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3.04.2017

"ऐसे दिन भी आ गए, एक गधा पर भी कविता लिखनी पड़ गयी"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     04 March     कविता     1 comment   

'राजनीति में आजकल जुमलों की 'टेक्निकल' बारिश हो रही हैं -- बिपाशा' से 'कसाब' तक के जुमलों में राजनीतिक दल फंसते-फंसते 'स्कैम' कब बन गए  ? पता ही नहीं चलता , कम से कम आम नागरिकों  को ? यू. पी. चुनाव  में तू-तू मैं-मैं को लिए व्यंग्य होता है । आज के अंक में  मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट लेकर आई है , व्यंग्यकार सुश्री वत्सला पाण्डेय की व्यंग्य-कविता , यह कविता फेसबुक , ट्विटर से गुजरते-गुजरते ...जुमलों पर  अच्छी-खासी राजनीति व्यंग्य बन चुकी पढ़िए है ! आइये पढ़ते हैं----- "ऐसे दिन भी आ गए, एक गधा पर भी कविता लिखनी पड़ गयी"--




गधों की प्रजाति में 
ख़ुशी की लहर छायी है
फेसबुक ट्विटर 
व्हाट्सअप इंटरनेट में 
गधों की बहार आई है...
एक गधा बोला भाई
अब तो हमसे उपमा दी जाती है
जिससे चाँद तो चाँद
चांदनी भी जल जाती है...
दूसरा बोला बात तो तेरी
सोलह आने खरी है
पर राम जाने क्यों इस पर
सूझती सभी को मसखरी है
ये तो हमारी बिरादरी के 
अच्छे दिनों का आभास है
हम भी स्टार बन चुके है
इस बात का पूर्ण विश्वास है
तीसरा गधा बोला 
गुरु छा गए
उधर देखो 
हमारे आकर्षण में टीवी वाले भी आ गए
हमारे सम्मान में चैनल वाले भी
सम्मेलन करवा रहे है
पर अफ़सोस उसमे हम नही 
कवि जा रहे है ....
इतना सुनकर 
चौथे गधे ने अपनी पूँछ हिलाई
चिंता की लकीरे 
उसके फेस पर आई....
उसने सारे गधो को पास बुलाया
और फिर फ़रमाया
मितरो
ये सभी हमारी जाति को 
कैश कर रहे है
हमारी आड़ में
 खुद ऐश कर रहे है
ये अन्याय 
अब नही सहेंगे
हम भी मन की बात कहेंगे...
इत्ता सुनते ही
सारे गधे  चिल्लाये
अरे इसको कोई समझाये
देखो कहीं ये नेता न बन जाय
सब गधों ने मिलकर 
चौथे गधे को समझाया
देख हमने हमेशा बोझा ही ढोया है
और खूंटे से ही 
अपना रोना रोया है
हमको केवल अपना 
अस्तित्व बचाना है
नेता नही, स्वयं को
सिर्फ गधा ही बताना है
आज भी हम 
सिस्टम के व्यंग्य ढो रहे है
और हमारे चक्कर में  
अच्छे-अच्छे गधे हो रहे है  .......!

नमस्कार दोस्तों ! 


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1 comment:

  1. Khare AMarch 04, 2017

    शानदार गधा कविता!

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