21वीं सदी के तीसरे दशक का प्रथम माह यानी नव दशक का नववर्ष 2020 का नवांकुर माह 'जनवरी' में सूर्य भी उत्तरायण हो गए हैं, तो कई आम व्यक्ति 'पद्म सम्मान' पाकर विशिष्ट हो गए हैं ! इस माह (26 जनवरी) भारतवर्ष ने 71वें गणतंत्र सोल्लासपूर्वक मनाएं। दिल्ली 'राजपथ' पर भव्य परेड हुई, तो मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जनपद के आमपथ (सामान्य परिवार) से निकली साहसी किशोरी सुश्री शिवांगी पुरोहित महिलाजन्य बंधनों को तोड़ती हुई सम्पूर्ण हिंदी समाज में कथाकार व उपन्यासकार के रूप में छा गयी ! उन्होंने 17 वर्ष की अल्पायु में 'सरस्वती' नामक उपन्यास रची, तो अब उनकी 5 वीं पुस्तक शीघ्र ही हलचल मचाने आ रही है.....
'मैसेंजर ऑफ आर्ट' में प्रकाशित व प्रसारित होनेवाली नियमित मासिक स्तम्भ 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में इसबार सुश्री शिवांगी पुरोहित से ली गई साक्षात्कार से MoA के आदरणीय पाठकगण रूबरू होने जा रहे हैं । ......तो आइए, शिवांगी जी से ली गई 'इनबॉक्स इंटरव्यू' को हम पढ़ ही डालते हैं.....
प्र.(1.)आपके कार्यों को सोशल मीडिया के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:-
स्कूली दिनों में हरतरह के लेखकों को पढ़ा करती थी, खासकर- उपन्यास ! तभी से साहित्य के प्रति रुचि जागी व पनपी भी। हाँ, 50 से ऊपर उपन्यास, कहानी संग्रह आदि पढ़ी तो होंगी ही । इन लेखकीय कथा-विन्यासों से प्रेरित होकर 17 वर्ष की अल्पायु में ही मैंने पहला उपन्यास 'सरस्वती' लिख डाली।
प्र.(2.)आप किसतरह की पृष्ठभूमि से आई हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैं मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के पिपरिया के नजदीक एक गाँव है- खापरखेड़ा । वहीं रहती हूँ। ग्रामीण पृष्ठभूमि से हूँ और दादा-दादी के अनुभवों को सुनते हुए बड़ी हुई हूँ। तभी तो पहली उपन्यास की पृष्ठभूमि भी यही रही । बचपन से विपरीत परिस्थितियाँ देखी, काफी संघर्ष देखा ! जो कुछ महसूस की, उसे ही बिल्कुल पन्नों पर उतारी है। पहले डायरी में, उसके बाद किताबों में।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
मैं अपने गांव की इकलौती लेखिका हूँ। अलग पहचान है । ग्रामवासियों का कहना है, तुमने जो की, वो सबसे हटकर की। मेरी सहपाठी और साथ ही मेरे गाँव के विद्यार्थी मुझे देखकर व मेरी रचनाओं से प्रेरित होकर कविताएं व कहानियाँ लिखने लगे हैं । मेरी लेखन को वो सब दूसरों तक पहुंचाते हैं। मेरे सभी लेख, विचार आदि सामाजिक मुद्दों पर होते हैं, किताबें भी सामाजिक मुद्दों पर है। हाँ, थोड़ा इमोशनल लिखती हूँ। मेरे ज्यादातर पाठक यही कहते हैं कि आपकी लेखन रुला देती है !
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:-
पहली और दूसरी किताब में प्रकाशक ने मुझे न केवल ठगे, अपितु हजारों रुपये लूटे भी, क्योंकि प्रकाशन के बारे में ज्यादा जानकारी मुझे नहीं थी। इसके अलावा मेरे कुछ रिश्तेदार अब भी मुझसे खफा रहते हैं और मेरे इस निःस्वार्थ कार्य को बिगाड़ने की कोशिश करते हैं तथा मेरे प्रति बुरे व्यवहार करते हैं। उन्हें यह पसंद नहीं है कि गाँव की लड़की आगे बढ़े और उन शहरी संबंधियों के बच्चे पीछे रह जाएं।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:-
काफी रुपये खर्च हो गई, पहली दो किताबों में। काफी कुछ सुननी पड़ती थी, इस वजह से भी। तीसरी किताब सांझी के वक्त मैं ज्यादा खर्च करने की स्थिति में नहीं थी। तब सन्मति प्रकाशन, मेरठ ने टिंगल बुक्स पब्लिशिंग के अंतर्गत 0% इन्वेस्ट में मेरी किताब छापी।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:-
पत्रकारिता करना चाहती थी, लेकिन घर की कई स्थितियों के कारण बाहर पढ़ने नहीं जा सकी। अखबारों और मैगज़ीन्स के लिए स्वतंत्र लेखन शुरू की और फिर किताब भी लिख दी। अब तक 4 किताबें लिख चुकी हूँ, पांचवी प्रकाशक तक पहुंच चुकी है। अब तक 200 से अधिक लेख-आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। घर में पापा और दादी का सपोर्ट करते हैं, लेकिन परिवार के कुछ सदस्यों को मेरी लेखन-कार्य पसंद नहीं है, वो बिल्कुल सपोर्ट नहीं करते !
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:-
मेरी दादी जी, पापा जी, शिक्षिका बुआ जी, फूफा जी बहुत सपोर्ट करते हैं, इसके इतर 'सोशल मीडिया' पर बहुत सारे मित्र जुड़े हुए हैं, काफी लोगों ने एतदर्थ सहयोग किए हैं, जिनके प्रति सदैव आभारी हूँ !
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:-
मैं हमेशा भारतीय संस्कृति को बचाने व उसे बनाये रखने के लिए लिखती हूँ, चाहे इसके लिए महिला विरोधी लेख क्यों नहीं लिखने पड़े ! मैं उस कथित फेमिनिज्म का समर्थन नहीं करती, जो महिलाओं के शराब-सिगरेट पीने, गालियां बकने,अधनंगे कपड़े पहनने के अंतर्गत आती हैं । महिलाएं इस तरह पुरुषों की बराबरी करनी चाहती हैं, ये अत्यंत खेद की बात ही नहीं, शर्म की बात हैं ! वो बराबरी करे, किंतु घर से निकलने से लेकर उच्च पदों पर पहुंचने तक।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
पहली लेख भ्रष्टाचार पर ही लिखी थी। लेखों, कविताओं और किताबों के माध्यम से मैं भ्रष्टाचार ही नहीं, हर सामाजिक समस्याओं के निदान हेतु लिखकर लोगों को प्रेरित करती रहूंगी।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये।
उ:-
लोगों की प्रशंसा, उनके साथ व उनका प्रोत्साहन ही सबसे बड़ा सहयोग है। सोशल मीडिया पर ही नहीं, असल ज़िन्दगी में भी ऐसे लोग मिलते रहते हैं, जिनसे बहुत साकारात्मक प्रेरणा मिलती हैं।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:-
आजकल झूठे प्रकाशन व प्रकाशक ही सबसे बड़ी विसंगतियां हैं। हर किसी ने दुकान खोल रखी हैं। सोशल मीडिया पर भी भरमार हैं। आपसे रुपये ले लेंगे, आपको 5 किताब थमा कर बात खत्म कर देंगे ! आपको इस भ्रम में रखेंगे कि किताबें ऑनलाइन बिक रही हैं, किंतु रॉयल्टी के नाम पर लेखक को ढेला नहीं देंगे !
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:-
अब तक पांच किताबें लिख चुकी हूँ, 4 प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें 'सरस्वती' उपन्यास 2017, 'आरक्षण 70 साल' 2018; यह अंग्रेजी में भी अनूदित है, 'सांझी एक अधूरी कहानी' 2019, 'कटिंग चाय' काव्य-संग्रह 2019 और अब पांचवी किताब मार्च में मार्किट में आने वाली है !
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
यूथ फेस ऑफ इंडिया 2019, ऑथर ऑफ द ईयर 2019, चेतना साहित्य सम्मान, आगमन युवा प्रतिभा सम्मान और नवोदित रचनाकार सम्मान।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
जो भी होता है, किचनरूपी प्लेटफॉर्म और टेबल-कुर्सी पर होता है। अपने छोटे से गांव में निर्मित 70 साल पुराने घर में। संदेश सबको यही है कि अच्छे काम ही देश की प्रगति और खुद के लिए लाभदायक होते हैं, इसलिए अच्छे काम कीजिए और लोगों को प्रेरित कीजिए ।
'मैसेंजर ऑफ आर्ट' में प्रकाशित व प्रसारित होनेवाली नियमित मासिक स्तम्भ 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में इसबार सुश्री शिवांगी पुरोहित से ली गई साक्षात्कार से MoA के आदरणीय पाठकगण रूबरू होने जा रहे हैं । ......तो आइए, शिवांगी जी से ली गई 'इनबॉक्स इंटरव्यू' को हम पढ़ ही डालते हैं.....
सुश्री शिवांगी पुरोहित |
प्र.(1.)आपके कार्यों को सोशल मीडिया के माध्यम से जाना । इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के आईडिया-संबंधी 'ड्राफ्ट' को सुस्पष्ट कीजिये ?
उ:-
स्कूली दिनों में हरतरह के लेखकों को पढ़ा करती थी, खासकर- उपन्यास ! तभी से साहित्य के प्रति रुचि जागी व पनपी भी। हाँ, 50 से ऊपर उपन्यास, कहानी संग्रह आदि पढ़ी तो होंगी ही । इन लेखकीय कथा-विन्यासों से प्रेरित होकर 17 वर्ष की अल्पायु में ही मैंने पहला उपन्यास 'सरस्वती' लिख डाली।
प्र.(2.)आप किसतरह की पृष्ठभूमि से आई हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
मैं मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के पिपरिया के नजदीक एक गाँव है- खापरखेड़ा । वहीं रहती हूँ। ग्रामीण पृष्ठभूमि से हूँ और दादा-दादी के अनुभवों को सुनते हुए बड़ी हुई हूँ। तभी तो पहली उपन्यास की पृष्ठभूमि भी यही रही । बचपन से विपरीत परिस्थितियाँ देखी, काफी संघर्ष देखा ! जो कुछ महसूस की, उसे ही बिल्कुल पन्नों पर उतारी है। पहले डायरी में, उसके बाद किताबों में।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से इंस्पायर अथवा लाभान्वित हो सकते हैं ?
उ:-
मैं अपने गांव की इकलौती लेखिका हूँ। अलग पहचान है । ग्रामवासियों का कहना है, तुमने जो की, वो सबसे हटकर की। मेरी सहपाठी और साथ ही मेरे गाँव के विद्यार्थी मुझे देखकर व मेरी रचनाओं से प्रेरित होकर कविताएं व कहानियाँ लिखने लगे हैं । मेरी लेखन को वो सब दूसरों तक पहुंचाते हैं। मेरे सभी लेख, विचार आदि सामाजिक मुद्दों पर होते हैं, किताबें भी सामाजिक मुद्दों पर है। हाँ, थोड़ा इमोशनल लिखती हूँ। मेरे ज्यादातर पाठक यही कहते हैं कि आपकी लेखन रुला देती है !
प्र.(4.)आपके कार्य में आये जिन रूकावटों,बाधाओं या परेशानियों से आप या संगठन रू-ब-रू हुए, उनमें से दो उद्धरण दें ?
उ:-
पहली और दूसरी किताब में प्रकाशक ने मुझे न केवल ठगे, अपितु हजारों रुपये लूटे भी, क्योंकि प्रकाशन के बारे में ज्यादा जानकारी मुझे नहीं थी। इसके अलावा मेरे कुछ रिश्तेदार अब भी मुझसे खफा रहते हैं और मेरे इस निःस्वार्थ कार्य को बिगाड़ने की कोशिश करते हैं तथा मेरे प्रति बुरे व्यवहार करते हैं। उन्हें यह पसंद नहीं है कि गाँव की लड़की आगे बढ़े और उन शहरी संबंधियों के बच्चे पीछे रह जाएं।
प्र.(5.)अपने कार्य क्षेत्र के लिए क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के तो शिकार न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाये ?
उ:-
काफी रुपये खर्च हो गई, पहली दो किताबों में। काफी कुछ सुननी पड़ती थी, इस वजह से भी। तीसरी किताब सांझी के वक्त मैं ज्यादा खर्च करने की स्थिति में नहीं थी। तब सन्मति प्रकाशन, मेरठ ने टिंगल बुक्स पब्लिशिंग के अंतर्गत 0% इन्वेस्ट में मेरी किताब छापी।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट थे या उनसबों ने राहें अलग पकड़ ली !
उ:-
पत्रकारिता करना चाहती थी, लेकिन घर की कई स्थितियों के कारण बाहर पढ़ने नहीं जा सकी। अखबारों और मैगज़ीन्स के लिए स्वतंत्र लेखन शुरू की और फिर किताब भी लिख दी। अब तक 4 किताबें लिख चुकी हूँ, पांचवी प्रकाशक तक पहुंच चुकी है। अब तक 200 से अधिक लेख-आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। घर में पापा और दादी का सपोर्ट करते हैं, लेकिन परिवार के कुछ सदस्यों को मेरी लेखन-कार्य पसंद नहीं है, वो बिल्कुल सपोर्ट नहीं करते !
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ? यह सभी सम्बन्ध से हैं या इतर हैं !
उ:-
मेरी दादी जी, पापा जी, शिक्षिका बुआ जी, फूफा जी बहुत सपोर्ट करते हैं, इसके इतर 'सोशल मीडिया' पर बहुत सारे मित्र जुड़े हुए हैं, काफी लोगों ने एतदर्थ सहयोग किए हैं, जिनके प्रति सदैव आभारी हूँ !
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं अथवा संस्कृति पर चोट पहुँचाने के कोई वजह ?
उ:-
मैं हमेशा भारतीय संस्कृति को बचाने व उसे बनाये रखने के लिए लिखती हूँ, चाहे इसके लिए महिला विरोधी लेख क्यों नहीं लिखने पड़े ! मैं उस कथित फेमिनिज्म का समर्थन नहीं करती, जो महिलाओं के शराब-सिगरेट पीने, गालियां बकने,अधनंगे कपड़े पहनने के अंतर्गत आती हैं । महिलाएं इस तरह पुरुषों की बराबरी करनी चाहती हैं, ये अत्यंत खेद की बात ही नहीं, शर्म की बात हैं ! वो बराबरी करे, किंतु घर से निकलने से लेकर उच्च पदों पर पहुंचने तक।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
पहली लेख भ्रष्टाचार पर ही लिखी थी। लेखों, कविताओं और किताबों के माध्यम से मैं भ्रष्टाचार ही नहीं, हर सामाजिक समस्याओं के निदान हेतु लिखकर लोगों को प्रेरित करती रहूंगी।
प्र.(10.)इस कार्य के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे से इतर किसी प्रकार के सहयोग मिले या नहीं ? अगर हाँ, तो संक्षिप्त में बताइये।
उ:-
लोगों की प्रशंसा, उनके साथ व उनका प्रोत्साहन ही सबसे बड़ा सहयोग है। सोशल मीडिया पर ही नहीं, असल ज़िन्दगी में भी ऐसे लोग मिलते रहते हैं, जिनसे बहुत साकारात्मक प्रेरणा मिलती हैं।
प्र.(11.)आपके कार्य क्षेत्र के कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे की परेशानियां झेलने पड़े हों ?
उ:-
आजकल झूठे प्रकाशन व प्रकाशक ही सबसे बड़ी विसंगतियां हैं। हर किसी ने दुकान खोल रखी हैं। सोशल मीडिया पर भी भरमार हैं। आपसे रुपये ले लेंगे, आपको 5 किताब थमा कर बात खत्म कर देंगे ! आपको इस भ्रम में रखेंगे कि किताबें ऑनलाइन बिक रही हैं, किंतु रॉयल्टी के नाम पर लेखक को ढेला नहीं देंगे !
प्र.(12.)कोई किताब या पम्फलेट जो इस सम्बन्ध में प्रकाशित हों, तो बताएँगे ?
उ:-
अब तक पांच किताबें लिख चुकी हूँ, 4 प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें 'सरस्वती' उपन्यास 2017, 'आरक्षण 70 साल' 2018; यह अंग्रेजी में भी अनूदित है, 'सांझी एक अधूरी कहानी' 2019, 'कटिंग चाय' काव्य-संग्रह 2019 और अब पांचवी किताब मार्च में मार्किट में आने वाली है !
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
यूथ फेस ऑफ इंडिया 2019, ऑथर ऑफ द ईयर 2019, चेतना साहित्य सम्मान, आगमन युवा प्रतिभा सम्मान और नवोदित रचनाकार सम्मान।
प्र.(14.)आपके कार्य मूलतः कहाँ से संचालित हो रहे हैं तथा इसके विस्तार हेतु आप समाज और राष्ट्र को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
जो भी होता है, किचनरूपी प्लेटफॉर्म और टेबल-कुर्सी पर होता है। अपने छोटे से गांव में निर्मित 70 साल पुराने घर में। संदेश सबको यही है कि अच्छे काम ही देश की प्रगति और खुद के लिए लाभदायक होते हैं, इसलिए अच्छे काम कीजिए और लोगों को प्रेरित कीजिए ।
आप यूं ही हँसती रहें, मुस्कराती रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
नमस्कार दोस्तों !
मैसेंजर ऑफ़ आर्ट' में आपने 'इनबॉक्स इंटरव्यू' पढ़ा । आपसे समीक्षा की अपेक्षा है, तथापि आप स्वयं या आपके नज़र में इसतरह के कोई भी तंत्र के गण हो, तो हम इस इंटरव्यू के आगामी कड़ी में जरूर जगह देंगे, बशर्ते वे हमारे 14 गझिन सवालों के सत्य, तथ्य और तर्कपूर्ण जवाब दे सके !
हमारा email है:- messengerofart94@gmail.com
बहुत खूब ।
ReplyDeleteअद्भुत !
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