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3.05.2017

"शिवरात्रि में नंदी की पूजा, पर बैल रहे बैल ही"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     05 March     कविता     No comments   

महाशिवरात्रि के दिन सभी सनातन धर्मावलंबियों में यथा-आस्थाधारक ने महागुरु शिव और उनकी आराध्या पार्वती की आराधना किये, लेकिन किसी ने भी नंदी की पूजा नहीं किये ! हमारे अजीज़न पाठकों हम बूतों के नंदी के बारे में बातें नहीं कर रहे हैं, अपितु हमारे समाज में रहने वाले नंदी के रूप में छुट्टा घुम रहे साँड़ की बात कर रहा हैं, जो लाखों के लगे फसलों को रौंद डालते हैं ! वहीं साँड़ के खसिये रूप यानी बैलों को गांव और शहरों में इस जीव पर आवश्यकता से अधिक कार्य लिए जाते रहे हैं । प्रैक्टिकल में आइये !आज के इस अंक में मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट  लेकर आई है  श्रीमान् अलोक शर्मा की शिवरात्रि पर महाकविता । पढ़िए :---



उमा बन शिव को मै पूजूं सुनो सिन्दूर ओ मेरे;
तुम्ही धड़कन तुम्ही चाहत नज़र के नूर हो मेरे!

बिना तेरे जवाँ महफ़िल भी जैसे प्रौढ़ लगती है;
रहो तुम साथ मेरे तो,हर मुश्किल गौड़ लगती है!

मेरे हमदम मेरे साथी-सजन कोहिनूर हो मेरे;
उमा बन शिव को मै पूजूं सुनो सिन्दूर ओ मेरे!

अकेले में मेरे  प्रियतम जब तेरी याद आती है;
तड़पते मनसे ही पूछो बहुत दिलको सताती है!

नहीं कुछ भी पता  इसको नजर से दूर हो मेरे;
उमा बन शिव को मै पूजूं सुनो सिन्दूर ओ मेरे!

विरह के अग्नि में जब-जब  मै तुमसे दूर होती हूँ;
समझ में ये नहीं आता कि इतना क्यूँ मै रोती हूँ!

तड़पता  मन ये कहता है जिगर के हूर हो मेरे;
उमा बन शिव को मै पूजूं सुनो सिन्दूर ओ मेरे!

महाशिवरात्रि पर शिव से यही अरदास है मेरा;
सुहागन ही रहूँ जबतक  सफर व साथ है तेरा !

तुम्ही काजू, तुम्ही किशमिश, तुम्ही अंगूर हो मेरे
उमा बन शिव को मै पूजूं सुनो सिन्दूर ओ मेरे!!


                                  

नमस्कार दोस्तों ! 


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