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2.15.2021

कालजयी कृति 'कफ़न' का पोस्टमार्टम...(लघु प्रेरक समीक्षा)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     15 February     समीक्षा     No comments   

आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, वेंटिलेटर इश्क़ के लेखक द्वारा समीक्षित कथासम्राट प्रेमचंद की कथा कफ़न की समीक्षा.......

मैसेंजर ऑफ आर्ट

प्रेमचंद की बहुपठित कहानी 'कफ़न' !

अगर इसे मैं अधूरी कहानी कहूँ, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योंकि कथाकार ने कहानी के पात्र 'बुधिया' को ऐसे मोड़ पर छोड़ देते हैं, जहाँ से आगे बढ़ने को लेकर आम पाठक यह कल्पना नहीं कर सकते कि क्यों आखिर कथा सम्राट की कलम डर कर रुक गयी या तो उस समय की परिस्थितियां ने उन्हें जान-बूझकर कथा को आगे बढ़ने ही नहीं दिया ?

लोगों को लगी भूख व्यथा लिए तो होती है, किन्तु किसी एक वर्ग की दशा पर लिखना टेढ़ी लकीर हो गई ? फिर क्यों, कहानी में उच्च वर्णों के छल-प्रपंच का सच नहीं लिख पाए ! कहानी में उद्धृत अग्रांकित प्रस्तुत वाक्य यह साबित करता है कि प्रेम के मुंशी ने जान-बूझकर अपनी कलमीधार को रोक दिए-

"वही लोग देंगे, जिन्होंने अबकी दिया। हाँ, अबकी रुपये हमारे हाथ न आएँगे........।"

नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email-messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।

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