"धरती पर रहकर आकाश बनने के
हरकोई सपने देखता है--
आकाश बन जाने के बाद
धरती के सपने कोई नहीं देखता !
××× ×××
अँधेरे के समंदर में
संध्या भी डूब गई
और लगने लगा जैसे--
प्यार करके भी ज़िन्दगी ऊब गई ।
××× ×××
आँखों में अंकुरित स्वप्नों को
सींचने दो मुझे,
कि तुम्हीं ने कहा था कभी
बसंत आता है जरूर एक दिन ।"
आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट लेकर आई है, कवि राजकुमार जैन 'राजन' की ज़िन्दगी की हकीकत को बयां करती ऐसी ही अन्य हू-ब-हू कवितायें... आइये पढ़ते हैं, इन कविताओं के शृंखला की सभी पूर्ण कविताएं----
हरकोई सपने देखता है--
आकाश बन जाने के बाद
धरती के सपने कोई नहीं देखता !
××× ×××
अँधेरे के समंदर में
संध्या भी डूब गई
और लगने लगा जैसे--
प्यार करके भी ज़िन्दगी ऊब गई ।
××× ×××
आँखों में अंकुरित स्वप्नों को
सींचने दो मुझे,
कि तुम्हीं ने कहा था कभी
बसंत आता है जरूर एक दिन ।"
आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट लेकर आई है, कवि राजकुमार जैन 'राजन' की ज़िन्दगी की हकीकत को बयां करती ऐसी ही अन्य हू-ब-हू कवितायें... आइये पढ़ते हैं, इन कविताओं के शृंखला की सभी पूर्ण कविताएं----
सार्थकता
तुम कभी टूटे नहीं
इस लिए हंस रहे हो
जिस दिन टूटेगा
तुम्हारी आत्मा का दर्पण ।
उस खण्डित दर्पण में
अपने आपको
अनेक खण्डों में
विभाजित हुआ पाओगे ।
तब अहसास होगा तुम्हें
टूटना कैसा होता है
दर्पण की टूटन में
हर एक का दर्द है, पीड़ा है ।
धरती पर रह कर आकाश बनने के
हर कोई सपने देखता है
आकाश बन जाने के बाद
धरती के सपने कोई नहीं देखता !
दर्पण अपनी सार्थकता
कभी नहीं खोता
अपनी खण्डता में भी
रखता है अखण्डता ।
वह तुम्हारे अस्तित्व का कवच है
कि दर्पण बनोगे तो
तुम हार बन जाओगे, सच में
इसी में तुम्हारे होने की है सार्थकता ।
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सन्दर्भ हीन संदर्भ
निराशा
अंधेरे की ओट में खड़ी है
और लगता है यह रात
जिन्दगी से भी बड़ी है।
अन्धेरे के समंदर में
संध्या भी डुब गई
और लगने लगा जैसे
प्यार करके भी जिन्दगी ऊब गई।
जिन्दगी!
जिसे हम पानी की तरह पी रहे हैं
है यह एक सन्दर्भहीन सन्दर्भ
और सृजन की अहर्निश निरन्तरता ।
अविरल एक सिलसिला
काल के किन-किन शिलाखण्डों पर
लिखा है हमने--
अपनी यात्रा का क्रूर इतिहास।
हम तो अभागे फूल की तरह
अंधेरों के गर्भ से उपजे हैं
मन के सूने खंडहरों/नस-नस में अन्धेरा हैं
जहाँ/आतंक के उल्लुओं का बसेरा है।
हमारे लिए हर शब्द के अर्थ बदल गये है
हर चीज का रंग बदल गया है
हम एक दिन/ दुनिया का चेहरा बदल देंगे
हर चिंगारी को अंगारा बना देंगे।
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तुम कौन हो?
तुम कौन हो ?
फूलों के चेहरे से चुरा ले गये मुस्कराहटें
और बदले में--
नहला गये खून से उन्हें ?
तुम कौन हो ?
हवाओं के लहराते आंचलों में बंधी खुशबूएं
खोलकर ले गये
और रख गये उनकी जगह बारूद ।
तुम कौन हो ?
थिरकती-चांदनी के पांवों में बंधे घुंघरू
कि उनकी जगह बांध रहे मशीनगनें
जो उगलती है मानवता का खूनी संगीत ।
तुम कौन हो ?
जिसकी परम्परा, संस्कृति और इतिहास
फलते-फूलते हैं/कफ्र्यू के साये में
और होठों पर लिए घृणा के गीत ।
तुम कौन हो?
जो बुद्ध, महावीर और गांधी को सिखाते
हो कि/मारने वाले से बचाने वाला नहीं
मरवाने वाला बड़ा होता है ।
यह क्या हो गया/धरती के अमृतकोष में
विषबीज कौन बो गया है ?
नये सूर्योदय के साथ/उसे नंगा किया जाय
औ' जिंदगी का एक गीत नया लिखा जाए।
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बसंत जरूर आता है
तुम्हारे विश्वास को लेकर
मैंने इतना लंबा सफर तय किया
मौसम के द्वार खड़े होकर
सिर्फ तुम्हारी प्रतीक्षा की ।
अपने आप से अजनबी बन
स्वयं को खोजते और अस्तित्व की तलाश में
खण्ड-खण्ड होते
संस्कृति की चित्कार को सहता रहा ।
उड़ता रहा अंतहीन आकाश में
विश्वास की बाहें फैलाये
अजीब-सी खामोशी और
सन्नाटे को चिरते हुए ।
मन में उठते तूफान में
लहर-सा उतर गया हूँ
कि ठण्डी हवा
कितनी निर्मम हो गई ?
इन रास्तों से गुजरते हुए
तलाश पूरी होगी
भविष्य की--
इक मज़बूत इमारत की ।
आंखों में अंकुरित स्वप्नों को
सींचने दो मुझे
कि तुम्हीं ने कहा था कभी
बसंत आता है जरूर एक दिन।
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नियति
काश !
तुम आते मेरे गांव
तुम्हें देता मैं--
आसमानी हवाओं की खूशबू ।
धीरे-धीरे
बहती नदी की कल-कल
चिड़िया की चिहू-चिहू के साथ
लिए अपनी मुस्कराहटें ।
कबतक संभालूँ/तह किए रंगीन कागज
और सूखा फूल, गुलाब का
मेरी श्रद्धा, मेरा विश्वास
अब सब टूटने लगा है ।
तुम्हें खुश करने के लिए
मैं ही क्यों हरबार चला आऊँ
फिर-फिर बिखरने के लिए
मत छोड़ो मुझे, अधूरे स्वप्नों के साथ ।
सहमे सपनों के स्पर्श से आक्रान्त
कबतक मैं/यादों से पलायन करूंगा तुम्हारे
मैं कोई पत्थर तो हूँ नहीं
कि टूटना ही नियति रह गई है मेरी !
महोदय जी" मैसेंजर ऑफ आर्ट "पर आज मेरी कविताओं की सुंदर प्रतुति देखकर हार्दिक प्रसन्नता हुई।आपका हिंदी साहित्य और साहित्यकारों को प्रोत्साहन देने का प्रयास स्तुत्य हैं और सार्थक परिणाम देने वाला है। लिंक कई साथियो को व् साहित्यिक ग्रुप में पोस्ट किया है।आशा है सार्थक परिणाम मिलेंगे। रचानाये पढ़नेवालों से भी विनम्र निवेदन है कि अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया अवश्य देवें। आभारी रहुंगा।
ReplyDelete#राजकुमार जैन राजन, आकोला
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरनिय
DeleteBehad.sunder .sabhi.kavitaen.apne alag.alag.rago.ko
ReplyDeleteukerti..badhai..shubh.kaamnaen.sadhuwad
हार्दिक आभार
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteniyati....bahut sundar
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteहार्दिक आभार
Deleteप्यारी कविताए
ReplyDeleteहार्दिक आभार
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसभी कविताएं संदेश देती हुई
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक
हार्दिक बधाई आदरणीय
कीर्ति श्रीवास्तव
भोपाल
हार्दिक आभार
Deleteवाह, अंधेरे से उजालों की और एक पगडंडी जाती सी दिखाई दे रही है, जहां पर कोहरे की चादर उजली धूप को कुछ ही पल के लिए अपने आगोश में छिपाने की कोशिश कर रही है । बेहद उम्दा शब्द संयोजन और अर्थपूर्ण भावों की अभिव्यक्ति के लिए बधाई
ReplyDeleteआपका शुक्रिया
Deleteसभी कवितायें बहुत सुंदर और संदेशात्मक शैली में। सुंदर शब्द समन्वय और संयोजन रचनाओं को नया आयाम प्रदान कर रहे।
ReplyDeleteमेरी हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई आदरणीय।
---- शिप्रा खरे (गोला-उ०प्र)
आदरणीय आभार
Deleteअच्छी और अर्थपूर्ण कविताओं का बेहतरीन संकलन ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत सृजन
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत संकलन
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