तक जाते थे ,उसमें समय लगता ही था। तो आज भी क्यूँ न थोड़ा इंतज़ार कर लें, देर से आने पर डिलीवरी ब्वाॅय से कारण पूछें, उसे पानी पिलाए और हंसकर कहें कि it's ok जिससे एक संदेश भी फैलेगा और it's ok सुनते ही उस लड़के के चेहरे पर जो सुकून मुस्कुराएगा, उसे देखकर खुद पर भी गर्व महसूस होगा। 


नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं। इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

7.03.2022

'आज फिर चांद खामोश है...'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     03 July     अतिथि कलम     1 comment   

आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, कवयित्री नन्दिनी श्रीवास्तव की असाधारण रचना......

सुश्री नन्दिनी श्रीवास्तव

बादलों को कहाँ होश है
आज फिर चाँद ख़ामोश है

प्यार मिलता हमें भी मगर
इन लकीरों में कुछ दोष है !

नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email-messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।
Read More
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg

6.23.2022

'माँ की महिमा...'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     23 June     अतिथि कलम     No comments   

आइये, मैसेंजर ऑफ़ आर्ट में पढ़ते हैं, सुश्री भावना ठाकुर 'भावु' की हृदयस्पर्शी रचना.......

सुश्री भावना ठाकुर 'भावु'


जिस कोख में नौ महीने रेंगते मैं शून्य से सर्जन हुई उस माँ की शान में क्या लिखूँ, लिखने को बहुत कुछ है पर आज बस इतना ही लिखूँ कि, लिखी है मेरी माँ ने अपनी ममता की स्याही से मेरी तकदीर, रात-रात भर जाग कर मेरी ख़ातिरदारी में अपनी नींद गंवाई है कहो कैसे कह दूँ की मैं कुछ भी नहीं।"

"माँ को दिल में जगह न दो ना सही पड़ी रहने दो घर के एक कोने में पर वृध्धाश्रम की ठोकरें मत खिलाओ माँ की जगह वहाँ नहीं" कैसे कोई अपनी जनेता के साथ ऐसा व्यवहार कर सकता है, जिसकी कोख में नौ महीने रेंगते बूँद में से तीन चार किलो का पिंड बना हो, जिनके खून का एक-एक कतरा पीकर पला बड़ा हो उस माँ को वृध्धाश्रम की ठोकर खाने के लिए छोड़ते कलेजे पर करवत नहीं चलती होगी?
मातृ दिवस पर त्याग की मूर्ति को चंद शब्दों में ढ़ालकर कृतघ्नता व्यक्त कैसे करें कोई? माना कि एक दिन पर्याप्त नहीं होता माँ के गुणगान गाने के लिए, पर जिसने भी मातृ दिवस मनाने का ये चलन या परंपरा बनाई उनको कोटि-कोटि धन्यवाद। अगर ये खास दिन नहीं होता तो हम माँ के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त करने से बिलकुल चूक जाते। कम से कम इसी बहाने माँ के नि:स्वार्थ त्याग को सराहने का हमें मौका तो मिलता है। बाकी तो माँ से हम लेनदार की तरह लेते ही रहते है।

बच्चों के लिए उपर वाले ने दिया अनमोल उपहार और ज़िंदगी के रंगमंच का एक अहम किरदार होती है माँ। माँ चाहे अनपढ़ ही क्यूँ न हो अपने बच्चों को जीवन जीने का हर सबक सिखाती है। संस्कारों के गहनों से सजाती है,  किताब महज़ ज्ञान पाने का ज़रिया है, पर माँ अपने बच्चों को किताबों में छिपी ज़िंदगी की असली हकीकत का सार समझाते हर चुनौतियों से अवगत कराते सक्षम योद्धा बनाती है। ज़िंदगी गाथा है संघर्षों की उस गाथा का भार हल्का कैसे हो उस राह पर ऊँगली पकड़ते ले जाती है। 

क्या लिखें क्या-क्या होती है माँ? शक्ति और सहनशीलता का स्त्रोत, परम्परा और आधुनिकता का अभूतपूर्व संगम, जीवंतता और निर्लेपता का विलक्षण रुप, एक गतिशील भाव, धर्म और कर्म का सुविचारित मिश्रण और बच्चों के लिए कुछ भी कर गुज़रने का जज़्बा होती है माँ।

होते है बच्चें टहनी से नाजुक उनको बेहतरीन बरगद बनाती है माँ, ईश्वर की रचना से अन्जान बालक को प्रार्थना के ज़रिए अमूर्त रुप से मिलवाती है माँ..माँ, माँ है, माँ गुरु है, माँ पिता है और माँ सखा भी है, ज़िंदगी के आत्मबोध से लेकर मृत्युबोध की महिमा भी समझाती है। पास बिठाकर गले लगाकर बच्चों के झरने से अडोल मन में संस्कारों का सागर सिंचती है, बच्चों के भविष्य को जो झिलमिलाता बनाता है वह रोशनी का टुकड़ा है माँ और ज़िंदगी के हर रंगों से बच्चों को रुबरु करवाता कैनवास है।

अपने बच्चों की हर गलती को माफ़ करने का मशीन होती है माँ। माँ का कोई पर्याय नहीं, जब नहीं रहती तब ज़िंदगी में एक शून्यावकाश छा जाता है, ऐसा लगता है जैसे ज़िंदगी की चुनौतियों से लड़ने का हथियार चला गया हो। माँ बच्चों के जीवन की बुनियाद होती है, जीवन सफ़र की राहबर होती है माँ के बिना संसार ही अधूरा है। माँ का दिल कभी मत दुखाना, बच्चों के लिए माँ की मांगी दुआ उपरवाले की चौखट तक अचूक पहुँचती है। जब दिल दुखता है तब माँ बच्चों को बद दुआ कभी नहीं देती, पर जब एक माँ की आह निकलती है तो ईश्वर की आत्मा रोती है और उस रुदन का असर न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। 

नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं। इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email-messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।
    Read More
    • Share This:  
    •  Facebook
    •  Twitter
    •  Google+
    •  Stumble
    •  Digg

    6.13.2022

    'जिन लोगों की आँखों में सपने होते हैं...'

     मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     13 June     अतिथि कलम     No comments   

    आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, लेखिका वर्षा गुप्ता 'रैन' की विचारफलक........

    लेखिका वर्षा गुप्ता 'रैन' 

    जिन लोगों की आँखों में सपने होते हैं, उनकी अपनी अलग ही दुनिया होती है। वो उसी में रहते हैं, उसी में जीते हैं, बाहरी दुनिया उनसे कटी-कटी सी रहती है या फिर वो उस दुनिया में मिक्सअप नहीं हो पाते।

    नमस्कार दोस्तों ! 

    'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।

    Read More
    • Share This:  
    •  Facebook
    •  Twitter
    •  Google+
    •  Stumble
    •  Digg

    6.10.2022

    'बूँदें...'

     मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     10 June     अतिथि कलम     No comments   

    आइये, मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट में पढ़ते हैं, निबंधकार और संपादक श्रीमान पंकज त्रिवेदी की रचना.......

    बूँदे-
    जब भी गिरती है
    थिरकते पत्तों पर
    मन भी नाचता है

    बूँदे-
    जब भी गिरती है
    प्यासे के होंठों पर
    परितृप्ति होती है

    बूँदे-
    जब गिरती है
    प्यार की गहराई में
    जिस्मानी लहर होती है

    बूँदें-
    कभी यहाँ वहाँ गिरे
    कभी मिट्टी सी सुंगध
    बोआई हो जाती है !


    नमस्कार दोस्तों ! 

    'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email-messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।


    Read More
    • Share This:  
    •  Facebook
    •  Twitter
    •  Google+
    •  Stumble
    •  Digg

    5.06.2022

    'आज के समय में ज्ञान नई पीढ़ी से मिलकर ही बढ़ता है...'

     मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     06 May     अतिथि कलम     No comments   

     आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, श्रीमान प्रभात रंजन के विचारफलक........

    श्रीमान प्रभात रंजन 

    पिछले एक सप्ताह के दौरान किन्ही कारणों से अपने विश्वविद्यालय के अनेक प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं से मिला। सभी ग्रेजुएशन स्तर के थे। जिस बात ने बहुत प्रभावित किया उनमें से अधिकतर तकनीकी रूप से दक्ष थे और तकनीक के माध्यम से हिंदी में जितनी संभावनाएँ उभर रही थीं उनसे अच्छी तरह से वाक़िफ़ थे। डिजिटल संसार की संभावनाओं और सीमाओं को बहुत अच्छी तरह समझने वाले लोग थे। यही नहीं समकालीन साहित्य और युवा लेखकों के बारे में भी उनका ज्ञान अच्छा था। कुछ ने इसको लेकर बहुत मज़ेदार टिप्पणियाँ की कि किस लेखक की मार्केटिंग की रणनीति क्या है ? सभी की जानकारी से कुछ न कुछ प्रभावित हुआ, लेकिन इस बात से आश्चर्यचकित रहा कि उनमें से किसी ने हिंदी साहित्य की परम्परा को लेकर कोई बात नहीं की। एक समूह में मैंने बुकर पुरस्कार के लिए नामांकित पहली हिंदी किताब की चर्चा की तो किसी ने भी रेत समाधि पढ़ने में या लेखिका गीतांजलि श्री के बारे में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं दिखाई। जबकि मैं निजी तौर इस घटना को आधुनिक हिंदी की आज तक की सबसे बड़ी घटना मानता हूँ। ख़ैर, एक बात समझ में आई कि हिंदी की नई पीढ़ी भविष्य का मुक़ाबला करने के लिए पूरी तरह तैयार है, लेकिन हिंदी साहित्य की विराट परम्परा के बारे में वे कोर्स से बाहर हटकर अधिक बातचीत नहीं करते। न उनको अधिक पढ़ते हैं। एक बात और फेसबुक पर ‘अच्छा’ लिखने वाले हर लेखक के बारे में उनको अच्छे से पता है।

    एक बात और जिस युवा लेखक मैं सबसे लोकप्रिय समझ रहा था असल में उसकी लोकप्रियता उतनी नहीं है बल्कि वह लेखक सबसे अधिक लोकप्रिय है जिसको मैं ख़ास तरजीह नहीं देता था। नाम तो नहीं लिखूँगा लेकिन एक बात है कि आज के समय में ज्ञान नई पीढ़ी से मिलकर ही बढ़ता है।


    नमस्कार दोस्तों ! 

    'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं। इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email-messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।
    Read More
    • Share This:  
    •  Facebook
    •  Twitter
    •  Google+
    •  Stumble
    •  Digg

    1.11.2022

    'लोग बदल सकते हैं...'

     मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     11 January     अतिथि कलम     No comments   

    नूतन वर्ष 2022 में 'मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' के आदरणीय पाठकगण ! आइये, पढ़ते हैं; सुश्री ज्योति राजपूत के सुविचारों को....... 

    सुश्री ज्योति राजपूत

    हालात बदल सकते हैं, लोग बदल सकते हैं, परन्तु आप बदलेंगे की नहीं, ये आप निश्चित करते हैं। लोग और परिस्थितियां हमारे नियंत्रण से बाहर हैं, वो अपनी प्रकृति के अनुसार ही चलेंगे। समय के साथ ये अच्छे और बुरे भी होंगे पर उसमें आपकी स्थिरता और मानवता का साथ किसी भी स्थिति में न छोड़ने का संकल्प बुरे-से-बुरे हालातों में भी अपने मार्ग पर बने रहने की शक्ति आपमें स्वयं उत्पन्न करेगा, परन्तु श्रद्धा और समर्पण इस मार्ग की अनिवार्यता है, बाकी ये मार्ग ऐसा है, जहाँ मान-सम्मान, पाना-खोना इन बातों का कोई मतलब ही नहीं बनता, आप अपने कार्यों की धुन में ही मस्त और व्यस्त !

    नमस्कार दोस्तों ! 

    'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं। इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।

    Read More
    • Share This:  
    •  Facebook
    •  Twitter
    •  Google+
    •  Stumble
    •  Digg

    1.01.2022

    'भारतीय पंचांग आधारित वर्ष का भी स्वागत हो...'

     मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     01 January     अतिथि कलम     No comments   

    'मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' के आदरणीय पाठकगण को नूतन, नवकोंपल, नवप्रभात, नवीन, नवत्सर, नवनीत, नवोत्पन्न, नवजागरण, नवभ्युदय, नवसंस्कृति, नवोत्थान, नई, नवागंतुक, नवस्फूर्ति, नूतनाशा, नवपेक्षा, नवश्रृंगार, नवरूप, नवरंग, नवरास, नवविनोद, नवलीन नववर्ष 2022 की नवकामनायें। आइये, 2022 की शुरुआत करते हैं, श्रीमान डॉ. सदानंद पॉल के लघु आलेख से.......

    डॉ. सदानंद पॉल

    नूतन वर्ष 2022 का स्वागत है, तथापि जब भी अंग्रेजी नववर्ष आते हैं, तो इस नववर्ष के प्रथम दिवस का लोग बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। ज्ञात हो, यह ग्रेगेरियन व अंग्रेजी ईसाइयत कैलेंडर पर आधारित प्रथम दिवस है। भारतीय पंचांग का मूलभाव विक्रमी संवत लिए है, जिनका प्रथम दिवस चैत्र कृष्ण पक्ष प्रथमा है, तो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा शक संवत का प्रथम दिवस है। बांग्ला संवत में संक्रांति के हिसाब से नववर्ष मनाई जाती है, जो पोइला वैशाख कहलाता है, जो कभी 14 अप्रैल, तो कभी 15 अप्रैल को मनाई जाती है। उत्तर भारत में फसली सन संभवत: 13 अप्रैल को प्रथम दिवस के रूप में मनाई जाती है ! कैलेंडर पर गणित लेखक गुणाकर मुले और सदानंद पॉल ने अनथक मेहनत कर सार्थक कार्य किए।

    नमस्कार दोस्तों ! 

    'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं। इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।

    Read More
    • Share This:  
    •  Facebook
    •  Twitter
    •  Google+
    •  Stumble
    •  Digg

    10.07.2021

    'भादो की धूप...'

     मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     07 October     अतिथि कलम     No comments   

    आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, प्रकृति प्रेमी कवि व लेखक श्री मिथिलेश कुमार राय की शानदार रचना 'भादो की धूप'.......

    श्री मिथिलेश कुमार राय 
    कक्का भादो की धूप को लेकर बैठे हुए थे. धूप थी भी ऐसी कि लोगों से अपने बारे में जबरदस्ती चर्चे करवा रही थी. वे बता रहे थे कि किसी किस्से में एक जगह जिक्र आता है कि भादो की धूप में एक ही दिन में कुम्हार के सारे बर्तन पक गए थे. तब से इस धूप की बड़ी प्रसिद्धि है. उन्होंने यह भी बताया कि इधर की एक कहावत में भादो की धूप की तुलना सौतन के बोल से की गई है, जो देह में आग लगा देती है !
    धान रोपकर फारिग हुए गांव के लोग अब जूट सूखाने में लगे हुए थे. सामने खिली धूप में सोना जूट के गुच्छे चांदी सी चमक रही थी. हम पीपल के नीचे बने बांस के मचान पर बैठे अपने-अपने देह से पसीना सूखा रहे थे. कक्का कह रहे थे कि प्रकृति के जो भी नियम अस्तित्व में हैं वे सब के सब खेतिहरों को ध्यान में रखकर ही बनाए गए हैं. जैसे इस भादो की तीखी धूप को ही ले लो. वैसे तो भादो भी बारिश का ही महीना है लेकिन कभी-कभी इस महीने में धूप इतनी तीखी निकलती है कि इसके सामने लोगों को जेठ की धूप बौनी नजर आने लगती है. यह सब अकारण नहीं है. खेतिहर को धान के लिए बारिश और जूट को सूखाने के लिए धूप की जरूरत होती है. प्रकृति भादो में इन दोनों बातों का ध्यान रखती हैं. वे बता रहे थे कि भादो में जब घनघोर बारिश हो रही होती है तो खेतिहर अपने-अपने खेतों में झूमते धान के विरवे की कल्पना करते हैं और मंद-मंद मुस्कुराते रहते हैं. वही जब बादल के टुकड़े हवा के दबाव में कहीं और सरक जाते हैं और धूप तीखी होकर निकल आती है तो वे जूट को सूखाने निकल पड़ते हैं. कक्का कह रहे थे कि खूब तीखी धूप हो तो जूट अच्छे से सूखता है और चमकने लगता है. तब व्यापारी दो रुपये अधिक देकर भी उसे खरीदने में नहीं हिचकते हैं.

    भादो में जब आसमान साफ होता है और काले-काले बादल के टुकड़े को हवा कहीं और उड़ाकर पहुंचा देती है, तब सूरज का रूप देखते ही बनता है. कक्का की माने तो तब जो धूप उगती है उसके सामने मई-जून की धूप पानी भरती नजर आती है. हालांकि भादो की धूप की चर्चा करते हुए उन्होंने यह भी बताया कि यह स्थाई नहीं होती. अभी प्रचंड धूप है तो यह जरूरी नहीं होता कि उसकी प्रचंडता दिन भर स्थिर ही रहेगी. जब तक हवा और बादल के टुकड़ों का ध्यान उस पर नहीं जाता है, तभी तक वह अपनी मनमानी करती है. हवा जैसे ही लौटती है, बादल के टुकड़े यहां-वहां से जमा होने लगते हैं. धूप बादलों का जमावड़ा देखते ही दूम दबाकर भाग जाती है और हमारे सामने रिमझिम वाला सुहाना मौसम उपस्थित हो जाता है.

    असल में पांच-सात दिनों की लगातार बारिश के बाद दो दिनों से यह तीखी धूप निकल रही थी और इसको देखकर मनुष्य ही नहीं पेड़-पौधे और खेतों में लगी धान की फसल भी राहत पाती नजर आ रही थी. किसी के चेहरे पर भादो की इस तीखी धूप को लेकर कोई मलाल नहीं था. सब मुग्ध थे और आपस में ठिठोली भर कर रहे थे !

    कक्का भी तो सूखते जूट की ओर बार-बार निहारकर भादो की इस धूप को धन्यवाद दे रहे थे !

    नमस्कार दोस्तों ! 

    'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email-messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।


    Read More
    • Share This:  
    •  Facebook
    •  Twitter
    •  Google+
    •  Stumble
    •  Digg

    9.07.2021

    'वर्त्तमान सच' (संस्मरण यात्रा)

     मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     07 September     अतिथि कलम     No comments   

    आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में 'अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस' के शुभ-अवसर पर पढ़ते हैं, लेखिका ऋतु सिंह की संस्मरण यात्रा व वर्त्तमान सच.......

    लेखिका ऋतु सिंह
    सात साल पहले जब मैं इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाया करती थी तब एक बार हम सब lecturers के साथ founder की मीटिंग रखी गई, जिसमें ये बातें डिस्कस की जानी थी कि स्टूडेंट्स की performance किस तरह और अच्छी की जा सकती है और क्या-क्या परेशानियां वे face कर रहे हैं...
    कई लोगों ने जवाब दिया कि सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि जो ग्रामीण अंचल से आने वाले स्टूडेंट्स हैं उन्हें भाषा समझने और लिखने में बहुत परेशानी होती है इसलिए उनकी performance गिर जाती है।
    जब मेरी बोलने की बारी आई तो मैंने ये बात तो मानी कि गाँव से आने वाले स्टूडेंट्स को भाषा पूरी तरह अचानक बदल जाने की वजह से शुरू में दिक्कत जरूर आती है, लेकिन इस बात से इन्कार किया कि उनकी performance इस वजह से खराब होती है।
    मैंने कहा कि इसका सबसे बड़ा कारण है रुचि ना होते हुए भी जबरदस्ती इंजीनियरिंग कॉलेज में उनका admission करा दिया जाना क्योंकि कितने ही मां बाप ऐसे हैं जो सोचते हैं कि 4 साल बाद उनका बच्चा कुछ तो बनकर ही निकलेगा।
    ज़ाहिर है कि ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थी जिन्हें पढ़ने में रुचि थी वे सेमेस्टर में अच्छा score करते थे जबकि English medium से निकले शहरी लड़के जिन्हें नहीं पढ़ना था वे नहीं पढ़ते थे !
    ये बात इसलिए याद आ गई, क्योंकि सुनने में आया है कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में टेक्निकल कोर्स की पढ़ाई हिंदी में कराए जाने को रजामंदी दी है, जिसे एक तबका अच्छी पहल मान कर चल रहा है। उन्हें लगता है कि ऐसा होने से सुधार होगा।
    मेरा तो यही मानना है कि टेक्निकल स्टडी हिंदी भाषा में दुगुनी मुश्किल है...
    मुझे याद है कि फर्स्ट सेमेस्टर का सुशील बिश्नोई नाम का एक ठेठ गाँव का लड़का जब मेरे subject physics में 50 में से 48 नंबर लाया तब मैंने उसे क्लास में 51 रुपये भेंट किए थे और वह आँखों में नमी लिए मेरे पैर छूते हुए जमीन पर ही लेट गया था, उसे reward की आदत नहीं थी शायद !
    उसका भोला चेहरा आज भी याद है, मुझे पूरी उम्मीद है कि वो आज जरूर किसी मुकाम पर होगा !

    नमस्कार दोस्तों ! 

    'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं।
     इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।

    Read More
    • Share This:  
    •  Facebook
    •  Twitter
    •  Google+
    •  Stumble
    •  Digg

    7.22.2021

    'वास्तविक दुनिया यह है...'

     मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     22 July     अतिथि कलम     No comments   

    आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, ज़िन्दगी को लेकर सुश्री ज्योति राजपूत के विचार.......

    सुश्री ज्योति राजपूत

    अगर हम समस्याओं और दु:ख की बात करें तो शायद ही दुनिया में कोई होगा जिसके जीवन में कोई समस्या या दुःख न हो। पर अगर हम उन समस्याओं और उनकी वास्तविकता तक पहुंचना चाहते हैं, तो हमें खुद से ध्यान हटाकर उन लोगों की तरफ देखना चाहिए जिनके पास एक पुख्ता कारण है दु:खी होने का। पर कमाल की बात है कि उनमें से ज्यादातर लोग आपको ऐसे मिलेंगे जो उन समस्याओं को समस्या मानते ही नहीं, न तो वो लोग निराश होते  हैं और न ही दु:खी। वो हर परिस्थिति में चलना और लड़ना जानते हैं। जब आप उन सबको देखेंगे और उनकी अनगिनत समस्याओं से अपनी समस्याओं की तुलना करेंगे, तो निश्चित आपको लगेगा कि वास्तव में मेरे जीवन में कोई समस्या है ही नहीं और जो हैं भी वो मात्र हमारे नकारात्मक विचारों की उपज हैं। जब उनके जज्बों और साहस को देखेंगे तो आपके मन में खुद-ब-खुद विचार आयेगा कि आखिर मैं किस काल्पनिक दुनिया में जी रहा हूँ, वास्तविक दुनिया तो ये है।

    नमस्कार दोस्तों ! 

    'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं।
     इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।
    Read More
    • Share This:  
    •  Facebook
    •  Twitter
    •  Google+
    •  Stumble
    •  Digg

    3.28.2021

    फणीश्वरनाथ रेणु के साहित्यिक कार्य भूलने लायक नहीं...

     मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     28 March     अतिथि कलम     No comments   

    आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, डॉ. सदानंद पॉल द्वारा लिखित अद्वितीय आलेख....

    डॉ. सदानंद पॉल

    4 मार्च को हिंदी और बिहार के महान कथाशिल्पी, उपन्यासकार और रिपोर्ताज़-लेखक फणीश्वरनाथ 'रेणु' की धूमधाम से जयन्ती मनाई जाती है। विदित हो, रेणु जी का जन्म वर्त्तमान अररिया जिला के सिमराहा-औराही-हिंगना में 4 मार्च 1921 को हुआ था। गरीबी, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी और नेपाल में राणाशाही के विरुद्ध छापामार लड़ाई ने उन्हें आँचलिक और क्रान्ति- कथाकार बना दिए। आरम्भ में उनके विश्वप्रसिद्ध उपन्यास 'मैला आँचल' को पूर्णिया के बांग्ला उपन्यासकार सतीनाथ भादुड़ी के उपन्यास 'ढोढाई चरित्र मानस' की हिंदी में नक़ल मानी गयी थी, किन्तु धर्मवीर भारती ने ऐसी अफवाह को सिरे से खारिज कर दिया। फिर इस उपन्यास को अकादमी पुरस्कार भी मिला। मुफलिसी के दिनों में रेणु जी अखबारों में रिपोर्ताज़ लिखकर व फ्रीलांसर बन जीविकोपार्जन किया करते थे, हालांकि गाँव में धानुक-अत्यन्त पिछड़ा वर्ग में इनकी जमींदार-सी स्थिति थी। वे जयप्रकाश नारायण के सच्चे अनुयायी भी थे, इसलिए पटना में जे.पी. को बिहार पुलिस की लाठी से बर्बरता से पिटाई के बाद 'तीसरी कसम' के लेखक ने भारत सरकार से प्राप्त 'पद्मश्री' को लौटाते हुए बिहार सरकार से भत्ता न लेने की 'चौथी कसम' भी खायी थी ।

    नमस्कार दोस्तों ! 


    'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।
    Read More
    • Share This:  
    •  Facebook
    •  Twitter
    •  Google+
    •  Stumble
    •  Digg

    1.14.2021

    'भारतीय गणितज्ञों ने गणित को सरल बनाया...'

     मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     14 January     अतिथि कलम     No comments   

    आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, डॉ. सदानंद पॉल जी के अद्भुत गणितीय आलेख.......

    Messengerofart.in
    डॉ. सदानंद पॉल

    सम्पूर्ण संसार के गणितज्ञ और थोड़े-बहुत गणित के जानकार भी 'अभाज्य संख्या' व प्राइम नंबर्स ज्ञात करने के नाम से परेशान और आक्रान्त रहा है । भारत 'संख्या-सिद्धांत' व नम्बर थ्योरी के मामले में अद्भुत जानकार देश रहा है । महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन ने 33 वर्षीय अल्प-जीवन में ही 'संख्याओं' पर प्रमेय दिए, जिनके जन्मदिवस पर हमारा देश राष्ट्रीय गणित-दिवस भी मनाता है । इनके नाम पर कई संस्थाएँ और पुरस्कार हैं । परंतु 'अभाज्य-संख्या' पर इनका रिसर्च अधूरा ही रहा था। बाल्यावस्था से मैंने भी संख्या-सिद्धांत पर अनथक कार्य करते आया है । इस हेतु 'गणित-डायरी' का प्रथम संस्करण मात्र 11 वर्ष की अल्पायु में छपा था। पाई का पैरेलल मान 19/6 सहित फ़र्मेट के अंतिम प्रमेय की काट, नॉन कोपरेकर कांस्टेंट यानी यूनिक संख्या 2178 इत्यादि की खोज सहित कई प्रमेयों पर अनथक कार्य किया है । अभाज्य संख्या जानने के तरीके पर 10 वर्षों से भी अधिक वर्षों से शोध-कार्य करते आया है । भारत के अधिकाँश विश्वविद्यालयों में नम्बर थ्योरी के जानकार नहीं हैं और उच्च तकनीक वाले कंप्यूटर बिहार के किसी विश्वविद्यालय में नहीं है, अन्यथा परिणाम और भी सटीक आता ! फिर भी गणित के सामान्य से सामान्य विद्यार्थी के हित में है । तभी तो गणितीय विश्लेषण में सम, विषम और अभाज्य संख्यायें प्रमुख भूमिका में होते हैं । ये कहा जाय तो गलत नहीं होगा कि यह तीनो संख्याओं के वजूद पर ही गणित के प्रमेय आधारित हैं, तो जीरो भी खुद में एक संख्या है, इसे आदिसंख्या भी कहा जाता है । वहीं रामानुजन ने 1729 नामक संख्या की खोज कर पूरी दुनिया में छा गए ! 

    नमस्कार दोस्तों ! 

    'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।
    Read More
    • Share This:  
    •  Facebook
    •  Twitter
    •  Google+
    •  Stumble
    •  Digg

    1.01.2021

    'प्रेरणादायी शैक्षिक प्रसंगों को हम जीवन में उतारें...'

     मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     01 January     अतिथि कलम     No comments   

    आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, डॉ. सदानंद पॉल द्वारा लिखित प्रेरणादायी रचना, जिसे पढ़कर युवा पीढ़ी कुछ बातें जान सके......

    डॉ. सदानंद पॉल

    प्रियदर्शिनी इंदिरा 'इंदु' जब शांतिनिकेतन में 'रवीन्द्रनाथ ठाकुर' के सौजन्यत: पढ़ती थी, तब उनकी कक्षा विशेषत: हिंदी के लिए नहीं ही थी। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी भी तब वहाँ हिंदी के शिक्षक हुआ करते थे, एकदिन सहेलियों के साथ नोंक-झोंक करती हुई व दौड़ती हुई द्विवेदीजी की कक्षा में वे प्रवेश कर गयी, तब आचार्यश्री हिंदी पढ़ा रहे थे, हिंदी कक्षा में अनुशासनपूर्वक खड़ी की खड़ी रह गयी, जबतक कक्षा समाप्त नहीं हुई, हालांकि इनसे पूर्व और बाद भी वे वहाँ हिंदी कक्षा में सम्मिलित नहीं हुई ! जब हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का निधन हुआ, तब इंदिरा नेहरू गाँधी भारत की प्रधानमंत्री थी और एक कक्षा - घंटी की इस छात्रा ने अपने गुरु के अंतिम यात्रा में कुछ समय के लिए शरीक होकर व उन्हें सादर नमन कर गुरु के उऋण होने की कुछ प्रयास की । यह उद्धरण आज के 'स्टूडेंट' के लिए सीख हो सकती है, जो अपने 'टीचर' को प्रणाम करना छोड़ दिये हैं ! उनकी सरकार ने आचार्यश्री को 'पद्म विभूषण' से सम्मानित भी की थी यानी ऐसे किये जाते हैं, शिक्षकों के सम्मान । 

    नमस्कार दोस्तों ! 


    'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।


    Read More
    • Share This:  
    •  Facebook
    •  Twitter
    •  Google+
    •  Stumble
    •  Digg
    Older Posts Home

    Popular Posts

    • 'रॉयल टाइगर ऑफ इंडिया (RTI) : प्रो. सदानंद पॉल'
    • 'महात्मा का जन्म 2 अक्टूबर नहीं है, तो 13 सितंबर या 16 अगस्त है : अद्भुत प्रश्न ?'
    • "अब नहीं रहेगा 'अभाज्य संख्या' का आतंक"
    • "इस बार के इनबॉक्स इंटरव्यू में मिलिये बहुमुखी प्रतिभाशाली 'शशि पुरवार' से"
    • 'बाकी बच गया अण्डा : मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट'
    • 'जहां सोच, वहां शौचालय'
    • "प्यार करके भी ज़िन्दगी ऊब गई" (कविताओं की श्रृंखला)
    • "शहीदों की पत्नी कभी विधवा नहीं होती !"
    • "समाजसेवा के लिए क्या उम्र और क्या लड़की होना ? फिर लोगों का क्या, उनका तो काम ही है, फब्तियाँ कसना !' मासिक 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में रूबरू होइए कम उम्र की 'सोशल एक्टिविस्ट' सुश्री ज्योति आनंद से"
    • 'कोरों के काजल में...'
    Powered by Blogger.

    Copyright © MESSENGER OF ART