आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, कवयित्री नंदिता तनूजा की असाधारण रचना.......
ज़िस्म साथ छोड़े
पूछो न हाल क्या होता
पल में सब छूटे सांसो से
रूह खुद से बेनाम होती हैं
अपनों के लिए सिर्फ तड़प
आँखों में ज़िन्दगी दिखती
पल में सब छूटे सांसों से
रूह अपनों से अंजान होती है
वक़्त बेवक़्त कभी आना
किस्मत का आग़ाज़ होता
पल में सब छूटे सांसो से
रूह एक वक़्त पे जुदा होती है
न कोई फ़रियाद दूरतलक़
सन्नाटे का मंज़र मिलता
पल में सब छूटे सांसो से
रूह पे किसकी नज़र होती है
आँखों में अश्को का समंदर
दिल मौन से बेहाल होता
पल में सब छूटे सांसो से
रूह दर्द से बेखबर होती है
छोड़ के जाने वाले बेगाने
कब तक कोई याद करता
पल में सब छूटे सांसो से
रूह आहत से निज़ात होती है
नंदिता तू भी एक ज़िस्म
ज़िस्म ही तो ख़ाक होता
पल में सब छूटे सांसो से
रूह आखिर बेज़ान होती है !
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं। इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।
0 comments:
Post a Comment