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4.05.2020

"कोरोना चालीसा" (कवि डॉ. सदानंद पॉल)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     05 April     कविता     No comments   

भारतीय एकता को दिखाने के लिए हम अलग-अलग हो 5 अप्रैल की रात्रि 9 बजे सिर्फ़ 9 मिनट के लिए सभी देशवासी दुनिया में इसी सप्ताह नए-नए शब्दों का इज़ाद हुए व हो रहे हैं । भारत में 'जनता कर्फ़्यू' शब्द के ईजाद के बाद उनका क्रियान्वयन भी हुआ, जो कि 22 मार्च 2020 की रात्रि 9 बजे तक रही । राजस्थान सरकार ने 9 बजे रात्रि के बाद 31 मार्च तक के लिए पूरे राज्य में 'लॉकडाउन' की घोषणा की । इसतरह से यह आधिकारिक घोषणा कर राजस्थान पहला राज्य बन गया है । फिर 24 मार्च की बारह बजे रात्रि से पूरे देश में लॉकडाउन कड़ाई से लागू हो गई । इसके बाद से देश में लॉकडाउन का पालन-अनुपालन कड़ाई से हो रहा है, जो कि बहरहाल 14 अप्रैल की 12 बजे रात्रि तक रहेंगे ! दरअसल, यह लॉकडाउन का उद्देश्य कोरोना विषाणुजनित महामारी से लोगों को, भारतीयों को बचाने के लिए 'सोशल डिस्टेंसिंग' में रहना है, घर पर संयमित और सुरक्षित रहकर ! बीते 'रामनवमी' के पूर्व ही 'हनुमान चालीसा' के प्रसंगश: कवि-लेखक डॉ. सदानंद पॉल ने समय का सदुपयोग करते हुए 'कोरोना चालीसा' की रचना की । आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं डॉ. सदानंद पॉल द्वारा लिखित कोरोना वायरस के विषाणुत्व और उनके संक्रमणत्व पर 'कोरोना चालीसा'.....
 
डॉ. सदानंद पॉल
कोरोना चालीसा


दोहा : 

श्रीशुरु  कोरन  रोज  रज, निज  में पकड़ू कपारी;
नरनारू  रहबर  मल-मूत्र,  जो  दाई कुफल मारी।
बुद्धिहीन  मन   जानकर,  सुमिरन  वुहान-कुमार;
बल बुद्धि विदया लेहु मोहिं, काहु वयरस-विकार।

चौपाई :

जय  कोरूमान  विपद  सप्तसागर;
जय कोरिस तिहुं परलोक उजागर।

मृत्युदूत अतुलनीय बल धामा;
वुहानपुत्र    चीनसुत     नामा।

अहा ! वीर पराक्रम रंगी-बिरंगी;
मति  मार   कुबुद्धि   के   संगी।

कोरन   वरण    महीराज   उबेसा;
आनन-फानन कुंडल गंदगी लेशा।

हाथमिलाऊ औ सजा विराजै;
कांधे    मौत   साँसउ   आजै।

अंकड़-बंकड़ चीनीनंदन;
तेज ताप भगा जगरुदन।

विद्यावान   गुणी   आ   चातुर;
मातम काज करिबे को आतुर।

मृत्युचरित सुनबे  रंगरसिया;
इक मीटर निके मन बसिया।

अतिसूक्ष्म रूपधरि सिंह कहावा;
प्रकट  रूपधरि  कलंक  करावा।

बीमा रूपधरि मौत दिलारे;
यमचंद्र    के    राजदुलारे।

लाय  सजीवन  कोरन  भगायो;
पल-पल मौत अट्ठहास करायो।

मृत्युपति इन्ही बहुत बड़ाई;
तुम अप्रिय सगा नहीं भाई।

सहस   बदन  तुमसे  नाश  गवावै;
अस रही प्रेमीपति अंटशंट कहावै।

सनकी  बहकी कह  मरीजसा;
गारद ज्यों भारत सहित लेशा।

जम कुबेर अमरीका  योरप जहाँ ते;
कवि इंटरनेट डब्ल्यूएचओ कहाँ ते।

तुम उपकार जो टीका खोजिन्हा;
कौन   बचाय  राज  पद   लीन्हा।

तुम्हरो    मंत्र    सरकारन    माना;
नोरथ कोरियन भी कोरोना जाना।

युग  सहस्र  कोरन  पर  भानू;
लील्यो जान मधुर फल जानू।

ना हस्तिका ना मिलाय मुख माहीं;
जलधि  लांघि आये अचरज नाहीं।

दुर्गम   लाज   जगत   को  देते;
सुगम समाजक दूरे तुम्हरे जेते।

आराम अंगारे हम  रखवारे;
होत  न  इलाज बिन पैसारे।

सब सुख गए तुम्हारी करणा;
तुम   भक्षक   तुहु   कोरोना।

आपन तेज बुखारो आपै;
तीनों  लोक  तुमसे काँपै।

भूत पि-चास  वायरस नहीं आवै;
सोशल  डिस्टेंसिंग  नाम  सुनावै।

नाशक   रोग   तबे  जब  शीरा;
जपत निरंतर संयम अउ समीरा।

संकट   पे   लोकडाउन   छुड़ावै;
मन कम वचन ध्यान जो दिलावै।

सब पर वजनी कोरोना राजा;
काम-काज ठपल गिरी गाजा।

और मनोरथ कछु नहीं पावै;
सोई किस्मत रोई कल जावै।

कलियुग में  संताप तुम्हारा;
है कुसिद्ध संसार उजियारा।

हंता-अंत भी नाश हुआरे;
घृणित तुम अँगार कहाँरे।

अष्ट सिद्धि नौरात्र  सुहाता;
असीस लीन हे शक्तिमाता।

दुर्लभ एन्टीडॉट किनके पासा;
क्यों  सदा  रह्यो  तुम्हरे  दासा।

तुम्हरे  भजन  मृत्यु को पावै;
जनम-जनम के दुख दिलावै।

अन्तकाल  मानव  क्या आई;
जहां जनम तहाँ मौत कहाई।

और सोवता छोड़ तु भगई;
कोरोना सेइ सब सुख जई।

संकट    कटै    मिटै   कब   पीड़ा;
किसे सुमिरै कि महामइरा अधीरा।

जै जै जै कोरोना वायरसाई;
कृपा करहु  मुझपर  हे साई।

जो संयम दूरी बरत मास्क लगाई;
छूटहि  व्याधिमहा  तब सुख होई।

जो यह पढ़ै कोरोना वुहान चालीसा;
कोविड   नाइन्टीन   से  हुए  दूरीसा।

पाल नंद सदा कर्फ़्यू संयम के चेरा;
कीजै  नाथ  अ-हृदय  अहम ने डेरा।

दोहा :

वुहान तनय कब विकट हरन, मंगल तु  शक्तिरूप;
मम परिवार मित्र जगतसहित, दुरहु शीघ्र हउ भूप।

नमस्कार दोस्तों ! 


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