नाम में क्या रखा है ? विलियम शेक्सपियर ने ऐसा कहा था । कुछ से ज्यादा लोग यही कहते भी हैं , पर मेरा मानना है 'नाम' में ही सबकुछ रखा है । नाम के जाल में उलझ कोई डॉन कहलाता है, तो जतिन खन्ना को गुम कर कोई सुपरस्टार राजेश खन्ना बन जाता है ! कोई XYZ या ABC से पहचाने जाएंगे, नहीं न ! मैं भी पहचाना नहीं जाऊँगा । परंतु एक कवयित्री हैं और डॉ0 भी, वे कहती हैं कि नाम में कुछ नहीं है, फख्त पहचान है । अरे ! यही पहचान ही तो नाम है ! आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट लेकर आई है, सुश्री डॉ. सोनम दुबे की 'नाम' नामक परदे के पीछे का रहस्य ! आइये, इसे हम जानते हैं, पढ़ते हैं और समझते भी हैं, किन्तु इसे लेकर औरों के साथ बरगलाइयेगा नहीं-------
नाम
दुःख
तभी तक
दुःख
कहलाता है
जब तक
उसका 'नाम'
दुःख
रहता है....
दुःख
तभी तक
दुःख
कहलाता है
जब तक
उसका 'नाम'
दुःख
रहता है....
कि जैसे
किसी
आगंतुक
को
क्या
पता
कि
दोस्त
जिसे
प्यार
से
'अभि'
बुलाते हैं
वो
'अभिषेक' है
'अभिलेख' है
या
'अभिमन्यु' है...
किसी
आगंतुक
को
क्या
पता
कि
दोस्त
जिसे
प्यार
से
'अभि'
बुलाते हैं
वो
'अभिषेक' है
'अभिलेख' है
या
'अभिमन्यु' है...
तो
यूँ
है
कि
जब
टीस
से
पार
न
पड़े
और
कोई
पूछे
'कुछ बात है क्या?'
तो
चहक
कर
कहना-
हाँ, सुख की बात है।
यूँ
है
कि
जब
टीस
से
पार
न
पड़े
और
कोई
पूछे
'कुछ बात है क्या?'
तो
चहक
कर
कहना-
हाँ, सुख की बात है।
फिर
किसी
अजनबी
को
यह
स्पष्टीकरण क्यूँ देना
कि
'दुःख'
को
हम
प्यार
से
'सुख'
बुलाते
हैं....!
किसी
अजनबी
को
यह
स्पष्टीकरण क्यूँ देना
कि
'दुःख'
को
हम
प्यार
से
'सुख'
बुलाते
हैं....!
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