आइये, मैसेंजर ऑफ ऑर्ट के प्रस्तुतांक में पढ़ते हैं श्रीमान राजेश सेन द्वारा लिखी हुई लघु आलेख......
'साहित्य' की देह खतरे में है !
सवाल- क्यों और कैसे ?
क्योंकि समाज लगातार असंवेदनशील होता जा रहा है और पाठक वर्ग साहित्य से अलूप।
... और जब समाज में संवेदनशीलता लगातार ऐसे ही घटती रहेगी और पाठक वर्ग अपनी संवेदनाएं खोता रहेगा तो कैसा साहित्य और काहे का साहित्यकार ।
असंवेदनशील होकर मरता हुआ पाठक वर्ग कभी साहित्य की प्राणदायी खाद-पानी-ऊर्जा नहीं बन सकता।
दरअसल, समकालीन साहित्यकारों का बौद्धिक भोगवादी अहम् समाज में मर रही संवेदनाओं की रक्षा करने में सिरे से नाकाम होकर इस दशा के लिए खुद भी जिम्मेदार है।
सवाल- क्यों और कैसे ?
क्योंकि आधुनिक साहित्यकार सामाजिक सरोकारों से कटने के कारण समाज से सतत अलिप्त होता जा रहा है।
...और समाज के विद्रूप का संहारक होने के बजाय बौद्धिकता के अंधे भोग-विलास में आकंठ डूबता जा रहा है।
अब जो खुद ही बीमार है वह क्या खाकर समाज को कारगर साहित्य-औषध देकर ठीक कर सकता है ?
नमस्कार दोस्तों !
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