केवल भाई व भैयाओं के लंबी उम्र के लिए क्यों हो कोई पर्व ? बहनों के लिए भाइयों द्वारा कहाँ होती है कोई पर्व-त्योहार ! क्या बहनें (sisters) इंसान नहीं हैं, तो क्यों न अबकी बार से ...
#ONLY_बहन_दूज_REVOLUTION
#BAHAN_दूज की हार्दिक शुभकामनायें ।
आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में पढ़ते हैं 'बहनदूज़' के बारे में मानस-अवधारणा कैसे आई ? आइए, पढ़िए...
पृथ्वी से 149.6 मिलियन किलोमीटर दूर है महापिंड 'सूर्य' यानी सूरज देवता, जो अपने आकाशगंगा की आगवानी करते हुए गत्यात्मक स्थिति में है, किन्तु हमारे सौर परिवार में बिल्कुल ही स्थिर प्रतीति लिए है, परंतु पृथ्वी के ऊपरी आवरण धरती से हम उसे सूर्योदय से सूर्यास्त की ओर कदम बढ़ाते व चलते देखते हैं ! यह आभासी लिए है।
सनातन विन्यासानुसार अथवा ग्रांथिक मान्यतानुसार सूर्यदेव भी अपने परिवार से जुड़े हैं, जिनका भी प्रतीक रूप में मानवाकार (धरती पर के सर्वोत्कृष्ट योनि) प्रविष्टि लिए है। हाँ, ऐसे ही लोककथा और ग्रांथिक कथ्यानुसार सूर्यदेव की धर्मपत्नी का नाम 'छाया' है, तो कोई उसे 'संज्ञा' भी कहते हैं !
वैज्ञानिक सोच तो यह है कि सूर्य हमेशा ही प्रकाशित है, बावजूद पौराणिक श्रुतियों और जनश्रुतियों के अनुसार जहाँ सूर्यास्त के बाद आई अंधकार अथवा छाया देवी सूर्यदेव की पत्नी है, इन्हीं छाया की कोख से यमराज नामक पुत्र तथा यमउणा नामक पुत्री ने जन्म लिये। यमराज और यमउणा में कौन बड़े हैं, यह स्पष्ट नहीं है ! परंतु यमउणा भाई यमराज से बड़ा स्नेह रखती हैं ! वर्त्तमान में क्या स्थिति है, यह सिर्फ़ कयास लगाए सकते हैं !
कालांतर में यमउणा 'यमुना' नदी कहलायी, तो यमराज 'मृत्यु' के देवता के रूप में अभिहित हुए। कथ्य है, यमुना नदी अपने भाई यमराज को हमेशा कहती रहती-- 'वह उनके घर आया करें', लेकिन ईमानदारी से वशीभूत हो कार्यों में नेकव्यस्त, वह बहन की कही बातों पर कभी खरे नहीं उतर सके ! किन्तु कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन बहन यमुना को भाई यमराज की याद आयी और इस तिथि को नहीं आने पर भाई से कभी भी न बोलने की कसमें खा बैठी, तब कहीं ईमानदार यमराज को प्रत्येक दैनंदिनी कार्य स्थगित रखते हुए आखिरकार बहन यमुना के द्वारे आना पड़ा। कहा जाता है, विक्रमी संवत के कार्तिक शुक्ल द्वितीया को प्रत्येक साल बहन के घर भाई आते हैं और तब एक-दूसरे के प्रति दुलार-पुचकार होता है। ऐसे में यहाँ 'बहन दूज़' होने की परंपरा जुटती है, किन्तु पुरुषवादी समाज अपनी जिद को आगे रखते हुए 'भैयादूज़' की नींव रख डालते हैं !
धरती पर भारत सरकार ने 'भगवानी कैलेंडर' के अनुसार 'इंसानी कैलेंडर' तैयार कराते हुए छुट्टियां 'डिक्लेअर' की। यम को भी अवकाश मिला। यम 'गिफ्ट' (उपहार) के साथ बहन से मिलने उनके घर पहुंचे। उनका गिफ्ट तो काफी शानदार था, उसने नरक में निवास करने वाले सभी को स्वर्ग का टिकट देकर नरकमुक्त कर दिया।
कहा जाता है, तब से धरतीवासी अपने मृतक संबंधियों को स्वर्गीय व स्वर्गवासी कहते हैं, नरकवासी नहीं ! इस भाई-बहन के इस प्रथम 'दूज़' (मिलन व द्वितीया) में भाई यम को देख बहन यमुना फूली न समाई और अतिउत्साही यम ने बहन से वर माँगने यानी गिफ्ट मांगने को कहा। यमुना गिफ्ट के रूप में भाई से भौतिक सुख न माँगकर, प्रतिवर्ष इसी दिन बहन का घर आने का वचन मांगी और कहा कि इस दिन कोई भाई बहन की व एक-दूसरे का आदर-सत्कार करें, तो मृत्यु उनके नजदीक नहीं फटकेंगे ! ध्यातव्य है, किसी की मृत्यु के बाद यमुना नदी किनारे अंतिम संस्कार भी बहन से मिलाने की परंपरा को आज भी जीवंतता दिए हुए हैं ! परंतु क्या यह 'दूज' (मिलन) भाइयों की लंबी उम्र के लिए है, तो यमराज नामक भाई ही तो खुद मृत्युदेव है, उन्हें लंबी उम्र की क्या आवश्यकता ? उसने तो धरतीवासियों के लिए यह परंपरा स्थापित कराकर खुद (यम) की उम्र को अमरत्व कर लिये !
चूँकि यह कहानी एक बहन के अभियान से शुरू होती है, इसलिए यह 'भैया दूज' नहीं, अपितु बहन को सम्मान देते हुए निश्चितश: इसे 'बहन दूज' कहा जाना चाहिए !
-- प्रधान प्रशासी सह संपादक।
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