मैसेंजर ऑफ आर्ट में आज पढ़ते हैं कवयित्री मनीषा श्री रचित अतुलनीय कविता ! आइये, देर न करते हुए इसे पढ़ ही लेते हैं......
हर दरवाज़ा किसी प्रतीक्षा में
यह मेरी प्रतीक्षा में था
हर दरवाज़े के पीछे
कुछ जोड़ी आँखे राह देखती हैं
कोई मेरी राह ताक रहा था
मुश्किल था दरवाज़े को खोलना
उसका धर्म दुरुस्त था
कठिन था मुझे रोकना
मेरी जिज्ञासा असीमित थी
दरवाज़ा निर्जीव था
इंतज़ार साँस ले रहा था
मैं जीवन के साथ थी
जीवन के साथ हूँ
दरवाज़ा खुल गया
जीवन मुक्त हो गया।
नमस्कार दोस्तों !
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