22 दिसंबर यानी 'राष्ट्रीय गणित दिवस',जो कि भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजम् के जन्मदिवस पर प्रतिवर्ष मनाई जाती है, लेकिन जहाँ आज तक उनकी नोटबुक के काफी सवालों के हल नहीं हो पाये हैं, तो वहीं हिंदी के भाषा विज्ञानी और गणितज्ञ सदानंद पॉल ने अभाज्य संख्याओं पर विचित्र शोध कर रखा है, उनके facebook वाल से वह मोती चुनने का प्रयास किया गया है। आइये, मैसेंजर ऑफ़ आर्ट में आज पढ़ते हैं-- "अब नहीं रहेगा 'अभाज्य संख्या' का आतंक : जानिये आगामी अभाज्य सं. को, उन्हीं के जुबानी"........
"सम-विषम" संख्याओं के साथ 'अकृति-संख्या' लिए 'Non-FLT'
गणितीय विश्लेषण में 'सम', 'विषम' और 'अभाज्य' संख्यायें प्रमुख भूमिका में होते हैं । ये कहा जाय तो गलत नहीं होगा की तीनो संख्यायें के वजूद पर ही गणित टीका है । ज्ञात हो , '0' (zero) , भी खुद में एक संख्या है , इसे "आदिसंख्या"(opening number) भी कहा जाता है ।
'पाइथागोरस प्रमेय' आधारित "(p^2 +b^2)=h^2 को लेकर पियरे D'FERMAT ने एक कल्पना प्रस्तुत किया था कि उक्त प्रमेय की भांति (p^n + b^n) = h^n में 'n= कोई भी संख्या' हो सकता है या नहीं । इसे FERMAT का अंतिम प्रमेय FLT कहा जाता है, किन्तु इसपर ध्यान देने से स्पष्ट होता है कि यह "त्रिभुज आकृति" के सूत्र है
यानि :-(3^2)+(4^2)=5^2,जो की वर्ग (square) के लिए ऐसा ठीक है ,किन्तु घन (cube) या चतुर्घात या पंचघात या कोई घात ऐसे स्थिति में त्रिभुजीय सोच लिए ही संभव हो सकता है ,संख्या सोच लिए नहीं।इसलिए 'Non-FLT' सोच के साथ ये "आकृति संख्या" होगी , जैसे-
# (6^3)+(8^3)+(10^3)=12^3
# (9^3)+(12^3)+(15^3)=18^3
# (4^4)+(6^4)+(8^4)+(9^4)+(14^4)=15^4
#(8^4)+(12^4)+(16^4)+(18^4)+(28^4)=30^4 .....इत्यादि
आकृत्या है।घन हेतु चतर्भुज और चतुर्घात हेतु षट्भुज आदि के प्रमेय सूत्र 'आकृति संख्या' के विहित है ।
इसलिए (x^n)+(y^n)=(z^n) केवल n=2 के रूप में ही संभव है n>2 के रूप में नहीं ।
'अभाज्य संख्या' और उनके ज्ञात करने के सर्वाधिक सही प्रक्रिया :-
* खुद और '1' के अतिरिक्त वैसी संख्या, जो किसी भी संख्या से विभाजित नही हो ,'अभाज्य संख्या' कहलाता है । संख्या '1' और '2' भी किसी से विभाजित नहीं है ।
भाषा विज्ञानी-गणितज्ञ सदानंद पॉल |
अब नहीं रहेगा, 'अभाज्य संख्या' का आतंक : गणितीय-शोध
(हिंदी भाषा विज्ञानी और गणितज्ञ : प्रो0 सदानंद पॉल )
सम्पूर्ण संसार के गणितज्ञ और थोड़े-बहुत गणित के जानकार भी 'अभाज्य संख्या' ज्ञात करने के नाम से परेशान और आक्रान्त रहा है । भारत 'संख्या-सिद्धांत' (Number - Theory) के मामले में अद्भुत जानकार देश रहा है । महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजम् ने 33 वर्षीय अल्प-जीवन में ही 'संख्याओं' पर प्रमेय दिए , जिनके जन्मदिवस पर भारत गणित-दिवस भी मनाता है । इनके नाम पर कई संस्थाएँ और पुरस्कार हैं । परंतु 'अभाज्य-संख्या' पर इनका रिसर्च अधूरा ही रहा था।
मैंने बाल्यावस्था से ही संख्या-सिद्धांत पर अनथक कार्य करते आया है । 'सदानंद पॉल की गणित-डायरी' का प्रथम संस्करण मात्र 11 वर्ष की अल्पायु में छपा था। parallel pi = 19/6, Non-FLT (फ़र्मेट के अंतिम प्रमेय की काट ), Non- koprekar constant '2178' इत्यादि की खोज सहित कई प्रमेयों पर अनथक कार्य किया है, अब भी जारी है ।
मैंने 'अभाज्य - संख्या' जानने के तरीके पर 10 वर्षों से भी अधिक वर्षों से शोध-कार्य करते आया है ।भारत के अधिकाँश विश्वविद्यालयों में Number -Theory के जानकार नहीं हैं और उच्च तकनीक वाले कंप्यूटर मेरे पास नहीं है, अन्यथा परिणाम और भी सटीक आता ! कोई theorem और logical proof के बगैर जब कोई method परिणाम निकाल रहा हो, तब उस method को गणित के सामान्य से सामान्य विद्यार्थी के हित में यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ:--
मैंने बाल्यावस्था से ही संख्या-सिद्धांत पर अनथक कार्य करते आया है । 'सदानंद पॉल की गणित-डायरी' का प्रथम संस्करण मात्र 11 वर्ष की अल्पायु में छपा था। parallel pi = 19/6, Non-FLT (फ़र्मेट के अंतिम प्रमेय की काट ), Non- koprekar constant '2178' इत्यादि की खोज सहित कई प्रमेयों पर अनथक कार्य किया है, अब भी जारी है ।
मैंने 'अभाज्य - संख्या' जानने के तरीके पर 10 वर्षों से भी अधिक वर्षों से शोध-कार्य करते आया है ।भारत के अधिकाँश विश्वविद्यालयों में Number -Theory के जानकार नहीं हैं और उच्च तकनीक वाले कंप्यूटर मेरे पास नहीं है, अन्यथा परिणाम और भी सटीक आता ! कोई theorem और logical proof के बगैर जब कोई method परिणाम निकाल रहा हो, तब उस method को गणित के सामान्य से सामान्य विद्यार्थी के हित में यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ:--
"सम-विषम" संख्याओं के साथ 'अकृति-संख्या' लिए 'Non-FLT'
गणितीय विश्लेषण में 'सम', 'विषम' और 'अभाज्य' संख्यायें प्रमुख भूमिका में होते हैं । ये कहा जाय तो गलत नहीं होगा की तीनो संख्यायें के वजूद पर ही गणित टीका है । ज्ञात हो , '0' (zero) , भी खुद में एक संख्या है , इसे "आदिसंख्या"(opening number) भी कहा जाता है ।
'पाइथागोरस प्रमेय' आधारित "(p^2 +b^2)=h^2 को लेकर पियरे D'FERMAT ने एक कल्पना प्रस्तुत किया था कि उक्त प्रमेय की भांति (p^n + b^n) = h^n में 'n= कोई भी संख्या' हो सकता है या नहीं । इसे FERMAT का अंतिम प्रमेय FLT कहा जाता है, किन्तु इसपर ध्यान देने से स्पष्ट होता है कि यह "त्रिभुज आकृति" के सूत्र है
यानि :-(3^2)+(4^2)=5^2,जो की वर्ग (square) के लिए ऐसा ठीक है ,किन्तु घन (cube) या चतुर्घात या पंचघात या कोई घात ऐसे स्थिति में त्रिभुजीय सोच लिए ही संभव हो सकता है ,संख्या सोच लिए नहीं।इसलिए 'Non-FLT' सोच के साथ ये "आकृति संख्या" होगी , जैसे-
# (6^3)+(8^3)+(10^3)=12^3
# (9^3)+(12^3)+(15^3)=18^3
# (4^4)+(6^4)+(8^4)+(9^4)+(14^4)=15^4
#(8^4)+(12^4)+(16^4)+(18^4)+(28^4)=30^4 .....इत्यादि
आकृत्या है।घन हेतु चतर्भुज और चतुर्घात हेतु षट्भुज आदि के प्रमेय सूत्र 'आकृति संख्या' के विहित है ।
इसलिए (x^n)+(y^n)=(z^n) केवल n=2 के रूप में ही संभव है n>2 के रूप में नहीं ।
'अभाज्य संख्या' और उनके ज्ञात करने के सर्वाधिक सही प्रक्रिया :-
* खुद और '1' के अतिरिक्त वैसी संख्या, जो किसी भी संख्या से विभाजित नही हो ,'अभाज्य संख्या' कहलाता है । संख्या '1' और '2' भी किसी से विभाजित नहीं है ।
* सभी अभाज्य संख्याओ के वर्ग हमेशा ही उनके वर्गमूल संख्या से विभाजित होता है और सभी अभाज्य संख्या के नजदीक एक 'पूर्ण-वर्ग'(square) जरूर रहता है ,किन्तु '2' पूर्ण वर्ग के बीच भी एक अभाज्य संख्या रहता है जैसे :-
# 16 और 25 पूर्ण वर्ग है , इनके बीच संख्या '23' अभाज्य है ।
# 16 और 25 पूर्ण वर्ग है , इनके बीच संख्या '23' अभाज्य है ।
# 25 और 36 पूर्ण वर्ग के बीच'31' अभाज्य है ।
# 169 और 196 पूर्ण वर्ग के बीच संख्या '173' अभाज्य है ।
# 784 और 841 पूर्ण वर्ग के बीच संख्या '811' अभाज्य है ।
* अभाज्य संख्या 'रूढ़ि संख्या (convection number)' भी कहलाते है । इनमें 'परंपरा का' प्रभाव है और 'परंपरा' यथार्थ से परे होता है!
* अभाज्य संख्या पर यूनानी गणितज्ञ ERETO STHENES (3rd BC) ने 'छलनी (sieve)' विधि से '1' को हटाया ,फिर '2' में घेरा लगाकर उनके गुणज को काटा गया, फिर '3' को घेरा लगाकर उनके गुणज को काटा गया , फिर 5,7,11,13,.....इत्यादि से उनके गुणज को काटते और प्रक्रिया में जो नहीं काटा जा सका ,वही अभाज्य संख्या है । किन्तु यह प्रक्रिया लंबी है ।आगे गणितज्ञ GOLDBATCH ने एक अनुमान दिया की '4' से बडी प्रत्येक सम संख्या को दो विषम अभाज्य संख्या के योग के रूप में लिखा जा सकता है । ऐसी स्थिति में '2' एकमात्र 'सम संख्या' है, यहाँ 'सम संख्या' को 'लघुत्तम अभाज्य और वृहत्तम' अभाज्य के योग के रूप में बाँट सकते है । तभी तो '2' से ऊपर के सम संख्याओं के न्यूनतम 'दो' गुणनखंड जरूर होते है।
* (1/3{n-1}/2) में 'n' कोई भी संख्या है ,यदि उक्त सूत्र में 'n' देकर शेषांक '1' आता है , तो 'n' भाज्य है । इकाई(unit) में 'सम' 0,5 हो तो संख्या भाज्य होगा।
* उपर्युक्त नियम के साथ अभाज्य संख्या जानने के लिए एक सीरीज तैयार करते है । यहाँ पर
(1^2)+(2^2),(2^2)+(3^2)फिर (2^2)-(1^2),(3^2)-(2^2),(4^2)-(3^2) अभाज्य है , किन्तु (3^2)+(4^2),(5^2)-(4^2) भाज्य तथा (6^2)-(5^2) और (5^2)+(6^2) अभाज है । इस सीरीज को आगे ले चलते है । (2^3)-(1^3),(3^3)-(2^3),(4^3)-(3^3),(5^3)-(4^3) अभाज्य है , जबकि (6^3)-(5^3) भाज्य है। इसप्रकार (2^2)+(3^2),(3^2)-(2^2) और (3^3)-(2^3) में तीनोँ अभाज्य संख्या है , किन्तु (10^2)+(11^2),(11^2)-(10^2),(11^3)-(10^3) में किसी 'एक' के अभाज्य संख्या होने की प्रबल संभावना है !
(1^2)+(2^2),(2^2)+(3^2)फिर (2^2)-(1^2),(3^2)-(2^2),(4^2)-(3^2) अभाज्य है , किन्तु (3^2)+(4^2),(5^2)-(4^2) भाज्य तथा (6^2)-(5^2) और (5^2)+(6^2) अभाज है । इस सीरीज को आगे ले चलते है । (2^3)-(1^3),(3^3)-(2^3),(4^3)-(3^3),(5^3)-(4^3) अभाज्य है , जबकि (6^3)-(5^3) भाज्य है। इसप्रकार (2^2)+(3^2),(3^2)-(2^2) और (3^3)-(2^3) में तीनोँ अभाज्य संख्या है , किन्तु (10^2)+(11^2),(11^2)-(10^2),(11^3)-(10^3) में किसी 'एक' के अभाज्य संख्या होने की प्रबल संभावना है !
* (2^विषम घात) में 'विषम घात' हेतु 1,3,5,7,9,11..... क्रमांक का उपयोग "-1,+3,-1,-1,+5,-7" देकर 'विषम घात' हेतु क्रमशः बढ़ते हुए "(2^1)-1=1" पर विचार नहीं करते हैं , '+5' और '-7' से प्राप्त भाज्य आता है । विषम घात '13' यानि (2^13)-1 "सारणी" के कारण अभाज्य है ।
*(2^सम घात) में 'सम घात' हेतु '2' को छोड़कर 4,6,810...क्रमांक का उपयोग"-3,+7,+1,-5" देकर "सम घात" हेतु क्रमशः बढ़ते हैं । सम घात '12' यानि (2^12)-3 'सारणी' के कारण अभाज्य है ।
* उपर्युक्त उद्धृत बिंदुओं में 'सारणी' का जिक्र है । अभाज्य संख्या जानने के लिए '2' पर विषम घात =1,3,5,7,9,11 को छोड़ 13 लिए (2^13)-1 कर बढ़ते हैं और (2^35)-7 तक में ये साफ़ होता है की -1,+3,-1,-1,+5,-7 डालकर विषम घात 13,15,17,19,31 के हल ही तब अभाज्य पाते हैं , जिसे सारणी में 'सेट' करते हैं ।
सम घात 4,6,8,10 को छोड़कर 12 लिए (2^12)-3 से आगे (2^34)-5 बढ़ते हैं , जिनमे -3,+7,+1,-5 का उपयोग कर पाते हैं कि 'सम घात' 12,16,18,20,26,30, से प्राप्त संख्या 'अभाज्य' है , जो की सारणी में 'सेट' हो ,आगामी अभाज्य संख्या को बताता है। ज्ञात हो , 2 पर 'सम' और 'विषम घात' के अलग-अलग 'सारणी' (सम के लिए 4×4 क्योंकि योग व् घटाव के -3,+7,+1,-5 चार ही है और विषम के लिए 6×6 क्योंकि योग व घटाव -1,+3,-1,-1,+5,-7 छह ही है .. क्रमशः 16 और 36 बॉक्स वर्गाकृति बनेगा) होगा ।
मेरा दावा है, कि विहित दोंनो सारणी के अनुसार 27 संख्याएं आती ( prime numbers ) हैं । परंतु उच्च तकनीक वाले कंप्यूटर के अभाव में आकलन-विषयक संभावना 27 के अभाज्य संख्या वाले series में कोई 3 भाज्य हो सकते हैं , किन्तु 24 अभाज्य संख्याएँ अवश्य रहेंगे !
नमस्कार दोस्तों !
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