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10.07.2021

'भादो की धूप...'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     07 October     अतिथि कलम     No comments   

आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, प्रकृति प्रेमी कवि व लेखक श्री मिथिलेश कुमार राय की शानदार रचना 'भादो की धूप'.......

श्री मिथिलेश कुमार राय 
कक्का भादो की धूप को लेकर बैठे हुए थे. धूप थी भी ऐसी कि लोगों से अपने बारे में जबरदस्ती चर्चे करवा रही थी. वे बता रहे थे कि किसी किस्से में एक जगह जिक्र आता है कि भादो की धूप में एक ही दिन में कुम्हार के सारे बर्तन पक गए थे. तब से इस धूप की बड़ी प्रसिद्धि है. उन्होंने यह भी बताया कि इधर की एक कहावत में भादो की धूप की तुलना सौतन के बोल से की गई है, जो देह में आग लगा देती है !
धान रोपकर फारिग हुए गांव के लोग अब जूट सूखाने में लगे हुए थे. सामने खिली धूप में सोना जूट के गुच्छे चांदी सी चमक रही थी. हम पीपल के नीचे बने बांस के मचान पर बैठे अपने-अपने देह से पसीना सूखा रहे थे. कक्का कह रहे थे कि प्रकृति के जो भी नियम अस्तित्व में हैं वे सब के सब खेतिहरों को ध्यान में रखकर ही बनाए गए हैं. जैसे इस भादो की तीखी धूप को ही ले लो. वैसे तो भादो भी बारिश का ही महीना है लेकिन कभी-कभी इस महीने में धूप इतनी तीखी निकलती है कि इसके सामने लोगों को जेठ की धूप बौनी नजर आने लगती है. यह सब अकारण नहीं है. खेतिहर को धान के लिए बारिश और जूट को सूखाने के लिए धूप की जरूरत होती है. प्रकृति भादो में इन दोनों बातों का ध्यान रखती हैं. वे बता रहे थे कि भादो में जब घनघोर बारिश हो रही होती है तो खेतिहर अपने-अपने खेतों में झूमते धान के विरवे की कल्पना करते हैं और मंद-मंद मुस्कुराते रहते हैं. वही जब बादल के टुकड़े हवा के दबाव में कहीं और सरक जाते हैं और धूप तीखी होकर निकल आती है तो वे जूट को सूखाने निकल पड़ते हैं. कक्का कह रहे थे कि खूब तीखी धूप हो तो जूट अच्छे से सूखता है और चमकने लगता है. तब व्यापारी दो रुपये अधिक देकर भी उसे खरीदने में नहीं हिचकते हैं.

भादो में जब आसमान साफ होता है और काले-काले बादल के टुकड़े को हवा कहीं और उड़ाकर पहुंचा देती है, तब सूरज का रूप देखते ही बनता है. कक्का की माने तो तब जो धूप उगती है उसके सामने मई-जून की धूप पानी भरती नजर आती है. हालांकि भादो की धूप की चर्चा करते हुए उन्होंने यह भी बताया कि यह स्थाई नहीं होती. अभी प्रचंड धूप है तो यह जरूरी नहीं होता कि उसकी प्रचंडता दिन भर स्थिर ही रहेगी. जब तक हवा और बादल के टुकड़ों का ध्यान उस पर नहीं जाता है, तभी तक वह अपनी मनमानी करती है. हवा जैसे ही लौटती है, बादल के टुकड़े यहां-वहां से जमा होने लगते हैं. धूप बादलों का जमावड़ा देखते ही दूम दबाकर भाग जाती है और हमारे सामने रिमझिम वाला सुहाना मौसम उपस्थित हो जाता है.

असल में पांच-सात दिनों की लगातार बारिश के बाद दो दिनों से यह तीखी धूप निकल रही थी और इसको देखकर मनुष्य ही नहीं पेड़-पौधे और खेतों में लगी धान की फसल भी राहत पाती नजर आ रही थी. किसी के चेहरे पर भादो की इस तीखी धूप को लेकर कोई मलाल नहीं था. सब मुग्ध थे और आपस में ठिठोली भर कर रहे थे !

कक्का भी तो सूखते जूट की ओर बार-बार निहारकर भादो की इस धूप को धन्यवाद दे रहे थे !

नमस्कार दोस्तों ! 

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