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9.22.2018

"एक शाम : कवयित्री रिंकी वर्मा के नाम"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     22 September     कविता     No comments   

प्यार यानी ढाई आखर प्रेम एक ऐसी चीज है, जिनसे दुनिया में शायद ही कोई जीव बच पाया हो ! जब आप, मैं या हम इस इश्क के बंधन में बंधते हैं, तो तन और मन में अजीबोगरीब नशा छा जाती है । इंसानों के प्रेम तो निराला जी की तरह ही निराली है, लेकिन अन्य जीवों को यदि आप स्नेह भरे हाथ से पुचकारेंगे, तो उन जीवों में गजब की खुशी आपको देखने को मिलेगी ! आज मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, श्रीमती रिंकी वर्मा की कविता, कुछ ऐसी ही और कुछ वैसी ही ! आइये, इसे पढ़ते हैं और खोते हैं, शाम लिए दुपहरी में, हाँ, दुपहरी में.....

श्रीमती रिंकी वर्मा

 शाम

आज शाम कुछ बोझिल-सी है,
तुम्हारे और मेरे मिलन का मौसम है --
उम्मीदों के पाँव भारी है,
प्रसवकाल करीब आने को है।
देखती हूँ,
क्या है इस उदासी के गर्भ में ?
कोई चाँदनी रात या अमावस की रात -- ?
बिखरती है रंगीनियाँ,
या कि सन्नाटा --
तय नहीं कर पाती हूँ ।
स्त्री हूँ,
अकेले सृजन भी तो नहीं कर सकती --
तुम्हारा होना जरूरी है,
प्रेम या विरह के लिए ,
मौसम का आना जाना तो लगा रहेगा ।
बस सूरजमुखी सी ताकती हूँ  
चेहरा तुम्हारा --
या चकोर की तरह निहारती हूँ तुम्हें,
हाँ --
शाम कुछ बोझिल-सी है।

नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
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