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9.07.2021

'वर्त्तमान सच' (संस्मरण यात्रा)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     07 September     अतिथि कलम     No comments   

आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में 'अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस' के शुभ-अवसर पर पढ़ते हैं, लेखिका ऋतु सिंह की संस्मरण यात्रा व वर्त्तमान सच.......

लेखिका ऋतु सिंह
सात साल पहले जब मैं इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाया करती थी तब एक बार हम सब lecturers के साथ founder की मीटिंग रखी गई, जिसमें ये बातें डिस्कस की जानी थी कि स्टूडेंट्स की performance किस तरह और अच्छी की जा सकती है और क्या-क्या परेशानियां वे face कर रहे हैं...
कई लोगों ने जवाब दिया कि सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि जो ग्रामीण अंचल से आने वाले स्टूडेंट्स हैं उन्हें भाषा समझने और लिखने में बहुत परेशानी होती है इसलिए उनकी performance गिर जाती है।
जब मेरी बोलने की बारी आई तो मैंने ये बात तो मानी कि गाँव से आने वाले स्टूडेंट्स को भाषा पूरी तरह अचानक बदल जाने की वजह से शुरू में दिक्कत जरूर आती है, लेकिन इस बात से इन्कार किया कि उनकी performance इस वजह से खराब होती है।
मैंने कहा कि इसका सबसे बड़ा कारण है रुचि ना होते हुए भी जबरदस्ती इंजीनियरिंग कॉलेज में उनका admission करा दिया जाना क्योंकि कितने ही मां बाप ऐसे हैं जो सोचते हैं कि 4 साल बाद उनका बच्चा कुछ तो बनकर ही निकलेगा।
ज़ाहिर है कि ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थी जिन्हें पढ़ने में रुचि थी वे सेमेस्टर में अच्छा score करते थे जबकि English medium से निकले शहरी लड़के जिन्हें नहीं पढ़ना था वे नहीं पढ़ते थे !
ये बात इसलिए याद आ गई, क्योंकि सुनने में आया है कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में टेक्निकल कोर्स की पढ़ाई हिंदी में कराए जाने को रजामंदी दी है, जिसे एक तबका अच्छी पहल मान कर चल रहा है। उन्हें लगता है कि ऐसा होने से सुधार होगा।
मेरा तो यही मानना है कि टेक्निकल स्टडी हिंदी भाषा में दुगुनी मुश्किल है...
मुझे याद है कि फर्स्ट सेमेस्टर का सुशील बिश्नोई नाम का एक ठेठ गाँव का लड़का जब मेरे subject physics में 50 में से 48 नंबर लाया तब मैंने उसे क्लास में 51 रुपये भेंट किए थे और वह आँखों में नमी लिए मेरे पैर छूते हुए जमीन पर ही लेट गया था, उसे reward की आदत नहीं थी शायद !
उसका भोला चेहरा आज भी याद है, मुझे पूरी उम्मीद है कि वो आज जरूर किसी मुकाम पर होगा !

नमस्कार दोस्तों ! 

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