इश्क़ और मुश्क छुपाये नहीं छुपते, ऐसा कोई कह गया है ! अट्रैक्शन !! यह शब्द तो बहुत छोटा है, परंतु यह 'विपरीत लिंगी' के साथ ही प्रायः होती है , तो 'कभी' बच्चों के साथ, तो कभी 'दादी-नानी' की किस्सों के भाग हो जाते हैं, चाहे वह आधा इश्क़ हो या पूरा ! जब बात 'हाफ इश्क़' पर आती है, तो 'दिमाग' नवोदित लेखक श्रीमान् अमृत राज़ पर ठहर जाती है, क्योंकि 'आधे-इश्क़' को अभी वह ही पूरा करते पाये गए हैं ! आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट लेकर आई है:- 'एंटी वैलेंटाइन वीक' कविता । कविता पूरा पढ़ने के लिए खुद आपको आगे बढ़ना होगा । तो लीजिये, प्रस्तुत कविता:-
आधा--दिल
न मेरा हुआ न तेरा हुआ..
दिल था साला, दिल हुआ..!!
दिल था साला, दिल हुआ..!!
साँसों से लिखने लगे दास्ताँ..
देखो मैं भी अब, काबिल हुआ..!!
देखो मैं भी अब, काबिल हुआ..!!
जिस्म की परतों पे बुना इश्क़..
ये जमाना सारा, आदिल हुआ..!!
ये जमाना सारा, आदिल हुआ..!!
शहर से दिखते है अक्स सभी..
पूरा का पूरा गाँव, फ़ाज़िल हुआ..!!
पूरा का पूरा गाँव, फ़ाज़िल हुआ..!!
तू मिली मुझे..मैं तुझपे ग़ुम हुआ..
सब खोया तो कुछ, हासिल हुआ..!!
सब खोया तो कुछ, हासिल हुआ..!!
चाँद निचोड़ा रात के घूँट पिए..
वो कहते हैं कि मैं पागल हुआ..!!
वो कहते हैं कि मैं पागल हुआ..!!
नमस्कार दोस्तों !
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