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12.22.2022

डॉ. सदानंद पॉल की खोज "फर्मा का अंतिम प्रमेय (FLT) का 'आकृति संख्या' या नॉन-एफ.एल.टी. से आसान हल"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     22 December     अतिथि कलम, शोध आलेख     No comments   

आइए, मैसेंजर ऑफ आर्ट में आज पढ़ते हैं, डॉ. सदानंद पॉल के गणितीय सिद्धांत को...

डॉ. सदानंद पॉल 

डॉ. सदानंद पॉल की खोज "फर्मा का अंतिम प्रमेय (FLT) का 'आकृति संख्या' या नॉन-एफ.एल.टी. से आसान हल"

FLT प्रमेय को पहली बार 1637 में फ्रांसीसी अधिवक्ता और गणितज्ञ पियरे डि फर्मेट द्वारा अंकगणित की एक पुस्तक के एक पृष्ठ के हाशिये यानी मार्जिन में अनुमान लिए लिखा गया था और उन्होंने दावा भी किया था कि उनके पास सबूत है, किन्तु मार्जिन में इसे हल करने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है !

The FLT theorem was first written in 1637 by French lawyer and mathematician Pierre de Fermat to estimate the margins of a page of a book of arithmetic in the margins, and he also claimed that he had proof, but to solve it in the margin there is  not enough space for !

गणित की दुनिया का यह अद्भुत थ्योरम यानी फर्मेट या फर्मा का अंतिम प्रमेय (FLT) उनके निधन वर्ष 1665 से अनसुलझा है, जब उनके पुत्र द्वारा उक्त पुस्तक को आलमारी किसी कारणश: निकाली गई थी। आज के गणितज्ञ 17 वीं शताब्दी के गणितीय ज्ञान के समकक्ष ले जाने की नहीं सोचते हैं, इन्हीं कारणों से पियर डि फर्मा के प्रमेय का प्रमाण अब तक गणितज्ञ नहीं खोज सके हैं। इसे रायल सोसायटी, लंदन द्वारा इसे 1676 में प्रकाशित किया गया। फर्मा का हल 16 वीं शताब्दी के आसपास छिपा था, जिसे मैंने खोज निकाला है, वैसे कई गणित जानकारों, शिक्षकों और गणितज्ञों ने इनका हल व इनकी काट निकालने का दावा-प्रतिदावा किया है ! इसे मैंने (Sadanand Paul) "Non FLT" का नाम दिया है यानी यह वैसी प्रक्रियाएँ हैं, जिनसे FLT की काट हो। 

This amazing theorem ie Fermat's or Ferma's final theorem (FLT) of the world of mathematics has been uncertain since his death in the year 1665, when the aforesaid book was removed by his son for some reason.  Today's mathematicians do not think of carrying the equivalent of mathematical knowledge of the 17th century, for which reason mathematicians have not yet been able to find proof of Pier de Fermat's theorem.  It was published in 1676 by the Royal Society, London.  Format's solution was hidden around the 16th century, which I have discovered, by the way, many math experts, teachers and mathematicians have claimed to have solved it and cut it out!  I (Sadanand Paul) have named it "Non FLT", that is, the processes by which FLT is cut.

पाइथागोरस प्रमेय (p^2 + b^2) = h^2 को लेकर पियरे D' FERMAT ने एक कल्पना प्रस्तुत किया था कि उक्त प्रमेय की भांति (p^n + b^n) = h^n में n = कोई भी संख्या हो सकता है या नहीं ! इसे FERMAT का अंतिम प्रमेय FLT कहा जाता है, किन्तु इसपर ध्यान देने से स्पष्ट होता है कि यह "त्रिभुज आकृति" के सूत्र है, यथा-

With regard to the Pythagoras theorem (p ^ 2 + b ^ 2) = h ^ 2, Pierre D'FERMAT presented a hypothesis that n = any of the above theorems (p ^ n + b ^ n) = h ^ n.  Number may or may not!  This is called FLT the last theorem of FERMAT, but it is clear from this that it is the formula for the "Triangle shaped Figure Number" :-

(3^2) + (4^2) = 5^2, जो कि वर्ग (square) के लिए ऐसा ठीक है, किन्तु घन (cube) या चतुर्घात या पंचघात या कोई घात ऐसी स्थिति में त्रिभुजीय सोच लिए ही संभव हो सकता है, किन्तु किसी संख्या की सोच लिए नहीं, इसलिए Non FLT सोच के साथ ये सब "आकृति संख्या" होगी , यथा-

(6^3) + (8^3) + (10^3) = 12^3

(9^3) + (12^3) + (15^3) = 18^3

(4^4) + (6^4) + (8^4) + (9^4) + (14^4) = 15^4

(8^4) + (12^4) + (16^4) + (18^4) + (28^4) = 30^4

.....इत्यादि आकृति संख्याएँ हैं।

That (3 ^ 2) + (4 ^ 2) = 5 ^ 2, which is exactly the case for a square, but cube or quadrilateral or panache or any power can only be possible for triangular thinking.  Is, but not thinking of any number, so with non FLT thinking it will all be "Figure number", like-

(3^3)+(4^3)+(5^3) =6^3,

(6^3)+(8^3)+(10^3)=12^3,

(9^3)+(12^3)+(15^3)=18^3,

(12^3)+(16^3)+(20^3)=24^3

(4^4)+(6^4)+(8^4)+(9^4)+(14^4)=15^4,

(8^4)+(12^4)+(16^4)+(18^4)+(28^4)=30^4,

(12^4)+(18^4)+(24^4)+(27^4)+(42^4)=45^4 

  ..... etc  are figure numbers. 

घन हेतु चतर्भुज और चतुर्घात हेतु षट्भुज आदि के प्रमेय सूत्र आकृति संख्या यानी Figure Numbers कहलाती हैं, इसलिए (x^n) + (y^n) = (z^n) केवल n = 2 के रूप में ही संभव है n > 2 के रूप में नहीं !

Theorems of the quadrilateral for cube and hexagon for quadrilateral etc.  are called figure numbers i.e.  Figure Numbers, so (x ^ n) + (y ^ n) = (z ^ n) is possible only as n = 2 n> 2. not as !

Non FLT अबतक खोजी गई "Fermat's Last Theorem" की काट के लिए अत्यधिक सटीक और सबसे लघुत्तम प्रक्रिया (Shortest Process) है। ध्यातव्य है, मैंने अल्पायु में गणित विषय व गणितीय-सूत्रों पर पहली डायरी की रचना की थी, जो दो-दो संस्करण लिए 'सदानंद पॉल की गणित-डायरी' के नाम से प्रकाशित भी हुई थी।

Non FLT is the most accurate and shortest process for cutting "Fermat's Last Theorem" discovered so far.  It is noteworthy that I had composed the first diary on the subject of Mathematics and Mathematical Formulas at an early age, which was also published as 'Sadanand Paul's Mathematics Diary' with two editions.

नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं। इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि" हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।

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गणित में नोबेल पुरस्कार (The Nobel Prize in Mathematics)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     22 December     अतिथि कलम, शोध आलेख     No comments   

22 दिसंबर यानी 'राष्ट्रीय गणित दिवस',जो कि भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजम् के जन्मदिवस पर प्रतिवर्ष मनाई जाती है, लेकिन जहाँ आज तक उनकी नोटबुक के काफी सवालों के हल नहीं हो पाये हैं, तो वहीं हिंदी के भाषा विज्ञानी और गणितज्ञ डॉ. सदानंद पॉल ने गणित के संख्याओं पर विचित्र शोध कर रखा है। आइए,मैसेंजर ऑफ़ आर्ट में आज पढ़ते हैं उनके शोध को--

डॉ. सदानंद पॉल 

गणित में नोबेल पुरस्कार (The Nobel Prize in Mathematics)

"डॉ. सदानंद पॉल की खोज "अभाज्य संख्याओं से अभाज्य संख्या निकालने का एक अद्भुत कोरोनाइट फॉर्मूला" को गणित में नोबेल पुरस्कार तुल्य"

"The Nobel Prize In Mathematics to an Unique Coronait Formula to extract prime numbers from prime numbers discovered by Dr. Sadanand Paul"

लॉकडाउन में 'कोरोना' के आतंक से स्वयं को बचते हुए एकांतवास हो चुका हूँ, तभी तो गणित की दुनिया के आतंकित संख्या या अब तो इसे 'कोरोनाइट संख्याएँ' (Coronait Numbers) भी कह सकते हैं यानी अभाज्य संख्याएँ (Prime Numbers) निकालने के नवीन-सूत्र (New Formula) की खोज मैंने (सदानंद पॉल) कर लिया है। ध्यातव्य है, सम्पूर्ण गणितीय संसार अभाज्य संख्याओं से सुपरिचित भी है, तो इनमें उलझने के कारण दु:परिचित भी है । यह तो तयशुदा सच है कि अभाज्य संख्याएँ 'विषम' संख्या होती हैं, किंतु 2 को छोड़कर; क्योंकि 2 एकमात्र अभाज्य संख्या है, जो सम है । वहीं सभी विषम संख्याएँ अभाज्य संख्याएँ नहीं होती।

Having escaped from the terror of 'corona' in lockdown, I have lived in seclusion, then only the terrorized numbers of the mathematical world or now it can also be called 'Prime Numbers. I (Sadanand Paul) have discovered the New Formula 'Coronait Formula' to extract prime numbers from prime numbers. It is important to note that the entire mathematical world is also familiar with prime numbers, so it is also familiar because of the confusion.  It is certainly true that prime numbers are 'Odd' numbers, but excluding 2;  Because 2 is the only prime number, which is even.  At the same time, all odd numbers are not prime numbers.

मेरे द्वारा ईजाद किये गए फॉर्मूला यानी यह अभाज्य संख्याओं से ही अभाज्य संख्याओं को जानने व निकालने को लेकर है, यह लॉकडाउन की उपलब्धि कही जा सकती है । लेखन और गणित के प्रति रुचि है । अगर लेखन के कारण 'लेखक' कहला सकते हैं, तो गणितीय अन्वेषण के कारण 'गणितज्ञ' क्यों नहीं कहला सकता हूँ ! आइये, अभाज्य संख्या जानने या आगामी अभाज्य संख्या जानने के लिए मैंने कुछ प्रमेयों को तलाशा है, यह सूत्रबद्ध है:-

The formula that I have developed, it is about knowing and removing prime numbers from prime numbers itself, it can be called a lockdown achievement. An Interested in writing and mathematics. If writing can be called 'writer', then why can't I be called 'Mathematician' because of mathematical investigation !  Come, I have searched some theorems to know the prime number or the upcoming prime number, it is formulated:-

कंडिका- 1.

प्रथम से लेकर सभी क्रमिक अभाज्य संख्याओं (Consecutive Prime Numbers) को आपस में गुणा करते हैं,  जहाँ तक के लिए अभाज्य संख्याओं को जानना चाहते हैं, किंतु अंक 5 को इस गुणन में शामिल नहीं करते हैं । याद रहे, प्रथम अभाज्य संख्या 2 अंक है। यथा-

2 × 3
2 × 3 × 7
2 × 3 × 7 × 11
2 × 3 × 7 × 11 × 13
2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17
2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19

Rule of Method - 1

Multiply all the Consecutive Prime Numbers from the first to the nearest, so far as the prime numbers want to know, but the digits do not include 5 in this multiplication.  Remember, the first prime number is 2 digits. As-

2 × 3
2 × 3 × 7
2 × 3 × 7 × 11
2 × 3 × 7 × 11 × 13
2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17
2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19

कंडिका- 2.

कंडिका- 1 को लेकर प्राप्त गुणनफल में 1 जोड़ते हैं, तो यह अभाज्य संख्या के रूप में प्राप्त होता है। यथा-

2 × 3 = 6 +1 = 7 (अभाज्य संख्या)

कंडिका- 1 से उसी तरह :-

42 + 1 = 43 (अभाज्य संख्या),
462 + 1 = 463 (अभाज्य संख्या),
6006 + 1 = 6007 (अभाज्य संख्या),
102102 + 1 = 102103 (अभाज्य संख्या),
1939938 + 1 = 1939939 (अभाज्य संख्या)

Rule of Method - 2

 If we add 1 to the product obtained by taking Rule of Method-1, then it is obtained as a prime number.  As-

 2 × 3 = 6 +1 = 7 (prime number)

 In the same way as from Condica-1:

 42 + 1 = 43 (prime number),
 462 + 1 = 463 (prime number),
 6006 + 1 = 6007 (prime number),
 102102 + 1 = 102103 (prime number),
 1939938 + 1 = 1939939 (prime number)

कंडिका- 3.

कंडिका-2 को लेकर गुणनफल में 1 जोड़ने पर परिणामी संख्या का इकाई अंक अगर 0, 5 या सम संख्या आए, तो यह सीरीज अभाज्य संख्या नहीं होंगे। इसलिए इसतरह के सीरीज को छोड़ आगामी सीरीज में आएंगे, किंतु क्रमिक अभाज्य संख्याओं के गुणन में किसी भी क्रमिक अभाज्य संख्याओं को गुणा करने से वंचित नहीं करेंगे। यथा-

2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19 × 23 = 44618574 + 1
= 44618575 में इकाई अंक 5 है, इसलिए यह भाज्य संख्या है।

अब चूंकि अभाज्य संख्या '23' के कारण गुणनफल और योगफल से जो संख्या प्राप्त होती है, वह संख्या 'भाज्य' होने के बावजूद हम अगले चरण (सीरीज) के लिए '23' नामक अभाज्य संख्या का उपयोग निश्चित करेंगे, उसे त्यागेंगे नहीं। यथा-

2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19 × 23 × 29 = 1293938646 + 1
= 1293938647 अभाज्य संख्या प्राप्त होती है।

Rule of Method - 3

Adding 1 to the product by taking Rule of Method-2, if the unit digit of the resulting number is 0, 5 or even, then it will not be a series prime number.  Therefore, leaving this type of series will come in the next series, but will not deprive multiplication of any consecutive prime numbers in multiplication of successive prime numbers.  As-

 2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19 × 23 = 44618574 + 1
 = 44618575 has unit digit 5, so it is a composite number.

 Now since the number obtained from the product and sum is due to the prime number '23', we will decide to use the prime number called '23' for the next step (series), even if the number is 'divisible', not discard it.  As-

 2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19 × 23 × 29 = 1293938646 + 1
 = 1293938647 The prime number is obtained.

कंडिका- 4.

इसतरह के सीरीज के सभी गुणनफल भाज्य संख्या होंगे, किंतु उपर्युक्त कंडिकाओं में उद्धृत शर्त्तानुसार गुणनफल में +1 करके 'अभाज्य संख्या' तलाशेंगे ! यथा-

2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19 × 23 × 29 × 31
= 40112098026 + 1 = 40112098027 अभाज्य सं. (PN) है।

2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19 × 23 × 29 × 31 × 37
= 1484147626962 + 1 = 1484147626963 (PN)

Rule of Method - 4

All the product of such series will be a composite number, but by finding the condition quoted in the above mentioned terms, find the 'prime number' by +1 in the product!  As-

 2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19 × 23 × 29 × 31
 = 40112098026 + 1 = 40112098027 Prime No.  (PN).

 2 × 3 × 7 × 11 × 13 × 17 × 19 × 23 × 29 × 31 × 37
 = 1484147626962 + 1 = 1484147626963 (PN)

कंडिका- 5.

कोई भी संख्या अभाज्य संख्या है या नहीं, इसे जानने के लिए सर्वप्रथम उस संख्या का वर्गमूल निकाल लीजिए । प्राप्त वर्गमूल संख्या में से अगर दशमलव के बाद अंक हो, तो उसे उपयोग में नहीं आते हैं, अपितु दशमलव से पहले जो संख्या आती है, उस संख्या को +1 कर जो संख्या प्राप्त होती है, उस संख्या सहित उनके नीचे की तमाम संख्याओं  से भाज्य करने का प्रयास करते हैं । ज्ञात हो, सम संख्या तथा 0 और 5 'इकाई' अंक वाली संख्या स्वाभाविक है कि वह भाज्य होंगे । इसे छोड़कर अन्य सभी संख्याओं या अंकों से कटाने का प्रयास करेंगे, नहीं विभाजित होते हैं, तो वे संख्या अभाज्य होंगे, यथा-

37 का वर्गमूल = 6.0827625303 में 6 को रखते हैं, फिर 6+1 करते हैं, जो कि 7 प्राप्त होता है । अब 7 सहित उनके नीचे 1, 2, 3, 4, 5, 6 और 7 है, इन अंकों से 37 को विभाजित करने का प्रयास करते हैं, जो कि किसी से नहीं कटते हैं । विदित है, 37 सम संख्या भी नहीं है । इसलिए नियमानुकूल 1, 2, 4, 5, 6 से 37 को नहीं कटाते हैं, यह काम आसान के लिए भी है।

123 का वर्गमूल = 11.0905365064 में 11 रखते हैं, फिर 11+1 करते हैं, जो कि 12 प्राप्त होता है । अब 12 सहित उनके नीचे 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 है, इन अंकों से 123 को विभाजित करने का प्रयास करते हैं, जो कि 3 से कट जाते हैं । विदित है, 123 सम संख्या नहीं है । इसलिए नियमानुकूल 1, 2, 4, 5, 6, 8, 10, 12 से 123 को नहीं कटाते हैं, यह काम आसान के लिए भी है।

Rule of Method - 5

To find out whether a number is a prime number or not, first find the square root of that number.  If the square root number obtained is numbered after the decimal, it is not used, but the number that comes before the decimal, by +1 the number that is received, including all the numbers below them.  Let's try to divide.  Let it be known that even numbers and numbers with 0 and 5 'unit' digits are natural that they will be divisible.  Except this, we will try to deduct from all other numbers or numbers, if not divided, then those numbers will be prime, as-

 Square root of 37 = 6.0827625303 Put 6 in it, then do 6 + 1, which is 7.  Now they have 1, 2, 3, 4, 5, 6 and 7, including 7, trying to divide 37 by these digits, which are not cut off from anyone.  It is known that 37 is not even even.  So rules do not cut 1, 2, 4, 5, 6 to 37, this is also easy to do.

 Square root of 123 = 11.0905365064, put 11, then 11 + 1, which is 12.  Now they have 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12, including 12, trying to divide 123 by these digits, which are cut by 3.  It is known that 123 is not an even number.  So rules do not cut 1, 2, 4, 5, 6, 8, 10, 12 to 123, this is also easy to do.

कंडिका- 6.

आपवादिक स्थितियाँ कंडिका के साथ आबद्ध हो New PN के  लिए नियम और शर्त्तें यथाप्रसंगश: सम्मिलित की जाएगी!

Rule of Method - 6

In exceptional circumstances, be bound with the condyle, the rules and conditions for New PN will be incorporated as soon as possible ! The above approach can also be called Coronait Formula.


नमस्कार दोस्तों ! 

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10.30.2022

"स्वयं को परखिए, दूसरों को परखकर कुछ भी हासिल नहीं होने को है" 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में कवयित्री और लेखिका "नंदिता तनूजा" जी से रूबरू होइए...

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     30 October     इनबॉक्स इंटरव्यू     No comments   

अक्टूबर 2022 का अंतिम सफरनामा। भारत के दृष्टिकोण से इस माह का गौरवशाली महत्व है। तारीख 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और भारतरत्न लाल बहादुर शास्त्री का जन्म-जयंती है, वहीं 11 अक्टूबर को भारतरत्न लोकनायक जयप्रकाश नारायण, नानाजी देशमुख और महानायक अमिताभ बच्चन का जन्मदिवस है, तो 12 अक्टूबर को क्रांतिदूत राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि है। भारतरत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की जन्म-जयंती 15 अक्टूबर को है, तो 31 अक्टूबर को भारतरत्न सरदार पटेल की जन्म-जयंती और भारतरत्न इंदिरा गाँधी की पुण्यतिथि है। आइये, ऐसे ऐतिहासिक माह के लिए 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' के बहुचर्चित कॉलम 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में कवयित्री और लेखिका "नंदिता तनूजा" जी के गवेषणात्मक इंटरव्यू से हम रू-ब-रू होते हैं--

सुश्री नंदिता तनूजा 

प्र.(1.) आपके कार्यों/अवदानों को सोशल/प्रिंट मीडिया से जाना। इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के बारे में बताइये ?


उ:-

सर्वप्रथम वेब पत्रिका 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' के प्रधान-सह-संपादक जी को सादर नमन। मैं "नंदिता तनूजा" लखनऊ, उत्तर प्रदेश से हूँ। मेरे कार्यक्षेत्र बहुत विस्तृत तो नहीं, लेकिन मेरी आत्मा की सन्तुष्टि का मापदंड है। मैं पढ़ाई के साथ-साथ लिखती थी। समय के साथ पढ़ाई भी बढ़ी, तो लेखनकर्म भी। फिर नवंबर 2012 में मैंने facebook आईडी बनाई, एक नयी दुनिया में जहाँ मैं कुछ नहीं जानती थी, लेकिन मेरी आईडी मेरे निजी जीवन से भिन्न थी। जहाँ मैंने खुद को नंदिता कहा, जो कि बिल्कुल अनजान दुनिया की अनजान नंदिता। फिर मुझे कुछ ग्रुप्स के पोस्ट और लोग मिले, जो लिखते थे। उनसे पूछकर लिखना शुरू की अपने timeline पर सिर्फ मन की कहती और धीरे-धीरे 2015 में मेरे लेखन में इम्प्रूवमेंट हुआ। लोग मुझे पढ़ने लगे, ग्रुप्स ऐड किए और भी सीखने का मौका मिल पायी। इसी बीच विभिन्न ग्रुप की प्रतियोगिताओं में प्रतिभागी बनना शुरू की और इन सबके साथ नंदिता का वजूद सामने आना हुआ। मेरी नंदिता की पहचान "नंदिता तनूजा" ने पहली बार अपनी फोटो पोस्ट करके की। उसके बाद इस कार्यक्षेत्र में चलती चली जा रही, सीखती जा रही और मन तब भी खुश था और आज भी खुश है।


प्र.(2.) आप किसप्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?


उ:-

मैं यहाँ इस कार्यक्षेत्र में भी आऊँगी, तब पृष्ठभूमि में तो बेख़बर रही, क्योंकि कभी कुछ ऐसा सोचा ही नहीं। वैसे मैं व्यक्तिगत जीवन में प्राइवेट फर्म में अकाउंटेंट हूँ। मैं सिंगल मदर हूँ, जहाँ मेरे निजी जीवन का कार्यक्षेत्र यहाँ के कार्यक्षेत्र से कई गुने जरुरी है, लेकिन फिर भी मैंने अपने को इन दोनों कार्यक्षेत्र का सामंजस्य बनाना सीख ली है। मेरे परिवार और मित्र मुझे बराबर प्रोत्साहित करते हैं। वर्ष 2016 से मैं facebook की एक साहित्यिक संस्था 'सोपान' से जुड़ी हूँ, जहाँ मैं लेखन से संबंधित योगदान देती हूँ। मैं बंधक नहीं थी, ना हूँ और न ही कभी बंधन मुझे स्वीकार है। जब मैं स्वयं हूँ तो उस राह के योग्य भी मुझे होना है। मैंने अपने को इस पथ पर चलने का प्रयास की है और करूंगी भी। मेरे मार्गदर्शक हमेशा से समय रहा है और यही मेरा गुरु है। 


प्र.(3.) आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से प्रेरित अथवा लाभान्वित हो रहे हैं ?


उ:-

मेरे कार्यक्षेत्र से कितने लोग प्रभावित होंगे या हो सकते हैं, ये पढ़नेवालों से बेहतर और कोई नहीं बता सकते। मैं वही लिखना और कहना चाहती हूँ, जहाँ सत्य और सत्यता का ज्ञात हो। वैसे काल्पनिक रचनाएँ उत्साहवर्द्धन करती हैं, लेकिन यथार्थ आपको अवगत कराते हैं कि जीवन की धरातल में क्या-क्या हैं ? मैं नारीशक्ति, समाज के रिश्तों में दिखावों का खंडन और मतभेदों को समझकर लिखने का प्रयास करती हूँ। जहाँ आम हो या कोई भी इंसान ये सब जीवन के संघर्ष से अलग नहीं हैं और झूठ से कई गुने बेहतर सच है। सच का आगाज़ अत्यावश्यक है।


प्र.(4.) आपके कार्यों में जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या आपके संगठन रूबरू हुए, उनमें से कुछ बताइये ?


उ:-

आभासी दुनिया में अपने कार्यक्षेत्र के लिए मैंने कभी किसी की चाटुकारिता न की है, ना ही करूँगी। हाँ, मेरे अच्छाइयों ने मुझे आभास कराया कि हम जैसे हैं, वैसा ही सामनेवाले हैं- यह सोचना गलत है। मुझे जिन संगठनों ने मौका दिया है, अरसे से मैं उन संगठनों से जुड़ी हूँ और जहाँ लेखन की बात है, वहाँ मैं बंधक नहीं हूँ। एक समय था, जब किसी ने मुझे यह कहा था कि बगैर मंच के आप यहाँ टिक नहीं सकती हैं, आर्थिक व्यय तो करनी ही होगा, लेकिन मैंने कुछ समय बाद महसूस की कि पढ़ने के लिए खर्च करना जरूरी नहीं, अपितु पाठक तैयार करना जरूरी है। तब से आज तक मैं लेखन में आर्थिक व्यय नहीं करती। पढ़ना जरुरी है, मुझे लिखना आता है।


प्र.(5.) अपने कार्यक्षेत्र हेतु क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होने पड़े अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के शिकार तो न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाए ?  


उ:-

जब 2016 में मेरी पहली काव्य-संग्रह "अहसास के पल" आयी, तब मैंने पहली बार अपनी इस संग्रह के लिए कॉन्ट्रिब्यूशन की। मैं यह सोचकर खुश थी कि अब नंदिता को पूर्ण पहचान मिल जाएगी, फिर इस प्रक्रिया में तेज़ी पकड़ी। मैंने एहसास किया कि कविताएं सिर्फ पैसे देकर छप जाती हैं, क्योंकि हर कोई इनबॉक्स में लंबी बात के साथ पुस्तक छापने का अवसर और एकाउंट नम्बर तक आने की बात सबके बस का नहीं होता है कि क्या बोलूं या क्या कह कर मना करूं ? लोग क्या-क्या सोचेंगे ? फिर मैंने एक समय काव्यसंग्रह से जुड़ना बंद कर दी। संग्रह से ज्यादा निजी जीवन में मुझे धन की ज्यादा जरूरत है। मैंने खुद को इन संगठनों से दूर किया और वहीं रही जहाँ बिना धन के मुझे अवसर मिली, लेकिन न्यूजपेपर्स, पत्रिकाएं, कई वेबसाइट और एप्प्स मिलें, जिनसे मैं आज भी जुड़ी हूँ यथा- प्रतिलिपि, स्टोरी मिरर, मातृभारती जैसे पोर्टल पर लिखती हूँ। जहाँ चाह वहाँ राह यानी लिखना ही मेरे मन की सन्तुष्टि है। कभी आर्थिक व्यय भी करेंगे, लेकिन तब स्वयं मैं एहसास करुं कि 'मेरी रुह' में वो बात है तो जरुर किताब बनूंगी।


प्र.(6.) आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट हैं या उनसबों को आपके कार्य से कोई लेना देना नहीं !


उ:-

मैंने इस कार्यक्षेत्र का चयन नहीं की, अपितु इसने मुझे मेरी रुह से बाहर निकालकर एहसास का पंछी बनाया है। शुरुआत में थोड़ी मुश्किल हुई, क्योंकि मुझपर ज़िम्मेदारी है, जिसके लिए धनार्जन मेरे लिए ज्यादा जरुरी है। मेरे परिवार ने बस यही कहा कि ये सब छोड़ो अपना भविष्य देखो।  

समय के साथ सब बदले। मेरे परिवार की सोच भी। मेरे पापा-माँ, बड़े भैया, छोटे भाई, दीदी... आज मेरे परिवार और मेरे मित्रगण नंदिता तनूजा के साथ है। बहुत जरुरी होता है कि आपके सच के साथ परिवार का होना और मेरे पुत्र का साथ हमेशा ही मुझे मिला।


प्र.(7.) आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ?


उ:- 

बहुत से लोग, जिन्होंने मुझे सिखाया और जिनसे मैं सीखी। बहुत से लोग तो अब इस दुनिया में भी नहीं है, लेकिन कहते हैं न कि सिखानेवाले हमेशा ही मानस पटल पर अंकित रहते हैं। मुझे गिरानेवाले लोग भी मिले, किन्तु उनसे कहीं ज्यादा बचानेवाले मिले। सोपान संस्था, छंदमुक्त मंच, योर कोट, नोजाटों, जय-विजय पत्रिका, नवप्रदेश इत्यादि में मैंने अपने उसूलों को लेखनबद्ध की है। बस वहीं तक सीमित हूँ, जहाँ मेल आईडी से लेखन का कार्यक्षेत्र पूर्ण हो।


प्र.(8.) आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं ?


उ:-

मेरी कोशिश भारतीय संस्कृति से जुड़े रहकर लिखना है। ऐसा विचार प्रकट करना है, जहाँ लोग स्वयं और अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहें। हम अच्छा लिख सकते हैं, हम अच्छा बोल सकते हैं, लेकिन हमारे विचार उन्हें ऐसा करने को प्रेरित करेंगे, क्योंकि लेखन ही इस देश के विकास और संस्कृति को बहुत आगे ले जाएगा। भारतीय संस्कृति के विभिन्न रूपों को लेखन के ज़रिए दर्शाना और वास्तविक मौलिक कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक स्वयं से और सामाजिक तथा राजनीतिक स्तर पर सामंजस्य कर आगे बढ़ना होगा।


प्र.(9.) भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !


उ:-

भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने के लिए सबसे पहले स्वयं से शुरुआत करूँगी और लेखन के ज़रिए पूर्ण प्रयास होगी कि सुव्यवस्थित और सुदृढ़ राष्ट्र को स्थापित कर सकूँ।


प्र.(10.) इस कार्यक्षेत्र के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे या कोई सहयोग प्राप्त हुए या नहीं ? अगर मिले, तो क्या ?


उ:-

नहीं, मुझे इस कार्यक्षेत्र के लिए कभी कोई आर्थिक सहयोग प्राप्त नहीं हुई है, बल्कि सहयोग को लेकर कुछ खास मित्रो ने बिना किसी आर्थिक व्यय के मेरी रचनाओं को काव्य-संकलनों में जगह दिए हैं। अगर कभी मिले तो भी अपने कार्य के लिए संतुष्टि के साथ उपलब्धि है।


प्र.(11.) आपके कार्यक्षेत्र में कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे का सामना करना पड़ा हो !


उ:-

नहीं, इस कार्यक्षेत्र में कोई दोष नहीं, क्योंकि लिखने की स्वतंत्रता सभी को है। अगर विसंगतियां की चिंता है तो कहना यही है कि कुछ भी लिखने से बेहतर है, कुछ न लिखो। धोखा मिली कि एक साहित्यिक संगठन से जुड़ी। एक भाई भी बना और कुछ रुपए लौटा देने के नाम से मुझसे लिये, लेकिन न वह भाई थे, न ही अच्छे लेखक, क्योंकि वह तो व्यापारी ठहरे। मैंने कोई भी ऐसी स्थिति को क्रोध में आकर नहीं, अपितु एक सीख के तौर पर अंगीकार किया और समय रहते खुद में बदलाव किया। मैंने यह मौका दोबारा नहीं दिया। इस कार्यक्षेत्र में मैंने ऐसे लोगों के लिए एक सोशल डिस्टेंस बना रखा है। मेरे दृष्टिकोण में इस कार्यक्षेत्र में किसी को अपमानित करना या बुरा-भला कहकर स्वयं को खोना नहीं है, क्योंकि मैं यहाँ भी अपने उसूलों के बीच अपने सम्मान के साथ रहती हूँ, जैसा कि अपने निजी जीवन में रहती हूँ।


प्र.(12.) कोई पुस्तक, संकलन या ड्राफ्ट्स जो इस संबंध में प्रकाशित हो तो बताएँगे ?


उ:-

अभी तक इस कार्यक्षेत्र में मेरे कई काव्य-संग्रह में अहसास के पल, कलम के कदम, शब्दों के रंग, शब्दों के कारवां, तेरे-मेरे शब्द, काव्य-गंगा इत्यादि और लघुकथा-संग्रह में लघुकथा, तितिक्षा आदि प्रकाशित हुई हैं। इसके साथ ही कुछ पत्र-पत्रिकाओं में भी समसामयिक रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं, जिनमें मोह के धागे, मोह के धागे-1, रक्षाबंधन से प्रेरित विषय, नारीशक्ति माँ जैसी समसामयिक रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। मैं कहना चाहूँगी-

"जिनके नाम कुछ ही लिखा है,

एक सफ़र तय कर रही हूँ।

जो लिख गयी कलम-

वह मुझसे ज्यादा

लोगों को याद रहना चाहिए।"


प्र.(13.) इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?


उ:-

2016 में साहित्य सागर से युग सुरभि सम्मान व प्रमाण-पत्र, 2017 में उम्मीद की किरण साहित्य मंच साहित्य सम्मान व प्रमाण-पत्र, 2018 में उम्मीद की किरण साहित्य मंच साहित्य तुलसी सम्मान व प्रमाण-पत्र, 2018 में उम्मीद की किरण साहित्य मंच साहित्य कथा शिल्पी सम्मान व प्रमाण-पत्र, 2019 में साहित्य सम्पर्क संस्थान मंच से साहित्य सम्मान व प्रमाणपत्र। इसके अलावा मुझे कई संगठनों से मेरे लेखनकार्य को प्रोत्साहन मिला और एतदर्थ प्रमाणपत्र भी मिलते रहे हैं। वर्तमान समय में प्रतिलिपि से गोल्डन बैज मिला है। स्टोरी मिरर से कई प्रमाण -पत्र, ऑथर ऑफ द वीक, ऑथर ऑफ द मंथ की विजेता भी रही हूँ और ऑथर ऑफ द ईयर 2021 में नामांकनार्थ मेरे नाम भी सम्मिलित रही है।

      

प्र.(14.) कार्यक्षेत्र के इतर आप आजीविका हेतु क्या करते हैं तथा समाज और राष्ट्र को अपने कार्यक्षेत्र के प्रसंगश: क्या सन्देश देना चाहेंगे ? 


उ:- 

मैं बता चुकी हूँ कि मैं एक प्राइवेट फर्म में अकाउंटेंट हूँ, जहाँ मैं अपने कार्य को पूरी निष्ठा के साथ करती हूँ। अभी तक आजीविका का स्रोत यही है। फिर अपने पुत्र, परिजन और मित्रो को समय देती हूँ। मेरा संदेश आप सबों से यही है कि सबसे पहले स्वयं को परखिए, दूसरों को परखकर कुछ भी हासिल नहीं होने को है। खुद को परखकर अपने को पाना एक अहम स्थिति है कि यह जो आपका जीवन है, आखिर क्यों है ? इसके साथ ही जो गलत है, उसे गलत कहने का साहस कीजिए और जो सही है, उसका सच समझने और सुनने का प्रयास कीजिए। तभी तो जब एक सुयोग्य परिवार बनेगा, तो सभ्य समाज दिखेगा और फिर एक सुदृढ़ राष्ट्र स्वयं स्थापित होगा।


आप हँसती रहें, मुस्कराती रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें।"..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !

नमस्कार दोस्तों !

मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा। आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों  के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com

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10.25.2022

आइये पढ़ते हैं... 'बहन दूज़' के बारे में मानस-अवधारणा कैसे आई ?

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     25 October     मन की बात     No comments   

केवल भाई व भैयाओं के लंबी उम्र के लिए क्यों हो कोई पर्व ? बहनों के लिए भाइयों द्वारा कहाँ होती है कोई पर्व-त्योहार ! क्या बहनें (sisters) इंसान नहीं हैं, तो क्यों न अबकी बार से ...

#भैया_दूज
#ONLY_बहन_दूज_REVOLUTION
#BAHAN_दूज की हार्दिक शुभकामनायें ।

आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में पढ़ते हैं 'बहनदूज़' के बारे में मानस-अवधारणा कैसे आई ? आइए, पढ़िए...


पृथ्वी से 149.6 मिलियन किलोमीटर दूर है महापिंड 'सूर्य' यानी सूरज देवता, जो अपने आकाशगंगा की आगवानी करते हुए गत्यात्मक स्थिति में है, किन्तु हमारे सौर परिवार में बिल्कुल ही स्थिर प्रतीति लिए है, परंतु पृथ्वी के ऊपरी आवरण धरती से हम उसे सूर्योदय से सूर्यास्त की ओर कदम बढ़ाते व चलते देखते हैं ! यह आभासी लिए है।

सनातन विन्यासानुसार अथवा ग्रांथिक मान्यतानुसार सूर्यदेव भी अपने परिवार से जुड़े हैं, जिनका भी प्रतीक रूप में मानवाकार (धरती पर के सर्वोत्कृष्ट योनि) प्रविष्टि लिए है। हाँ, ऐसे ही लोककथा और ग्रांथिक कथ्यानुसार सूर्यदेव की धर्मपत्नी का नाम 'छाया' है, तो कोई उसे 'संज्ञा' भी कहते हैं !

वैज्ञानिक सोच तो यह है कि सूर्य हमेशा ही प्रकाशित है, बावजूद पौराणिक श्रुतियों और जनश्रुतियों के अनुसार जहाँ सूर्यास्त के बाद आई अंधकार अथवा छाया देवी सूर्यदेव की पत्नी है, इन्हीं छाया की कोख से यमराज नामक पुत्र तथा यमउणा नामक पुत्री ने जन्म लिये। यमराज और यमउणा में कौन बड़े हैं, यह स्पष्ट नहीं है ! परंतु यमउणा भाई यमराज से बड़ा स्नेह रखती हैं ! वर्त्तमान में क्या स्थिति है, यह सिर्फ़ कयास लगाए सकते हैं ! 

कालांतर में यमउणा 'यमुना' नदी कहलायी, तो यमराज 'मृत्यु' के देवता के रूप में अभिहित हुए। कथ्य है, यमुना नदी अपने भाई यमराज को हमेशा कहती रहती-- 'वह उनके घर आया करें', लेकिन ईमानदारी से वशीभूत हो कार्यों में नेकव्यस्त, वह बहन की कही बातों पर कभी खरे नहीं उतर सके ! किन्तु कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन बहन यमुना को भाई यमराज की याद आयी और इस तिथि को नहीं आने पर भाई से कभी भी न बोलने की कसमें खा बैठी, तब कहीं ईमानदार यमराज को प्रत्येक दैनंदिनी कार्य स्थगित रखते हुए आखिरकार बहन यमुना के द्वारे आना पड़ा। कहा जाता है, विक्रमी संवत के कार्तिक शुक्ल द्वितीया को प्रत्येक साल बहन के घर भाई आते हैं और तब एक-दूसरे के प्रति दुलार-पुचकार होता है। ऐसे में यहाँ 'बहन दूज़' होने की परंपरा जुटती है, किन्तु पुरुषवादी समाज अपनी जिद को आगे रखते हुए 'भैयादूज़' की नींव रख डालते हैं !

धरती पर भारत सरकार ने 'भगवानी कैलेंडर' के अनुसार 'इंसानी कैलेंडर' तैयार कराते हुए छुट्टियां 'डिक्लेअर' की। यम को भी अवकाश मिला। यम 'गिफ्ट' (उपहार) के साथ बहन से मिलने उनके घर पहुंचे। उनका गिफ्ट तो काफी शानदार था, उसने नरक में निवास करने वाले सभी को स्वर्ग का टिकट देकर नरकमुक्त कर दिया।

कहा जाता है, तब से धरतीवासी अपने मृतक संबंधियों को स्वर्गीय व स्वर्गवासी कहते हैं, नरकवासी नहीं ! इस भाई-बहन के इस प्रथम 'दूज़' (मिलन व द्वितीया) में भाई यम को देख बहन यमुना फूली न समाई और अतिउत्साही यम ने बहन से वर माँगने यानी गिफ्ट मांगने को कहा। यमुना गिफ्ट के रूप में भाई से भौतिक सुख न माँगकर, प्रतिवर्ष इसी दिन बहन का घर आने का वचन मांगी और कहा कि इस दिन कोई भाई बहन की व एक-दूसरे का आदर-सत्कार करें, तो मृत्यु उनके नजदीक नहीं फटकेंगे ! ध्यातव्य है, किसी की मृत्यु के बाद यमुना नदी किनारे अंतिम संस्कार भी बहन से मिलाने की परंपरा को आज भी जीवंतता दिए हुए हैं ! परंतु क्या यह 'दूज' (मिलन) भाइयों की लंबी उम्र के लिए है, तो यमराज नामक भाई ही तो खुद मृत्युदेव है, उन्हें लंबी उम्र की क्या आवश्यकता ? उसने तो धरतीवासियों के लिए यह परंपरा स्थापित कराकर खुद (यम) की उम्र को अमरत्व कर लिये !

चूँकि यह कहानी एक बहन के अभियान से शुरू होती है, इसलिए यह 'भैया दूज' नहीं, अपितु बहन को सम्मान देते हुए निश्चितश: इसे 'बहन दूज' कहा जाना चाहिए !

-- प्रधान प्रशासी सह संपादक।


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9.30.2022

"सितंबर 2022 के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में पढ़िए मोटिवेशनल शिक्षक और लेखक डॉ. अभिलाष मोदी से"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     30 September     इनबॉक्स इंटरव्यू     No comments   

मैसेंजर ऑफ आर्ट प्रत्येक माह 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पिछले कई सालों से प्रकाशित और प्रसारित करते आ रहे हैं। सितंबर 2022 का 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में हमारे पाठकबंधु डॉ.अभिलाष मोदी से रूबरू हो रहे हैं, जो एकसाथ लेखक, टील्स (TILS) एजुकेशन के फाउंडर, रचनात्मक टीचर और सबसे महत्वपूर्ण जीवन को समझने के क्रम में जिन्दगी के अनुशासित विद्यार्थी हैं। वह कई सालों से शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत हैं, यथा- कौशल रूप में वह बच्चों को अंग्रेजी सीखा रहे हैं और मानसिक रूप में वह बच्चों को सही समझ देने का प्रयास कर रहे है। डॉ. अभिलाष जी का कहना है कि जब आप काम में अपना शत-प्रतिशत देते हैं, तो छोटी-छोटी परेशानियाँ खुद-ब-खुद ख़त्म हो जाती हैं। आइए, सितंबर 2022 के 'इनबॉक्स इंटरव्यू में पढ़ते हैं और जानने की कोशिश करते हैं श्रीमान अभिलाष मोदी को, जिनके कार्य जहां युवाओं को प्रेरित करेंगे, वहीं आदरणीय पाठकगण उनके कार्यों को आत्मसात भी करेंगे...

डॉ.अभिलाष मोदी

प्र.(1.)आपके कार्यों/अवदानों को सोशल/प्रिंट मीडिया से जाना। इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के बारे में बताइये ?
उ:- 

वर्तमान में मैं अंग्रेजी शिक्षक हूँ और ज्यों-ज्यों यह जीवन समझ में आ रहा हैं, इस अनुभव के सापेक्ष मैं भाषा के साथ ही अपने विद्यार्थी के भाव को सही करने की कोशिश कर रहा हूँ। कुछ ही समय हुआ है, मेरा चयन राजस्थान पत्रिका की पॉवर लिस्ट में हुआ है, जो कि मुझे 11 वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में बच्चो को भाषा का अध्यापन के द्वारा व्यक्तित्व विकास का कार्य करने के लिए चुना गया। आगामी 5 वर्षों तक मेरे जीवन का उद्देश्य यही हैं कि मैं अंग्रेजी भाषा को आसान कर पाऊं, ताकि कोई भी इसे आसानी से सीख सकें, उसी को लेकर मेरे 3 शोधपत्रों को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ इंग्लिश एंड स्टडीज-आईजोस ने प्रकाशित किया हैं। अंग्रेजी भाषा व साहित्य के शोध पत्रों के प्रकाशन के लिए इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ इंग्लिश एंड स्टडीज दुनिया के प्रमुख जर्नल्स में एक हैं। शोधपत्रों में फल विषय टेंसेज का संज्ञानात्मक दृष्टिकोण, दूसरा विषय पेसिव वॉयस को सीखने की सरल बारीकियां और तीसरा विषय भाव, विचार व भाषा का सम्बन्ध है। इनसे पहले भी अंग्रेजी भाषा को आसान बनाने के लिए अपने 2 साथियों के साथ मिलकर मैंने एक रैप सोंग कंपोज़ किया था, जिसे भारत सरकार के एम.एस.डी.ई. मंत्रालय द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है। हमने एक गेम लेक्सो भी बनाया है, जिसे इंडिया बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में शामिल किया जा चुका हैं। मेरा उद्देश्य है कि लोग मेरे जिन्दगी से कुछ भी प्रेरणा लेकर खुशहाल और समृद्ध जीवन जीये।


प्र.(2.)आप किसप्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-

अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण करने के बाद मैंने एक फैक्ट्री में मजदूर के रूप में कार्य किया है। मेरे मन में हमेशा ही समाज के लिए कुछ सही करने का जज्बा बना रहता है। जब कड़ी मेहनत और लगन के बाद मुझे एक शिक्षक बनने का मौका मिला, तो 2 साल शिक्षक रहने के बाद ही मुझे इस बात की गहराई से एहसास हो गया कि शिक्षक होना एक सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारी है। एक आदर्श शिक्षक आगामी समय के लिए एक सही परिवार और एक सही समाज तैयार करता है। मैं इस बात को गहराई से मानता हूँ कि शिक्षक केवल किसी कौशल को हासिल करके कमाने का नाम नहीं, बल्कि सही मानसिकता के साथ आनेवाली पीढ़ियों के लिए एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करता है, जिसमें आनेवाली पीढ़ी का हर बच्चा जिंदगी जीने के लिए भी उत्साही हो सके। ध्यातव्य है, मैं वर्ष 2011 से अंग्रेजी पढ़ाने के साथ-साथ 'बच्चों को जिंदगी कैसे जीने हैं' की सीख दे रहा हूँ। शुरुआत में यह सफर काफी कठिन था, पर जैसे-जैसे विद्यार्थियों को अपने अंदर सकारात्मक परिवर्तन दिखने लगे, ठीक वैसे-वैसे अंग्रेजी सीखने के साथ ही व्यक्तित्व को अच्छा करने के ऊपर बच्चों का ध्यान जाता गया। मेरा एक ही उद्देश्य रहा है कि मेरी जिंदगी शेष जिंदगियों के लिए प्रेरणा बन सके। इसे लेकर मैंने कई राष्ट्रीय और विश्व कीर्तिमान हासिल किया है। मेरे द्वारा अंग्रेजी भाषा और व्यक्तित्व विषय पर लिखी किताबें लोगों को बेहतर भाषा और व्यक्तित्व निखारने में मदद कर रही है। मेरी कहानी को जोश टॉक्स व टेड ऐक्स पर भी दिखाया जा चुका है। मेरा मानना हैं कि हर युवा का एक ही लक्ष्य है- स्वयं में समाधान पाना, परिवार में संदेहमुक्त होना, नौकरी या व्यवसाय में समृद्ध होना और अगर यह तीनों एक युवा में होता है तो समाज हर डर से मुक्त हो जाएगा, एतदर्थ हर युवा को इसी लक्ष्य के लिए मेहनत करनी होगी, ताकि पीढ़ी दर पीढ़ी हम एक बेहतरीन इंसान को पा सकें। मेरा उद्देश्य और जीवन का लक्ष्य हैं कि मैं बच्चो को शिक्षा में कौशल के साथ-साथ मानसिकता की भी महत्ता को जन-जन तक पहुंचा पाऊं।


प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से प्रेरित अथवा लाभान्वित हो रहे हैं ?
उ:-

अभी तक एक लाख से ज्यादा लोगों के संपर्क में आ चुका हूँ, जिसे लेकर मैंने जिन्दगी को खुशियों के साथ जीना सिखाने की कोशिश कर रहा हूं, हालाँकि यह समझना 2 से 3 महीने की क्लास करने भर नहीं, अपितु इन्सान को अगर ये समझ में आ जाए कि वो हमेशा अपने परिवार के साथ रहकर भी खुश हो सकता हैं, तो वह करियर के लिए घरवालों का उपयोग न करके करियर को केवल भौतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए करेंगे। जो विद्यार्थी मेरे साथ एक विद्यार्थी-शिक्षक सम्बन्ध को ठीक से समझ पाते हैं, उनके पास लाइफ को लेकर ज्यादा समझ और आत्मविश्वास होता है और यह किसी भी प्रकार के भौतिक अचीवमेंट से कई गुना बड़ा है। मेरे प्रयास को उद्धृत लिंक से दृष्टिगोचित किया जा सकता है, यथा-

https://abhilashmodi.com/testi.php


प्र.(4.)आपके कार्यों में जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या आपके संगठन रूबरू हुए, उनमें से कुछ बताइये ?
उ:-

मुझे वैसे ऐसी कोई समस्या नहीं आई है या यूँ कह सकते हैं कि जब आप काम में अपना शत-प्रतिशत देते हैं, तो छोटी-छोटी परेशानियाँ खुद-ब-खुद ख़त्म हो जाती हैं।


प्र.(5.)अपने कार्यक्षेत्र हेतु क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होने पड़े अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के शिकार तो न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाए ?  
उ:-

जब आप इंग्लिश क्लास में लाइफ को सही से जीने की बात करते हैं, तो दिक्कत आना स्वाभाविक है, पर दुनिया में नकारात्मकता जैसे-जैसे बढ़ती गयी, वैसे-वैसे ही मेरा इंग्लिश क्लास में इसे पढ़ाना आसान हो गया, क्योंकि लोगों को इसकी ज्यादा जरूरत महसूस होने लग गई।


प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ?  आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट हैं या उनसबों को आपके कार्य से कोई लेना देना नहीं !

उ:-

हर इंसान अपनी उपयोगिता को साबित करने के लिए इच्छाशक्ति को बरकरार रखकर और उसे जानकर ही तृप्त होता है। जब मैं क्लास में पढ़ाता हूँ, तो मुझे ऐसा लगता है कि मैं कोई स्प्रिचुअल काम कर रहा हूँ। जैसा मैंने पहले भी बताया है कि शिक्षक बन कर कोई दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने में जो सहयोग दे सकते हैं, वह कोई और पेशे का इन्सान सोच भी नहीं सकता। खुद के परिवार के लोग ही नहीं वरन कई सारे परिवार के लोग खुश होते हैं, जब आपकी सही सोच से बच्चा केवल किसी कौशल को नहीं सीखता है, बल्कि एक सही मानसिकता के साथ भी जी पाता हैं।


प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ?
उ:-

दुनिया में अगर कोई भी इंसान कुछ कर पाते हैं, तो उसका सबसे बड़ा कारण होता है- उनका परिश्रम और साथ में उसके जीवन में कुछ ऐसे लोगों का होना, जो हमेशा उसे प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देते हैं। मेरे जिन्दगी में कई लोग रहे हैं, जिसे मैं कभी नहीं मिला, पर मैं उन्हें अपनी प्रेरणा मानता हूँ, क्योंकि उन्हीं के सहयोग से मैं जीवन में सही मुकाम पर पहुँच पाया। ऐसे लोगों में- संदीप माहेश्वरी, सद्गुरु, मिल्खा सिंह, डॉ. अब्दुल कलाम, महात्मा गाँधी इत्यादि। इन्हीं लोगों के साथ- साथ ऐसे भी कुछ लोग रहे हैं, जिन्होंने मेरी जिन्दगी को आसान बनाने में बहुत सहयोग दिए, वे हैं- दिव्यांशी शुक्ला, अजय सिंह चौधरी, प्रतीक सैनी, अनिरुद्ध वैष्णव भैया, सोम भैया, मेरी माँ श्रीमती मधु मोदी, रमेश सिंह दरोगा, मेरे परिवार के सभी सदस्य व मेरे सभी प्यारे स्टूडेंट्स।


 प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं ?
उ:-

मैं खुद भी जीवन को जीने की तरह जीना सीख रहा हूँ। इसके अनुसार यह भी समझ पा रहा हूँ कि संस्कृति का अर्थ है- जीने का ऐसा तरीका, जिनसे सभी लोग एक खुशहाली का जीवन जी सके और आने वाली पीढ़ी को एक बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा दे सके। भारतीय संस्कृति को बेहतर करने में मेरा कार्य मदद कर रहा है या करा रहा हैं।


प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-

भ्रष्टाचार का आधार है- इंसान की अधूरी समझ का होना। समाज में कई ऐसे लोग हैं, जिन्हें लगता हैं कि पैसा ही उनके सुख का एकमात्र कारक है, तो वह भ्रष्टाचार नहीं करेंगे तो क्या करेंगे ? मैं टीचिंग के माध्यम से बच्चों को एक बेहतर इंसान बनाने की सतत कोशिश कर रहा हूँ, क्योंकि लोगों की मानसिकता ठीक होगी, तो कोई भी भ्रष्टाचार नहीं करेगा।


प्र.(10.) इस कार्यक्षेत्र के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे या कोई सहयोग प्राप्त हुए या नहीं ? अगर मिले, तो क्या ?
उ:-

नहीं, न ही कभी ऐसी कोई जरूरत महसूस हुई।


प्र.(11.)आपके कार्यक्षेत्र में कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे का सामना करना पड़ा हो !
उ:-

नहीं।

प्र.(12.)कोई पुस्तक, संकलन या ड्राफ्ट्स जो इस संबंध में प्रकाशित हो तो बताएँगे ?
उ:-

मैं अबतक 4 पुस्तकों का प्रणयन किया है, जिनमें से 2 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनका नाम है- जस्ट स्पीक व विल डवलपमेंट। मेरे द्वारा अंग्रेजी भाषा और व्यक्तित्व निखारने पर अध्यापन को लेकर कई लोगों की भाषा बेहतर हुई है और व्यक्तित्व को लेकर समझ विकसित हुई है। लेखन के माध्यम से भी लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा हैं। इस संबंध में लिंक देखिए- 

https://abhilashmodi.com/gallery_News_Article.php 


प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?

उ:-

-- अभी तक मेरे द्वारा विभिन्न राष्ट्रीय, सरकारी संस्थानों, निजी व सरकारी कॉलेज और विश्वविद्यालय जैसे- आईसीएआई, आईसीएसआई, आईसीएमएआई में 1,00,000 से अधिक छात्रों को जीवन कौशल और सही व्यक्तित्व विकास की शिक्षा दी गई है। 

-- मेरे और मेरे कुछ मित्रो के द्वारा 'आई एम योर दोस्त' के जरिए 200 लोग को डिप्रेशन से बाहर निकालने का प्रयास किया गया है, यथा-

https://abhilashmodi.com/IAmYourDost.php

 --विभिन्न सामाजिक कार्यों के लिए गिनीज, लिम्का वर्ल्ड रिकॉर्ड और 8 बार इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में मेरा नाम शामिल हो चुका है।

-- TEDx टॉक (सबसे बड़ा वैश्विक मंच) के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय में आमंत्रित किया गया है और जोश टॉक्स (सबसे बड़े भारतीय मंच) में भी आमंत्रित किया गया है।

-- अंग्रेजी सीखने के लिए दुनिया का पहला रैप गीत बनाने के लिए भारत के कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय द्वारा सम्मानित किया गया था।

इस प्रकार की और उपलब्धियों को जानने के लिए कृपया नीचे उद्धृत लिंक को देखिए-

https://abhilashmodi.com/gallery.php


प्र.(14.)कार्यक्षेत्र के इतर आप आजीविका हेतु क्या करते हैं तथा समाज और राष्ट्र को अपने कार्यक्षेत्र के प्रसंगश: क्या सन्देश देना चाहेंगे ? 
उ:-

अभी मैं टील्स संस्थान व कई सारी दूसरी संस्थाओं पर बच्चों को अंग्रेजी व व्यक्तित्व निखार विषय पढ़ाता हूँ। मेरा ऐसा मानना हैं कि इंसान की भौतिक जरूरतें इतनी ज्यादा नहीं होती, जब उसकी भावनात्मक जरूरतें पूरी तरीके से नहीं भरती, तो वे भौतिकता से अपनी जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करते हैं और उसी के कारण उसके जीवन का एक बड़ा वक्त वो आजीविका के लिए देता हैं।

 आप हँसते रहें, मुस्कराते रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें....... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !

नमस्कार दोस्तों !

'मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा। आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो  हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com


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