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2.22.2017

"सच सुनने की कवायद !"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     22 February     कविता     No comments   

मानव पृथ्वी पर एक ऐसा जटिल प्राणी हैं, जिनके बारे में मानव ही खुद कहते है,'जितना वे पाते हैं, उससे 100 गुना अधिक पाने की वे इच्छा रखते हैं ! यह कथन पूर्णतः सत्य है, लेकिन यह सत्य क्या हैं ? क्या महात्मा गांधीजी की आत्मकथा 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' सत्य है , पता नहीं ! लेकिन  आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट लेकर आई है कवयित्री निक्की पुष्कर की कवितायेँ , जिन्हें पढ़ने के बाद लगेगा 'सत्य' क्या है ? आइये पढ़िए:- 




"सच"

सच को जितना दबाओ
उसकी जड़ उतनी ही मजबूत हो जाती है 
और फिर वह उभरता है, 
पहले से अधिक शक्तिशाली रूप मे..!

   सच दूब की तरह,
     अपनी क़ब्र से जीवित हो जाता है
      इतिहास गवाह है
     सच को जितनी बार मारने की ।

       कोशिश की गई वो 
       पर उतनी बार "अमर"हुआ है,
       कभी "ईसा" के रुप में
       कभी"मीरा"के रूप मे ..!

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"मैं"

तुम्हारी कला के सम्मुख
  सदैव नतमस्तक मैं ...!
 तुम्हारा सुन्दर शब्द--संयोजन,
 अलंकारिक-- प्रस्तुति
 आह...कितना आह्ललाद पूर्ण ।

 सदैव गदगद होती मैं...!
 तुम्हारा अभिनय
 मंत्रमुग्ध कर देने वाला
 संवाद-अदायगी
 कितना स्वपनिल
 सदैव हतप्रभ मैं...!

 तुम्हारे तेज से चुंधयाती आँखें
 गुदगुदाता हृदय
 सदैव प्रफुल्लित मैं ...!
 इस सबके बाद भी, 
 तुम्हारे 'आभामंडल 'के सम्मुख
 कभी न धूमिल होने वाला 
  मेरा "व्यक्तित्व"
 सदैव गौरवान्वित "मैं"...!


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   " शेष"

अतृप्ति, असंतोष, उत्कंठा
औऱ अनन्त तलाश....
तलाश किसकी ?
नहीं ज्ञात ...!
अनवरत अज्ञात तलाश...!

हर्ष,समृद्धि,प्रेम सब प्राप्य
समस्त संवेगों से परिपूर्ण हृदय
औऱ प्रकृति के समस्त
ऋणो से उऋण देह...!

पुष्प-पल्लवित उपवन
औऱ मिश्री सी मीठी तोतली वाणी
प्रेम-घन से भीगता आँगन
आदर्श "माँ"...!

"गृहणी"के
तमगो से सम्मानित 
और
इस तेज से दमकता मुखमंडल...!

किन्तु, तृप्ति में ये कैसी अतृप्ति...?
उल्लास मे विषाद कैसा...?
और सन्तुष्टि मे प्रतीक्षा कैसी ?
क्या है जो अभी पाना है "शेष"...?
                         

नमस्कार दोस्तों ! 


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