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10.10.2017

'अब क्यों नहीं फुदकते हैं 'गोरैया'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     10 October     विविधा     No comments   

राजनीति को समझ पाना काफी मुश्किल है । वह ऐसी प्रजाति है, जो कब,कहाँ अपनी बाँसुरी बजा दें , कहना मुमकिन नहीं ! आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में पढ़ते है, मूक प्राणी भी होते हैं, राजनीति की शिकार , आइये पढ़ते है ...!




उसकी भी सुधि तो ले ही, जहाँ दोनों मर रहे हैं । कहीं मरनेवाला वह किसान कहलाता है, तो कहीं सीधी-सादी गाय-बकरियाँ । कोई भी किसान बंजर धरती को अकेले ही हरीतिमा धरती नहीं बना सकती ! किसान अगर संचरित होते हैं तो घास चरनेवाली गाय-बकरी-भेड़ों के कारण, ट्रैक्टर के बावजूद हल जोतनेवाले व माल ढोने वाले बैल, गधा, खच्चर, घोड़े आदि के कारण । पालतू कुत्ते भी इन किसानों की रखवाली करते हैं । गोरैये, तीतर, कबूतर, बत्तख आदि भी इनमें शामिल है । ये सभी मिल ही किसान कहलाते हैं । इसे किसान मित्र भी कह सकते हैं । हमारी राजनीति ने हमें ऐसी बना दी है कि सीधी-सादी गाय-बकरियाँ वहाँ ही चर सकती हैं, जहाँ सत्ता और राजनीति दल अपनी स्वार्थसिद्धि के फायदे खोज रहे हैं । किसानों को यह समझना होगा कि हमें भी गोरैया संस्कृति में लौटना होगा । हम किसानों ने गोरैये के फुदकने से रोका । हम हमेशा सब्सिडी के फेर में रहे, क्योंकि हर बार सरकारें कर्ज माफ नहीं कर सकती है । हम किसान मूक प्राणियों की भी सुने और अपनी भी सुने, ताकि कोई किसान आत्महत्या न करें और ऐसे मूक प्राणी पर राजनीति की कुचर्चा न होकर उन्मुक्त रहने दें ।

 -- प्रधान प्रशासी-सह-संपादक ।
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