वर्ष 2020 का फरवरी माह अद्भुत है, क्योंकि प्रति चार साल में आनेवाली तारीख 29 फरवरी के लिए यह रोमांचित करनेवाली माह है । सर्वाधिक उम्र में भारत के प्रधानमंत्री बननेवाले 'भारतरत्न' और 'निशान -ए- पाकिस्तान' स्व. मोरारजी देसाई की जन्म-जयंती 29 फरवरी ही है, तो 1942 क्रांति के अनोखे सेनानी रहे स्व. योगेश्वर प्रसाद सत्संगी के जन्मदिवस भी है। इन दोनों विभूति को सादर नमन !
इसी माह हमने 14 फरवरी को प्रेम 'बलिदान' दिवस मनाए, किन्तु इसी माह दिल्ली की उथल-पुथल ने हमें व्यथित कर गये.... मर्म भेद गये.... हम इनसे निकलते हुए 'साहित्य समाज का दर्पण है' पर आ टिकते हैं और 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' के मासिक स्तम्भ 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में चर्चित लेखक श्रीमान प्रेम एस. गुर्जर से रूबरू होते हैं। लेखक प्रेम जी के एक उपन्यास प्रकाशित है और दूजे उपन्यास प्रकाशनाधीन है । वे शून्य से शिखर तक पहुँचने को लेकर अतिशयातुर हैं । ऐसा हो भी क्यों नहीं ? ..... क्योंकि जबतक आप जुनून नहीं पालेंगे, तबतक आगे कैसे बढ़ेंगे ? श्रीमान प्रेम एस. गुर्जर जी अभावों में पले-बढ़े हैं और आज प्राध्यापक हैं।
आइये, 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में हिंदी उपन्यासकार प्रेम जी के 14 सरल व बोधगम्य उत्तर से लाभान्वित होते हैं.....
प्र.(1.)आपके कार्यों को सोशल मीडिया के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:-
मैं हिन्दी का लेखक हूँ। पिछले दिनों हिन्द युग्म प्रकाशन से प्रथम उपन्यास 'फिलॉसॉफर्स स्टोन' प्रकाशित हुई व काफी चर्चित रही । इसके बाद दूसरा नाॅवेल ''सच्चावाला प्यार'' नाम से शीघ्र प्रकाश्य है। यह 'लव स्टोरी' आधारित उपन्यास है, इसमें राजस्थान की आंचलिकता, परिवेश, रूढ़िवाद, समाज के स्ट्रक्चरल को सहज व सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है !
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैं ग्रामीण पृष्ठभूमि से हूँ। मेरे पिताजी दूध बेचकर जीवनयापन करते थे। मेरे पेरेंट्स निरक्षर होते हुए भी मुश्किलों से मुझे पढ़ाया। मुझे याद आता है कि मेरे पापा चाहे कड़ाके की सर्दियाँ हो, चिलचिलाती धूप या मूसलाधार बारिश हो, वे सदैव अहले सुबह चार बजे उठकर साइकिल पर दूध की कोठियां भर कर ले जाते थे । यद्यपि वे हमारे बीच में नहीं हैं, किन्तु उनकी कर्मठता व संघर्ष से मैं सर्वाधिक इंस्पायर रहा हूँ। इसके अलावा भी मैंने कई विकट परिस्थितियों का सामना किया । मेरे ख़्याल से प्रत्येक सफल व्यक्ति जीवन में संघर्ष करता है ! इन्हीं विकट सामजिक, पारिवारिक व आर्थिक परिस्थितियों की बदौलत मैं यहाँ तक पहुँचा हूँ।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
मेरी आनेवाली औपन्यासिक पुस्तक ''सच्चावाला प्यार'' हर उस व्यक्ति को प्रभावित करेगी, जिसने कभी जीवन में प्यार किया है या था; साथ ही अन्तरजातीय विवाह से पैदा होनेवाली समस्याओं, विशेष रूप से ग्रामीण पृष्ठभूमि के युवाओं को नया विकल्प प्रदान करता है। कुल मिलाकर यह किताब हर उस व्यक्ति को प्रभावित करेगी, जिसने जीवन में कभी ना कभी सच्चावाला प्यार किया !
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:-
अपनी पहली किताब प्रकाशित करने में मुझे काफी दिक्कतें आई। कोई भी प्रकाशक नये लेखकों पर रिस्क नहीं लेना चाहते हैं ! वो बेस्ट सेलर को ही तव्वजो देते हैं ! ऐसे में हिन्द युग्म ने मुझे मौका दिया, मेरी किताब को छापा, जो कि न्यूज व प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी काफी सराहा गया।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:-
चूँकि मैं ग्रामीण पृष्ठभूमि और किसान परिवार से संबंधित हूँ, लिहाजा मुझे आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। ग्यारहवीं व बारहवीं कक्षा तो मैं साइकिल से तीस किलोमीटर रोज सफर कर के स्कूल जाता था। ऐसे ही कई किस्से हैं, जिन्होंने जीवन को विकट बना दिया; किंतु विषम परिस्थितियों को मैं जीवन का हिस्सा मात्र मानता हूँ, इनसे खुद को विचलित नहीं होने देता हूँ। जब भी मेरे जीवन में मुश्किलें आई, तब मैंने किताबों की शरण ली। यकीन मानिए, किताबें सही रास्ता बताती हैं ! मैं महापुरुषों की आत्मकथा, सेल्फ-हेल्फ -जैसे किताबों से खुद को रिचार्ज करता हूँ।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:-
मैं शिक्षा विभाग में प्राध्यापक पद पर कार्यरत होने के बाद थोड़ा निश्चित हो गया। मेरी आजीविका के लिए ये जरूरी था। कालांतर में जब खाली समय मिलने लगा तो मैं अधिक से अधिक किताबें पढ़ने लगा ! किताबों ने मुझे अंतरतम की ओर प्रविष्ट कराई और जब मैंने खुद को ठीक से जाना तो मालूम चला कि मेरे अंदर एक लेखक सदियों से दबा पड़ा था ! मैंने उसे बाहर निकाला और जिंदा किया, इसलिए मैंने लेखन का क्षेत्र चुना।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:-
लेखन एकाकी नहीं होता, पूरा संसार लेखक को सहयोग देता है। मेरे लेखन में मेरी पत्नी विजया, पुत्र काव्यम् का भरपूर सहयोग रहता है।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:-
मैं इंसानियत को आधार बनाकर लिखता हूँ। मेरे लेखन का मकसद इंसानियत को इंसानों के अंदर जिंदा करना है, उनमें संवेदनशीलता को पैदा करना है, क्योंकि आज का मनुष्य संवेदनशील नहीं रहा !
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
मेरा लेखन इस कार्य में निरंतर सहयोग करता है।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये।
उ:-
नहीं मिले !
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:-
नहीं ।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:-
मेरी पहली किताब 'फिलॉसॉफर्स स्टोन' नाम से प्रकाशित हुई। ये एक मोटिवेशनल उपन्यास है, इसके बाद मेरे दिल के सबसे नजदीक उपन्यास 'सच्चावाला प्यार' शीर्षक से शीघ्र प्रकाशित होनेवाली है। यह अमेजन पर उपलब्ध रहेगी ! किस प्रकाशन से प्रकाशित होंगी, ये अभी तय नहीं; किंतु सम्पूर्ण जानकारी के लिए आप मेरे फेसबुक पेज @author.prem व इंस्टाग्राम पर @author.prem पर फॉलो कर सकतें हैं।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
मुझे दैनिक भास्कर व प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा कथा-विधा में पुरस्कृत किया गया है। ममता कालिया जी, ज्ञानरंजन जी, उदय प्रकाश जी व जितेन्द्र भाटिया जी के निर्णायक मंडल द्वारा मुझे कथा-विधा में सम्मानित किया गया। इसके अलावा द्वारकेश राष्ट्रीय साहित्य परिषद् द्वारा साहित्य लेखन पर सम्मानित किया गया।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
मैं राजस्थान के उदयपुर शहर में रहता हूँ। यहीं पर राजस्थान शिक्षा विभाग में प्राध्यापक पद पर कार्यरत हूँ। 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' के समस्त पाठकों को शुभकामनाएं कि विकट परिस्थतियों व विपदाओं में भी आप अपना धैर्य न खोएं !
श्रीमान प्रेम एस. गुर्जर |
प्र.(1.)आपके कार्यों को सोशल मीडिया के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:-
मैं हिन्दी का लेखक हूँ। पिछले दिनों हिन्द युग्म प्रकाशन से प्रथम उपन्यास 'फिलॉसॉफर्स स्टोन' प्रकाशित हुई व काफी चर्चित रही । इसके बाद दूसरा नाॅवेल ''सच्चावाला प्यार'' नाम से शीघ्र प्रकाश्य है। यह 'लव स्टोरी' आधारित उपन्यास है, इसमें राजस्थान की आंचलिकता, परिवेश, रूढ़िवाद, समाज के स्ट्रक्चरल को सहज व सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है !
प्र.(2.)आप किसतरह के पृष्ठभूमि से आये हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैं ग्रामीण पृष्ठभूमि से हूँ। मेरे पिताजी दूध बेचकर जीवनयापन करते थे। मेरे पेरेंट्स निरक्षर होते हुए भी मुश्किलों से मुझे पढ़ाया। मुझे याद आता है कि मेरे पापा चाहे कड़ाके की सर्दियाँ हो, चिलचिलाती धूप या मूसलाधार बारिश हो, वे सदैव अहले सुबह चार बजे उठकर साइकिल पर दूध की कोठियां भर कर ले जाते थे । यद्यपि वे हमारे बीच में नहीं हैं, किन्तु उनकी कर्मठता व संघर्ष से मैं सर्वाधिक इंस्पायर रहा हूँ। इसके अलावा भी मैंने कई विकट परिस्थितियों का सामना किया । मेरे ख़्याल से प्रत्येक सफल व्यक्ति जीवन में संघर्ष करता है ! इन्हीं विकट सामजिक, पारिवारिक व आर्थिक परिस्थितियों की बदौलत मैं यहाँ तक पहुँचा हूँ।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
मेरी आनेवाली औपन्यासिक पुस्तक ''सच्चावाला प्यार'' हर उस व्यक्ति को प्रभावित करेगी, जिसने कभी जीवन में प्यार किया है या था; साथ ही अन्तरजातीय विवाह से पैदा होनेवाली समस्याओं, विशेष रूप से ग्रामीण पृष्ठभूमि के युवाओं को नया विकल्प प्रदान करता है। कुल मिलाकर यह किताब हर उस व्यक्ति को प्रभावित करेगी, जिसने जीवन में कभी ना कभी सच्चावाला प्यार किया !
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:-
अपनी पहली किताब प्रकाशित करने में मुझे काफी दिक्कतें आई। कोई भी प्रकाशक नये लेखकों पर रिस्क नहीं लेना चाहते हैं ! वो बेस्ट सेलर को ही तव्वजो देते हैं ! ऐसे में हिन्द युग्म ने मुझे मौका दिया, मेरी किताब को छापा, जो कि न्यूज व प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी काफी सराहा गया।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:-
चूँकि मैं ग्रामीण पृष्ठभूमि और किसान परिवार से संबंधित हूँ, लिहाजा मुझे आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। ग्यारहवीं व बारहवीं कक्षा तो मैं साइकिल से तीस किलोमीटर रोज सफर कर के स्कूल जाता था। ऐसे ही कई किस्से हैं, जिन्होंने जीवन को विकट बना दिया; किंतु विषम परिस्थितियों को मैं जीवन का हिस्सा मात्र मानता हूँ, इनसे खुद को विचलित नहीं होने देता हूँ। जब भी मेरे जीवन में मुश्किलें आई, तब मैंने किताबों की शरण ली। यकीन मानिए, किताबें सही रास्ता बताती हैं ! मैं महापुरुषों की आत्मकथा, सेल्फ-हेल्फ -जैसे किताबों से खुद को रिचार्ज करता हूँ।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:-
मैं शिक्षा विभाग में प्राध्यापक पद पर कार्यरत होने के बाद थोड़ा निश्चित हो गया। मेरी आजीविका के लिए ये जरूरी था। कालांतर में जब खाली समय मिलने लगा तो मैं अधिक से अधिक किताबें पढ़ने लगा ! किताबों ने मुझे अंतरतम की ओर प्रविष्ट कराई और जब मैंने खुद को ठीक से जाना तो मालूम चला कि मेरे अंदर एक लेखक सदियों से दबा पड़ा था ! मैंने उसे बाहर निकाला और जिंदा किया, इसलिए मैंने लेखन का क्षेत्र चुना।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:-
लेखन एकाकी नहीं होता, पूरा संसार लेखक को सहयोग देता है। मेरे लेखन में मेरी पत्नी विजया, पुत्र काव्यम् का भरपूर सहयोग रहता है।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:-
मैं इंसानियत को आधार बनाकर लिखता हूँ। मेरे लेखन का मकसद इंसानियत को इंसानों के अंदर जिंदा करना है, उनमें संवेदनशीलता को पैदा करना है, क्योंकि आज का मनुष्य संवेदनशील नहीं रहा !
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
मेरा लेखन इस कार्य में निरंतर सहयोग करता है।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये।
उ:-
नहीं मिले !
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:-
नहीं ।
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:-
मेरी पहली किताब 'फिलॉसॉफर्स स्टोन' नाम से प्रकाशित हुई। ये एक मोटिवेशनल उपन्यास है, इसके बाद मेरे दिल के सबसे नजदीक उपन्यास 'सच्चावाला प्यार' शीर्षक से शीघ्र प्रकाशित होनेवाली है। यह अमेजन पर उपलब्ध रहेगी ! किस प्रकाशन से प्रकाशित होंगी, ये अभी तय नहीं; किंतु सम्पूर्ण जानकारी के लिए आप मेरे फेसबुक पेज @author.prem व इंस्टाग्राम पर @author.prem पर फॉलो कर सकतें हैं।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
मुझे दैनिक भास्कर व प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा कथा-विधा में पुरस्कृत किया गया है। ममता कालिया जी, ज्ञानरंजन जी, उदय प्रकाश जी व जितेन्द्र भाटिया जी के निर्णायक मंडल द्वारा मुझे कथा-विधा में सम्मानित किया गया। इसके अलावा द्वारकेश राष्ट्रीय साहित्य परिषद् द्वारा साहित्य लेखन पर सम्मानित किया गया।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
मैं राजस्थान के उदयपुर शहर में रहता हूँ। यहीं पर राजस्थान शिक्षा विभाग में प्राध्यापक पद पर कार्यरत हूँ। 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' के समस्त पाठकों को शुभकामनाएं कि विकट परिस्थतियों व विपदाओं में भी आप अपना धैर्य न खोएं !
"आप यूं ही हँसते रहें, मुस्कराते रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
नमस्कार दोस्तों !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com
Thanks
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