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7.25.2017

"अबूझ पहेली : सबूझ लेखिका की मनश्चेतना के साथ"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     25 July     आलेख     1 comment   

पृथ्वी व धरती अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति के सामर्थ्य तथा स्वयंचक्रा और सूर्यचक्रा हो ब्रह्मांड व यूनिवर्स में बिना किसी बाहरी सहायता के अवलंबित है, किन्तु भारत के पौराणिक ग्रंथों में सनातनी धर्म के विहित धरती को कछुआ के पीठ पर टिके होना बताया गया है । यह तो कछुआ के पीठ खुजलाने से 'भूकंप' का आना हास्यास्पद हो सकता है, परंतु धर्मग्रंथ स्वयंसिद्ध फार्मूला की भाँति 'थोथी' तर्क के वशीभूत हैं, तभी तो काशी व वाराणसी को धरती से अलग कर इसे 'शिव' के त्रिशूल पर अटके हुए मानते हैं ! सूर्य के एक पिण्ड के रूप में धरती का निर्माण, फिर यहाँ जीव-जंतुओं के आगमन पर संशय अबतक धुंध ही है, तथापि विज्ञान और वैज्ञानिक के रिसर्च से 'यूनिवर्स' का निर्माण 'बिंग-बैंग' व महाविस्फोट से होना बताया गया है, किन्तु लेखिका सुश्री मनीषा गुप्ता की बात माने, तो आप असहज हो सकते हैं । आज मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में पढ़ते हैं, सुश्री मनीषा गुप्ता लिखित प्रस्तुत आलेख और खोते हैं, इस अनोखी दुनिया में, जिनके हल कभी संभव में नहीं हो सकते ! आइये, पढ़ते हैं, लेखिका के हू ब हू आलेख.........




प्रमाण यही बताते हैं कि आदि सृष्टि की उत्पत्ति भारत के उत्तराखंड अर्थात इस ब्रह्मावर्त क्षेत्र में ही हुई।
प्रारंभिक मानव गुफा में रहता था? उल्लेखनीय है कि वैज्ञानिकों ने दुनिया की सबसे प्राचीन पहाड़ी अरावली और सतपुड़ा की पहाड़ियों को माना है। यूनान के लोगों की धारणा थी कि उनके देवता गुफाओं में ही रहते थे। इसी प्रकार रोम के लोगों का मानना था कि गुफाओं में परियां तथा जादू-टोना करने वाले लोग रहते हैं। फारस के लोग मानते थे कि गुफाओं में देवताओं का वास होता है। आज का विज्ञान कहता है कि गुफाओं में एलियंस रहते थे। गुफाओं का इतिहास सदियों पुराना है। पाषाण युग में मानव गुफाओं में रहता था।

आमतौर पर पहाड़ों को खोदकर बनाई गई जगह को गुफा कहते हैं, लेकिन गुफाएं केवल पहाड़ों पर ही निर्मित नहीं होती हैं यह जमीन के भीतर भी बनाई जातीं और प्राकृतिक रूप से भी बनती हैं। प्राकृतिक रूप से जमीन के नीचे बहने वाली पानी की धारा से बनती हैं। ज्वालामुखी की वजह से भी गुफाओं का निर्माण होता है। दुनिया में अनेक छोटी-बड़ी गुफाएं हैं, जो किसी अजूबे से कम नहीं हैं।
अफगानिस्तान के बामियान से भीमबैठका तक और अमरनाथ से महाबलीपुरम तक भारत में हजारों गुफाएं हैं। हिमालय में तो अनगिनत प्राकृतिक गुफाएं हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वहां साधु-संत ध्यान और तपस्या करते हैं। आओ जानते हैं भारत की 15 रहस्यमयी गुफाओं के बारे में, जो अब रखरखाव के अभाव में अपने अस्तित्व संकट से जूझ रही हैं। भारत सरकार को चाहिए कि वह इस पर ध्यान दें। पातालकोट। दुनिया तीन लोक जानती है। पहला इंद्रलोक यानी अनंत तक फैला आसमान। दूसरा मृत्युलोक यानि अनंत तक फैली हुई धरती लेकिन ज़मीन के अंदर दुनिया का पाताललोक मध्यप्रदेश के पातालकोट में है। भोपाल से तकरीबन 300 किलोमीटर के फ़ासले पर ।
पातालकोट। दुनिया तीन लोक जानती है। पहला इंद्रलोक यानी अनंत तक फैला आसमान। दूसरा मृत्युलोक यानि अनंत तक फैली हुई धरती लेकिन ज़मीन के अंदर दुनिया का पाताललोक मध्यप्रदेश के पातालकोट में है। भोपाल से तकरीबन 300 किलोमीटर के फ़ासले पर।
पाताल के बाहर मिला सताराम इनवाती। वनविभाग के रेस्टहाउस का कर्मचारी। उसके गले से फूट रहे लोकगीत बता रहे थे कि ये पातालवासियों का ही कोई गीत होगा। सताराम ने कहा कि धरती की खुदगर्ज दुनिया पातालवासियों को रास नहीं आती। उन्हें हमारी जरूरत नहीं है। इनको सब वहीं पाताल में मिल जाता है। ये पाताल वाले नीचे ही रहते हैं और वहीं उनका संबंध बनता रहता है।
पातालकोट जाने के लिए पांच रास्ते हैं। आप किसी भी रास्ते में जाइए आपको गहरी घाटी में पांच किलोमीटर का सफ़र पैदल तय करना होगा। तब जाकर बड़ी मशक्कत के बाद आप जिस जगह पर पहुंचेंगे तो मान जायेंगे कि धरती पर ये भी किसी स्वर्ग से कम नहीं है।
लोगों का कहना है कि पाताल मौत की घाटी की तरह है जहां जो एक बार जाता है वापस नहीं आता। पातालकोट में नाग देवता के बाद अगर कोई भगवान माना जाता है तो वो हैं भूमका। ये भूमका ही हैं जो पातालकोट के बाशिंदों की सेहत का ख्याल रखते हैं। साथ ही वे कुछ ऐसे रहस्य भी जानते हैं जिन्हें पातालकोट के आम लोग नहीं जानते। भूमका पातालकोट की हर जड़ी बूटी की खासियत समझते हैं। यूं तो पातालकोट में अमूमन कोई बीमार नहीं होता लेकिन अगर किसी को कोई परेशानी हो जाती है तो वो सीधे भूमका के पास पहुंचता है। कलीराम भूमका की मानें, तो पातालकोट की जड़ी-बूटियों में हर मर्ज़ का इलाज मौजूद है। यहां मिलने वाली कई जड़ी बूटियां दुर्लभ हैं।
पूरे पातालकोट में कलीराम जैसे दो दर्जन भूमका हैं। ये लोग सदियों से जड़ी बूटियों से इलाज कर रहे हैं। मीज़ल्स, हाइपरटेंशन, डायबिटीज़ यहां तक कि सांप के काटने की दवा भी भूमका के पास होती है। लेकिन भूमकाओं का पारंपरिक हुनर सीखने की ललक नई पीढ़ी में उतनी नहीं है जिसकी वजह से इसके खत्म होने का खतरा पैदा हो गया है। खतरा जड़ी-बूटियों पर भी मंडरा रहा है जिनकी तलाश में दूर-दूर से लोग यहां आते हैं।
प्रशासन को भी जड़ी बूटियों पर मंडरा रहे खतरे का अहसास है, इसलिए अब वो इन जड़ी-बूटियों को सहेजने की योजना बना रहा है। प्रकृति पातालकोट पर मेहरबान हैं और पातालकोट के लोग प्रकृति पर। पातालकोट के निवासी धरती को मां मानते हैं, और उस पर हल चलाने से परहेज करते हैं। जो भी खेती होती है, खुर्पी के सहारे होती है। पातालकोट में फसल पकने और शादी-ब्याह के वक्त करमा नाच होता है। गोंड और भारिया आदिवासी सैकड़ों साल से पातालकोट में रह रहे हैं। यही उनकी जिंदगी है बाकी दुनिया की तरक्की इन्हें जरा भी नहीं लुभाती, इनके लिए तो पातालकोट का सुख ही सबकुछ है। ये सुख उनका अपना है जो बाकी दुनिया के लिए शायद सपना है।
पाताल के बाहर मिला सताराम इनवाती। वनविभाग के रेस्टहाउस का कर्मचारी। उसके गले से फूट रहे लोकगीत बता रहे थे कि ये पातालवासियों का ही कोई गीत होगा। सताराम ने कहा कि धरती की खुदगर्ज दुनिया पातालवासियों को रास नहीं आती। उन्हें हमारी जरूरत नहीं है। इनको सब वहीं पाताल में मिल जाता है। ये पाताल वाले नीचे ही रहते हैं और वहीं उनका संबंध बनता रहता है।
              पातालकोट जाने के लिए पांच रास्ते हैं। आप किसी भी रास्ते में जाइए आपको गहरी घाटी में पांच किलोमीटर का सफ़र पैदल तय करना होगा। तब जाकर बड़ी मशक्कत के बाद आप जिस जगह पर पहुंचेंगे तो मान जायेंगे कि धरती पर ये भी किसी स्वर्ग से कम नहीं है।
लोगों का कहना है कि पाताल मौत की घाटी की तरह है जहां जो एक बार जाता है वापस नहीं आता। पातालकोट में नाग देवता के बाद अगर कोई भगवान माना जाता है तो वो हैं भूमका। ये भूमका ही हैं जो पातालकोट के बाशिंदों की सेहत का ख्याल रखते हैं। साथ ही वे कुछ ऐसे रहस्य भी जानते हैं जिन्हें पातालकोट के आम लोग नहीं जानते। भूमका पातालकोट की हर जड़ी बूटी की खासियत समझते हैं। यूं तो पातालकोट में अमूमन कोई बीमार नहीं होता लेकिन अगर किसी को कोई परेशानी हो जाती है तो वो सीधे भूमका के पास पहुंचता है । कलीराम भूमका की मानें, तो पातालकोट की जड़ी-बूटियों में हर मर्ज़ का इलाज मौजूद है। यहां मिलने वाली कई जड़ी बूटियां दुर्लभ हैं। पूरे पातालकोट में कलीराम जैसे दो दर्जन भूमका हैं। ये लोग सदियों से जड़ी बूटियों से इलाज कर रहे हैं। मीज़ल्स, हाइपरटेंशन, डायबिटीज़ यहां तक कि सांप के काटने की दवा भी भूमका के पास होती है। लेकिन भूमकाओं का पारंपरिक हुनर सीखने की ललक नई पीढ़ी में उतनी नहीं है जिसकी वजह से इसके खत्म होने का खतरा पैदा हो गया है। खतरा जड़ी-बूटियों पर भी मंडरा रहा है जिनकी तलाश में दूर-दूर से लोग यहां आते हैं।
प्रशासन को भी जड़ी बूटियों पर मंडरा रहे खतरे का अहसास है, इसलिए अब वो इन जड़ी-बूटियों को सहेजने की योजना बना रहा है। प्रकृति पातालकोट पर मेहरबान हैं और पातालकोट के लोग प्रकृति पर। पातालकोट के निवासी धरती को मां मानते हैं, और उस पर हल चलाने से परहेज करते हैं। जो भी खेती होती है, खुर्पी के सहारे होती है। पातालकोट में फसल पकने और शादी-ब्याह के वक्त करमा नाच होता है। गोंड और भारिया आदिवासी सैकड़ों साल से पातालकोट में रह रहे हैं। यही उनकी जिंदगी है बाकी दुनिया की तरक्की इन्हें जरा भी नहीं लुभाती, इनके लिए तो पातालकोट का सुख ही सबकुछ है। ये सुख उनका अपना है जो बाकी दुनिया के लिए शायद सपना है।


नमस्कार दोस्तों ! 


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1 comment:

  1. शर्मा जी कहिनJuly 10, 2017

    वाह अद्भुत 👌

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