अक्टूबर 2022 का अंतिम सफरनामा। भारत के दृष्टिकोण से इस माह का गौरवशाली महत्व है। तारीख 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और भारतरत्न लाल बहादुर शास्त्री का जन्म-जयंती है, वहीं 11 अक्टूबर को भारतरत्न लोकनायक जयप्रकाश नारायण, नानाजी देशमुख और महानायक अमिताभ बच्चन का जन्मदिवस है, तो 12 अक्टूबर को क्रांतिदूत राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि है। भारतरत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की जन्म-जयंती 15 अक्टूबर को है, तो 31 अक्टूबर को भारतरत्न सरदार पटेल की जन्म-जयंती और भारतरत्न इंदिरा गाँधी की पुण्यतिथि है। आइये, ऐसे ऐतिहासिक माह के लिए 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' के बहुचर्चित कॉलम 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में कवयित्री और लेखिका "नंदिता तनूजा" जी के गवेषणात्मक इंटरव्यू से हम रू-ब-रू होते हैं--
प्र.(1.) आपके कार्यों/अवदानों को सोशल/प्रिंट मीडिया से जाना। इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के बारे में बताइये ?
उ:-
सर्वप्रथम वेब पत्रिका 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' के प्रधान-सह-संपादक जी को सादर नमन। मैं "नंदिता तनूजा" लखनऊ, उत्तर प्रदेश से हूँ। मेरे कार्यक्षेत्र बहुत विस्तृत तो नहीं, लेकिन मेरी आत्मा की सन्तुष्टि का मापदंड है। मैं पढ़ाई के साथ-साथ लिखती थी। समय के साथ पढ़ाई भी बढ़ी, तो लेखनकर्म भी। फिर नवंबर 2012 में मैंने facebook आईडी बनाई, एक नयी दुनिया में जहाँ मैं कुछ नहीं जानती थी, लेकिन मेरी आईडी मेरे निजी जीवन से भिन्न थी। जहाँ मैंने खुद को नंदिता कहा, जो कि बिल्कुल अनजान दुनिया की अनजान नंदिता। फिर मुझे कुछ ग्रुप्स के पोस्ट और लोग मिले, जो लिखते थे। उनसे पूछकर लिखना शुरू की अपने timeline पर सिर्फ मन की कहती और धीरे-धीरे 2015 में मेरे लेखन में इम्प्रूवमेंट हुआ। लोग मुझे पढ़ने लगे, ग्रुप्स ऐड किए और भी सीखने का मौका मिल पायी। इसी बीच विभिन्न ग्रुप की प्रतियोगिताओं में प्रतिभागी बनना शुरू की और इन सबके साथ नंदिता का वजूद सामने आना हुआ। मेरी नंदिता की पहचान "नंदिता तनूजा" ने पहली बार अपनी फोटो पोस्ट करके की। उसके बाद इस कार्यक्षेत्र में चलती चली जा रही, सीखती जा रही और मन तब भी खुश था और आज भी खुश है।
प्र.(2.) आप किसप्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैं यहाँ इस कार्यक्षेत्र में भी आऊँगी, तब पृष्ठभूमि में तो बेख़बर रही, क्योंकि कभी कुछ ऐसा सोचा ही नहीं। वैसे मैं व्यक्तिगत जीवन में प्राइवेट फर्म में अकाउंटेंट हूँ। मैं सिंगल मदर हूँ, जहाँ मेरे निजी जीवन का कार्यक्षेत्र यहाँ के कार्यक्षेत्र से कई गुने जरुरी है, लेकिन फिर भी मैंने अपने को इन दोनों कार्यक्षेत्र का सामंजस्य बनाना सीख ली है। मेरे परिवार और मित्र मुझे बराबर प्रोत्साहित करते हैं। वर्ष 2016 से मैं facebook की एक साहित्यिक संस्था 'सोपान' से जुड़ी हूँ, जहाँ मैं लेखन से संबंधित योगदान देती हूँ। मैं बंधक नहीं थी, ना हूँ और न ही कभी बंधन मुझे स्वीकार है। जब मैं स्वयं हूँ तो उस राह के योग्य भी मुझे होना है। मैंने अपने को इस पथ पर चलने का प्रयास की है और करूंगी भी। मेरे मार्गदर्शक हमेशा से समय रहा है और यही मेरा गुरु है।
प्र.(3.) आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से प्रेरित अथवा लाभान्वित हो रहे हैं ?
उ:-
मेरे कार्यक्षेत्र से कितने लोग प्रभावित होंगे या हो सकते हैं, ये पढ़नेवालों से बेहतर और कोई नहीं बता सकते। मैं वही लिखना और कहना चाहती हूँ, जहाँ सत्य और सत्यता का ज्ञात हो। वैसे काल्पनिक रचनाएँ उत्साहवर्द्धन करती हैं, लेकिन यथार्थ आपको अवगत कराते हैं कि जीवन की धरातल में क्या-क्या हैं ? मैं नारीशक्ति, समाज के रिश्तों में दिखावों का खंडन और मतभेदों को समझकर लिखने का प्रयास करती हूँ। जहाँ आम हो या कोई भी इंसान ये सब जीवन के संघर्ष से अलग नहीं हैं और झूठ से कई गुने बेहतर सच है। सच का आगाज़ अत्यावश्यक है।
प्र.(4.) आपके कार्यों में जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या आपके संगठन रूबरू हुए, उनमें से कुछ बताइये ?
उ:-
आभासी दुनिया में अपने कार्यक्षेत्र के लिए मैंने कभी किसी की चाटुकारिता न की है, ना ही करूँगी। हाँ, मेरे अच्छाइयों ने मुझे आभास कराया कि हम जैसे हैं, वैसा ही सामनेवाले हैं- यह सोचना गलत है। मुझे जिन संगठनों ने मौका दिया है, अरसे से मैं उन संगठनों से जुड़ी हूँ और जहाँ लेखन की बात है, वहाँ मैं बंधक नहीं हूँ। एक समय था, जब किसी ने मुझे यह कहा था कि बगैर मंच के आप यहाँ टिक नहीं सकती हैं, आर्थिक व्यय तो करनी ही होगा, लेकिन मैंने कुछ समय बाद महसूस की कि पढ़ने के लिए खर्च करना जरूरी नहीं, अपितु पाठक तैयार करना जरूरी है। तब से आज तक मैं लेखन में आर्थिक व्यय नहीं करती। पढ़ना जरुरी है, मुझे लिखना आता है।
प्र.(5.) अपने कार्यक्षेत्र हेतु क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होने पड़े अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के शिकार तो न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाए ?
उ:-
जब 2016 में मेरी पहली काव्य-संग्रह "अहसास के पल" आयी, तब मैंने पहली बार अपनी इस संग्रह के लिए कॉन्ट्रिब्यूशन की। मैं यह सोचकर खुश थी कि अब नंदिता को पूर्ण पहचान मिल जाएगी, फिर इस प्रक्रिया में तेज़ी पकड़ी। मैंने एहसास किया कि कविताएं सिर्फ पैसे देकर छप जाती हैं, क्योंकि हर कोई इनबॉक्स में लंबी बात के साथ पुस्तक छापने का अवसर और एकाउंट नम्बर तक आने की बात सबके बस का नहीं होता है कि क्या बोलूं या क्या कह कर मना करूं ? लोग क्या-क्या सोचेंगे ? फिर मैंने एक समय काव्यसंग्रह से जुड़ना बंद कर दी। संग्रह से ज्यादा निजी जीवन में मुझे धन की ज्यादा जरूरत है। मैंने खुद को इन संगठनों से दूर किया और वहीं रही जहाँ बिना धन के मुझे अवसर मिली, लेकिन न्यूजपेपर्स, पत्रिकाएं, कई वेबसाइट और एप्प्स मिलें, जिनसे मैं आज भी जुड़ी हूँ यथा- प्रतिलिपि, स्टोरी मिरर, मातृभारती जैसे पोर्टल पर लिखती हूँ। जहाँ चाह वहाँ राह यानी लिखना ही मेरे मन की सन्तुष्टि है। कभी आर्थिक व्यय भी करेंगे, लेकिन तब स्वयं मैं एहसास करुं कि 'मेरी रुह' में वो बात है तो जरुर किताब बनूंगी।
प्र.(6.) आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट हैं या उनसबों को आपके कार्य से कोई लेना देना नहीं !
उ:-
मैंने इस कार्यक्षेत्र का चयन नहीं की, अपितु इसने मुझे मेरी रुह से बाहर निकालकर एहसास का पंछी बनाया है। शुरुआत में थोड़ी मुश्किल हुई, क्योंकि मुझपर ज़िम्मेदारी है, जिसके लिए धनार्जन मेरे लिए ज्यादा जरुरी है। मेरे परिवार ने बस यही कहा कि ये सब छोड़ो अपना भविष्य देखो।
समय के साथ सब बदले। मेरे परिवार की सोच भी। मेरे पापा-माँ, बड़े भैया, छोटे भाई, दीदी... आज मेरे परिवार और मेरे मित्रगण नंदिता तनूजा के साथ है। बहुत जरुरी होता है कि आपके सच के साथ परिवार का होना और मेरे पुत्र का साथ हमेशा ही मुझे मिला।
प्र.(7.) आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ?
उ:-
बहुत से लोग, जिन्होंने मुझे सिखाया और जिनसे मैं सीखी। बहुत से लोग तो अब इस दुनिया में भी नहीं है, लेकिन कहते हैं न कि सिखानेवाले हमेशा ही मानस पटल पर अंकित रहते हैं। मुझे गिरानेवाले लोग भी मिले, किन्तु उनसे कहीं ज्यादा बचानेवाले मिले। सोपान संस्था, छंदमुक्त मंच, योर कोट, नोजाटों, जय-विजय पत्रिका, नवप्रदेश इत्यादि में मैंने अपने उसूलों को लेखनबद्ध की है। बस वहीं तक सीमित हूँ, जहाँ मेल आईडी से लेखन का कार्यक्षेत्र पूर्ण हो।
प्र.(8.) आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं ?
उ:-
मेरी कोशिश भारतीय संस्कृति से जुड़े रहकर लिखना है। ऐसा विचार प्रकट करना है, जहाँ लोग स्वयं और अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहें। हम अच्छा लिख सकते हैं, हम अच्छा बोल सकते हैं, लेकिन हमारे विचार उन्हें ऐसा करने को प्रेरित करेंगे, क्योंकि लेखन ही इस देश के विकास और संस्कृति को बहुत आगे ले जाएगा। भारतीय संस्कृति के विभिन्न रूपों को लेखन के ज़रिए दर्शाना और वास्तविक मौलिक कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक स्वयं से और सामाजिक तथा राजनीतिक स्तर पर सामंजस्य कर आगे बढ़ना होगा।
प्र.(9.) भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने के लिए सबसे पहले स्वयं से शुरुआत करूँगी और लेखन के ज़रिए पूर्ण प्रयास होगी कि सुव्यवस्थित और सुदृढ़ राष्ट्र को स्थापित कर सकूँ।
प्र.(10.) इस कार्यक्षेत्र के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे या कोई सहयोग प्राप्त हुए या नहीं ? अगर मिले, तो क्या ?
उ:-
नहीं, मुझे इस कार्यक्षेत्र के लिए कभी कोई आर्थिक सहयोग प्राप्त नहीं हुई है, बल्कि सहयोग को लेकर कुछ खास मित्रो ने बिना किसी आर्थिक व्यय के मेरी रचनाओं को काव्य-संकलनों में जगह दिए हैं। अगर कभी मिले तो भी अपने कार्य के लिए संतुष्टि के साथ उपलब्धि है।
प्र.(11.) आपके कार्यक्षेत्र में कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे का सामना करना पड़ा हो !
उ:-
नहीं, इस कार्यक्षेत्र में कोई दोष नहीं, क्योंकि लिखने की स्वतंत्रता सभी को है। अगर विसंगतियां की चिंता है तो कहना यही है कि कुछ भी लिखने से बेहतर है, कुछ न लिखो। धोखा मिली कि एक साहित्यिक संगठन से जुड़ी। एक भाई भी बना और कुछ रुपए लौटा देने के नाम से मुझसे लिये, लेकिन न वह भाई थे, न ही अच्छे लेखक, क्योंकि वह तो व्यापारी ठहरे। मैंने कोई भी ऐसी स्थिति को क्रोध में आकर नहीं, अपितु एक सीख के तौर पर अंगीकार किया और समय रहते खुद में बदलाव किया। मैंने यह मौका दोबारा नहीं दिया। इस कार्यक्षेत्र में मैंने ऐसे लोगों के लिए एक सोशल डिस्टेंस बना रखा है। मेरे दृष्टिकोण में इस कार्यक्षेत्र में किसी को अपमानित करना या बुरा-भला कहकर स्वयं को खोना नहीं है, क्योंकि मैं यहाँ भी अपने उसूलों के बीच अपने सम्मान के साथ रहती हूँ, जैसा कि अपने निजी जीवन में रहती हूँ।
प्र.(12.) कोई पुस्तक, संकलन या ड्राफ्ट्स जो इस संबंध में प्रकाशित हो तो बताएँगे ?
उ:-
अभी तक इस कार्यक्षेत्र में मेरे कई काव्य-संग्रह में अहसास के पल, कलम के कदम, शब्दों के रंग, शब्दों के कारवां, तेरे-मेरे शब्द, काव्य-गंगा इत्यादि और लघुकथा-संग्रह में लघुकथा, तितिक्षा आदि प्रकाशित हुई हैं। इसके साथ ही कुछ पत्र-पत्रिकाओं में भी समसामयिक रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं, जिनमें मोह के धागे, मोह के धागे-1, रक्षाबंधन से प्रेरित विषय, नारीशक्ति माँ जैसी समसामयिक रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। मैं कहना चाहूँगी-
"जिनके नाम कुछ ही लिखा है,
एक सफ़र तय कर रही हूँ।
जो लिख गयी कलम-
वह मुझसे ज्यादा
लोगों को याद रहना चाहिए।"
प्र.(13.) इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
2016 में साहित्य सागर से युग सुरभि सम्मान व प्रमाण-पत्र, 2017 में उम्मीद की किरण साहित्य मंच साहित्य सम्मान व प्रमाण-पत्र, 2018 में उम्मीद की किरण साहित्य मंच साहित्य तुलसी सम्मान व प्रमाण-पत्र, 2018 में उम्मीद की किरण साहित्य मंच साहित्य कथा शिल्पी सम्मान व प्रमाण-पत्र, 2019 में साहित्य सम्पर्क संस्थान मंच से साहित्य सम्मान व प्रमाणपत्र। इसके अलावा मुझे कई संगठनों से मेरे लेखनकार्य को प्रोत्साहन मिला और एतदर्थ प्रमाणपत्र भी मिलते रहे हैं। वर्तमान समय में प्रतिलिपि से गोल्डन बैज मिला है। स्टोरी मिरर से कई प्रमाण -पत्र, ऑथर ऑफ द वीक, ऑथर ऑफ द मंथ की विजेता भी रही हूँ और ऑथर ऑफ द ईयर 2021 में नामांकनार्थ मेरे नाम भी सम्मिलित रही है।
प्र.(14.) कार्यक्षेत्र के इतर आप आजीविका हेतु क्या करते हैं तथा समाज और राष्ट्र को अपने कार्यक्षेत्र के प्रसंगश: क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
मैं बता चुकी हूँ कि मैं एक प्राइवेट फर्म में अकाउंटेंट हूँ, जहाँ मैं अपने कार्य को पूरी निष्ठा के साथ करती हूँ। अभी तक आजीविका का स्रोत यही है। फिर अपने पुत्र, परिजन और मित्रो को समय देती हूँ। मेरा संदेश आप सबों से यही है कि सबसे पहले स्वयं को परखिए, दूसरों को परखकर कुछ भी हासिल नहीं होने को है। खुद को परखकर अपने को पाना एक अहम स्थिति है कि यह जो आपका जीवन है, आखिर क्यों है ? इसके साथ ही जो गलत है, उसे गलत कहने का साहस कीजिए और जो सही है, उसका सच समझने और सुनने का प्रयास कीजिए। तभी तो जब एक सुयोग्य परिवार बनेगा, तो सभ्य समाज दिखेगा और फिर एक सुदृढ़ राष्ट्र स्वयं स्थापित होगा।
आप हँसती रहें, मुस्कराती रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें।"..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
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