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3.28.2021

फणीश्वरनाथ रेणु के साहित्यिक कार्य भूलने लायक नहीं...

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     28 March     अतिथि कलम     No comments   

आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, डॉ. सदानंद पॉल द्वारा लिखित अद्वितीय आलेख....

डॉ. सदानंद पॉल

4 मार्च को हिंदी और बिहार के महान कथाशिल्पी, उपन्यासकार और रिपोर्ताज़-लेखक फणीश्वरनाथ 'रेणु' की धूमधाम से जयन्ती मनाई जाती है। विदित हो, रेणु जी का जन्म वर्त्तमान अररिया जिला के सिमराहा-औराही-हिंगना में 4 मार्च 1921 को हुआ था। गरीबी, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी और नेपाल में राणाशाही के विरुद्ध छापामार लड़ाई ने उन्हें आँचलिक और क्रान्ति- कथाकार बना दिए। आरम्भ में उनके विश्वप्रसिद्ध उपन्यास 'मैला आँचल' को पूर्णिया के बांग्ला उपन्यासकार सतीनाथ भादुड़ी के उपन्यास 'ढोढाई चरित्र मानस' की हिंदी में नक़ल मानी गयी थी, किन्तु धर्मवीर भारती ने ऐसी अफवाह को सिरे से खारिज कर दिया। फिर इस उपन्यास को अकादमी पुरस्कार भी मिला। मुफलिसी के दिनों में रेणु जी अखबारों में रिपोर्ताज़ लिखकर व फ्रीलांसर बन जीविकोपार्जन किया करते थे, हालांकि गाँव में धानुक-अत्यन्त पिछड़ा वर्ग में इनकी जमींदार-सी स्थिति थी। वे जयप्रकाश नारायण के सच्चे अनुयायी भी थे, इसलिए पटना में जे.पी. को बिहार पुलिस की लाठी से बर्बरता से पिटाई के बाद 'तीसरी कसम' के लेखक ने भारत सरकार से प्राप्त 'पद्मश्री' को लौटाते हुए बिहार सरकार से भत्ता न लेने की 'चौथी कसम' भी खायी थी ।

नमस्कार दोस्तों ! 


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