जहां हमारी बिहार सरकार पुरजोर कोशिश में लगे हैं कि बाल-विवाह और दहेज प्रथा पूरी तरह से बंद हो, वहीं हमारे समाज की मानसिकता को भी पूरी तरह से बदलना होगा। तभी गत साल की भाँति इस बार की मानव-श्रृंखला यानी 21 जनवरी की मानव शृंखला में पूर्ण सफलता हम हासिल कर पायें हैं,लेकिन क्या इसी तरह हम पूरे देश में मानव शृंखला 'हर घर शौचालय' के लिए ऐसा नहीं कर सकते हैं ? आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में पढ़ते हैं लघु आलेख ...
गाँधी जी तब शौच 'मैदान' में करते थे और साथ खुरपी ले जाते थे, ताकि खुरपी से छोटे से, किन्तु गहरे गड्ढ़े खोदकर उनमें मलत्याग कर फिर उक्त गड्ढ़े को भर देते थे । इस शौच की सोच यह होती थी कि मैदान कृषियोग्य उपजाऊ हो पाए ! उनदिनों 'मैदान' जाने का मतलब ही शौचनिवृति से था । तब 30 करोड़ आबादी थी, अब तो 130 करोड़ आबादी है ।
गाँधी जी तब शौच 'मैदान' में करते थे और साथ खुरपी ले जाते थे, ताकि खुरपी से छोटे से, किन्तु गहरे गड्ढ़े खोदकर उनमें मलत्याग कर फिर उक्त गड्ढ़े को भर देते थे । इस शौच की सोच यह होती थी कि मैदान कृषियोग्य उपजाऊ हो पाए ! उनदिनों 'मैदान' जाने का मतलब ही शौचनिवृति से था । तब 30 करोड़ आबादी थी, अब तो 130 करोड़ आबादी है ।
खुले में शौच का दुःखान्त पक्ष महिलाओं की इज़्ज़त से भी जुड़ी है, जो कि नकारात्मक लोगों के बीच 'बलात्कार' स्थिति को जन्म दे सकता है । घर के अंदर शौचालय, अगर पूजालय भी वहीं है, तो वेद - मंथन लिए उचित तो नहीं है, किन्तु अगर इसकी बनावट व बुनावट हम व्यवस्थित प्रकार से करें, तो यह शौचालय भी घर का एक रूप ही लगेगा ! यह दिक्कत तब और आती है, जब परिवार बड़ा हो और आवासीय भूमि थोड़ी हो तथा शौचालय की सेफ़्टी मलटंकी बड़ी बनाई जानी हो, तो काफी दिक्कतें आती हैं, वैसे में और भी तब जब परिवार BPL हो ।
आर्थिक दिक्कत का समाधान सरकार द्वारा देय सिर्फ ₹12,000 नहीं है, क्योंकि एक अच्छी व पक्की शौचालय और मलटंकी बनाये जाने में कम से कम ₹1,20,000 आएंगे । चूंकि मलटंकी का सुलभ उपाय मिट्टी के पाट तो ज्यादा दिनों तक टिकाऊ नहीं रह पाते हैं । अगर शौचालय की मलटंकी मकान के नीचे कर दी जाय, तो मल भरने के बाद इन्हें खाली करने व कराने में व सफाई करने व करवाने में काफी दिक्कतें और अव्यवस्था आड़े आती हैं ।
वहीं दूसरी ओर जिनके यहाँ एकमात्र शौचालय है और परिवार के सभी सदस्य जॉब में हो, तो सुबह शीघ्र फ़ारिग होने के चक्कर में अंडरवियर में ही मल उतर आती हैं । यह मैं प्रैक्टिकल कह रहा हूँ, ऐसे में वैकल्पिक शौचालय की भी व्यवस्था हो यानी हर घर में कम से कम दो शौचालय तो होने ही चाहिए, फिर इसे बनाने के लिए सरकार को बाजार रेट के अनुसार अनुदान देने चाहिए । हाँ, BPL परिवारों को यह अनुदान मुफ़्त मिले !
-- प्रधान प्रशासी-सह-प्रधान संपादक ।
Nice post interesting
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