MESSENGER OF ART

  • Home
  • About Us
  • Contact Us
  • Contribute Here
  • Home
  • इनबॉक्स इंटरव्यू
  • कहानी
  • कविता
  • समीक्षा
  • अतिथि कलम
  • फेसबुक डायरी
  • विविधा

10.10.2017

'अब क्यों नहीं फुदकते हैं 'गोरैया'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     10 October     विविधा     No comments   

राजनीति को समझ पाना काफी मुश्किल है । वह ऐसी प्रजाति है, जो कब,कहाँ अपनी बाँसुरी बजा दें , कहना मुमकिन नहीं ! आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में पढ़ते है, मूक प्राणी भी होते हैं, राजनीति की शिकार , आइये पढ़ते है ...!




उसकी भी सुधि तो ले ही, जहाँ दोनों मर रहे हैं । कहीं मरनेवाला वह किसान कहलाता है, तो कहीं सीधी-सादी गाय-बकरियाँ । कोई भी किसान बंजर धरती को अकेले ही हरीतिमा धरती नहीं बना सकती ! किसान अगर संचरित होते हैं तो घास चरनेवाली गाय-बकरी-भेड़ों के कारण, ट्रैक्टर के बावजूद हल जोतनेवाले व माल ढोने वाले बैल, गधा, खच्चर, घोड़े आदि के कारण । पालतू कुत्ते भी इन किसानों की रखवाली करते हैं । गोरैये, तीतर, कबूतर, बत्तख आदि भी इनमें शामिल है । ये सभी मिल ही किसान कहलाते हैं । इसे किसान मित्र भी कह सकते हैं । हमारी राजनीति ने हमें ऐसी बना दी है कि सीधी-सादी गाय-बकरियाँ वहाँ ही चर सकती हैं, जहाँ सत्ता और राजनीति दल अपनी स्वार्थसिद्धि के फायदे खोज रहे हैं । किसानों को यह समझना होगा कि हमें भी गोरैया संस्कृति में लौटना होगा । हम किसानों ने गोरैये के फुदकने से रोका । हम हमेशा सब्सिडी के फेर में रहे, क्योंकि हर बार सरकारें कर्ज माफ नहीं कर सकती है । हम किसान मूक प्राणियों की भी सुने और अपनी भी सुने, ताकि कोई किसान आत्महत्या न करें और ऐसे मूक प्राणी पर राजनीति की कुचर्चा न होकर उन्मुक्त रहने दें ।

 -- प्रधान प्रशासी-सह-संपादक ।
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg
Newer Post Older Post Home

0 comments:

Post a Comment

Popular Posts

  • 'रॉयल टाइगर ऑफ इंडिया (RTI) : प्रो. सदानंद पॉल'
  • 'महात्मा का जन्म 2 अक्टूबर नहीं है, तो 13 सितंबर या 16 अगस्त है : अद्भुत प्रश्न ?'
  • "अब नहीं रहेगा 'अभाज्य संख्या' का आतंक"
  • "इस बार के इनबॉक्स इंटरव्यू में मिलिये बहुमुखी प्रतिभाशाली 'शशि पुरवार' से"
  • 'जहां सोच, वहां शौचालय'
  • "प्यार करके भी ज़िन्दगी ऊब गई" (कविताओं की श्रृंखला)
  • 'कोरों के काजल में...'
  • 'बाकी बच गया अण्डा : मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट'
  • "समाजसेवा के लिए क्या उम्र और क्या लड़की होना ? फिर लोगों का क्या, उनका तो काम ही है, फब्तियाँ कसना !' मासिक 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में रूबरू होइए कम उम्र की 'सोशल एक्टिविस्ट' सुश्री ज्योति आनंद से"
  • "शहीदों की पत्नी कभी विधवा नहीं होती !"
Powered by Blogger.

Copyright © MESSENGER OF ART