आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, सुश्री दिव्या श्री की अद्भुत कविता.......
सुश्री दिव्या श्री |
देह से अदेह होने की यात्रा तक
संगीत की मृदुल चाल तुम्हारे साथ रही
तुम्हारे स्वर की पवित्रता
संगीत के पोर-पोर से झलकती है
जब तुम गाती हो-
लग जा गले कि फिर ये हंसी रात हो न हो
तुम्हारी आवाज आत्मा की आवाज लगती है
जहाँ न शोर होता है न भय
होती है आँखों के सामने प्रेमी की उदास भरी एक तस्वीर
तुम्हारी आवाज ईश्वर की आवाज है
कहते हुए आत्मा प्रेम की बारिश से भींग जाती है
तुम प्रेमियों के वे अनकहे शब्द हो
जिसे तुम्हारी आवाज मिली
तुम्हें सुनते हुए
सुन लेती हूँ कई अनकही बातें भी
जिसे बिना सुने ही छोड़ आई थी
और जो छोड़ गया है
उसे कहने के लिए भी सुनती हूँ तुम्हें बार-बार
दुनियाभर के प्रेमियों के शब्द
तुम्हारे स्वरों में कैद हैं-
उनके दुखों पर लगे हैं तुम्हारे सुर के मलहम
जो एक उम्मीद है आने वाले दिनों में थिरकने की।
नमस्कार दोस्तों !
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