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2.07.2017

'ज़िन्दगी की एक्सप्रेस-ट्रेन' (गीत)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     07 February     कविता     No comments   

                                               'ज़िन्दगी की एक्सप्रेस ट्रेन'

जब ट्रेन चलती है , तो ट्रेन की रफ़्तार के साथ आवाज सुनाई देती है  --' बढ़े चलो  .. बढ़े चलो'...'चरैवेति-चरैवेति', लेकिन अगर इसे हम ध्यान से सुनते हैं तब ! आपको भी ट्रेन की ऐसी आवाज सुनाई पड़ते है क्या ? ट्रेन की यात्रा ज़िन्दगी की भी यात्रा है ! आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट लेकर आई है -- जिंदगीनुमा गीत गीतकार-कवि अमित शर्मा 'मीत के साथ , तो पढ़िए ...





अँधियारी रातों के भीतर
खींच उजालों को लाना है
चलो पथिक तुम चलते जाओ
मंज़िल तक तुमको जाना है !!

जिस रास्ते पे तुमको जाना
वो रास्ता अब पथरीला है 
जो थोड़ा चलते जाओगे
परेशानियों का टीला है
तुमको हिम्मत रखते जाते
ऊँची चोटी तक आना है 
चलो पथिक तुम चलते जाओ
मंज़िल तक तुमको जाना है !!

चलते-चलते थक जाओ जब
हिम्मत अपनी बाँधे रखना
संग भरोसे वाली गठरी
सदा ही अपने काँधे रखना
याद रखो इस बात को प्यारे
विजयगान के स्वर-गाना है
चलो पथिक तुम चलते जाओ
मंज़िल तक तुमको जाना है !!

संघर्षों की पृष्ठभूमि पर
मीलों के इतिहास हैं लिखने
कितने हैं जो आम ही लिखते
पर तुमको कुछ ख़ास हैं लिखने
दुनिया वालों ने भी सदा ही
सफल व्यक्ति को ही माना है
चलो पथिक तुम चलते जाओ
मंज़िल तक तुमको जाना है !!

नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
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