ऐसी क्या वजह है कि महिलाओं की भावना को एक पुरुष ही लिखें ? क्या महिलायें अपनी अधिकार पर खुलकर लिख नहीं सकती ! प्रख्यात् सम्पादक स्व. राजेन्द्र यादव ने कभी महिला रचनाकारों को आत्मकथा लिखने के लिए प्रेरित किया था, जिनमें मात्र श्रीमती मैत्रेयी पुष्पा ने इसे पूरी की थी । संविधान इन्हें भी खुलकर लिखने की इजाजत देती है , तो फिर सौ फ़ीसदी महिला रचनाकार 100%लिखती क्यों नहीं, लेकिन अनावश्यक बोलती है? इस अनावश्यकता का उत्तर तो प्रस्तुत आलेख पढ़ने पर ही मालूम चलेगा ! आजकल सोशल मीडिया पर , जहाँ आजादी ,स्वतंत्रता, विचार-अभिव्यक्ति और स्वच्छंदता का मतलब यह होता जा रहा है कि 'मर्द' कच्छी-बनियान पर बातें करें और 'महिलायें' ब्रा-पैंटी पर लंद-फंद लिखते रहें ! जैसा कि FB पर इस ट्रेंड ने जोर पकड़ा है, लेकिन क्या यह सही है ! चलिये इन सभी मनोदशा पर से पर्दा हटाते हुए आज मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट में पढ़ते है -- आलेखकार श्रीमान् राघव त्रिवेदी का प्रस्तुत दर्द भरा आलेख पुरुष की तरफ से 'महिलाओं के नाम एक खुला ख़त' --
सभ्यता समाज और संस्कार ये वो तीन शब्द है जिनके अर्थ समाज ने अपनी आवश्यकता के अनुसार स्त्री अस्तित्व को दबाने के लिए अपने स्वार्थ अनुसार तय किये हैं , साथी समाज ने तय किए हैं कुछ दायरे जिन दायरों का क्राइटेरिया यह निर्धारित करता है कि कौन अच्छा है और कौन बुरा है !
ऐसे में कब एक लड़की समाज के लिए बुरी बन जाती है, वह खुद नहीं समझ पाती हैं --"मैं अपनी देह को सिर्फ इसलिए क्यों छुपाऊं क्योंकि उसे कोई और घूरेगा , मुझ में देखने के लिए सिर्फ मेरी देह ही नहीं मेरी भावनाएं, मेरी संवेदनाएं भी है । हाड़-मांस के पुतले से इस भूख मिटाने वाली देह से इतर भी बहुत कुछ है मुझमें !
मैं यह सब बोल देती हूँ, खुलकर इसलिए मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ, मेरा उठना-बैठना चलना- बोलना सब तुम तय करो यह मुझे गंवारा नहीं बस, इसलिए मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ । मेरी बातों में सेक्स, कॉन्डोम और विस्पर का जिक्र है, इसलिए मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ ,मेरी वर्जिनिटी मेरे कैरेक्टर को जस्टिफाई करें मुझे यह पसंद है । इसलिए मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ !
मैं वो सारे काम करती हूँ जिन पर तुम अपना हक जमाते हो मैं रात को देर से घर आती हूं, मेरे को वर्कर लड़के हैं । मैं खुलकर बोलती हूं, हंसती हूं, इसलिए मैं अच्छी लड़की नहीं हूं ! मैं सर झुका कर पल्लू में छुपकर नहीं चलती मैं सजती हूँ, सँवरती हूँ, इसलिए क्योंकि मैं अच्छी दिखना चाहती हूँ, मेरा अच्छा दिखना तुम्हारी प्यास का निमंत्रण नहीं है, मैं ये खुलकर बोलती हूँ, इसलिए मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ ।
मैं लड़कों से खुलकर हंस कर बात करती हूं, मैं नशा करती हूं, जो अमूमन तुम भी करते, फिर मुझे अच्छाई का सर्टिफिकेट क्यों देते हो ? मैं शादी के बाद सिर्फ खाना नहीं बनाना चाहती, सिर्फ बच्चे नहीं करना चाहती, मैं भी अपने भविष्य के सपने देखती हूं, इसलिए मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ ।
"होना क्या, सोना है केवल !
और सोना तो , अच्छी लड़कियों के लिए है ही नहीं !
कल जो तन पूरा ढकती थीं,
घर की चार दिवारी में भी थी,
चौके-चूल्हे से जिनकी जिन्दगी बँधी थी,
उनकी आबरू भी तो तार-तार की है तुमने !"
जब से यह समाज में अच्छी लड़की के मानक तय हुए हैं, बस तबसे मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ, यह एक लड़की का पत्र है, जो इस समाज के लिए अच्छी नहीं है....!
सभ्यता समाज और संस्कार ये वो तीन शब्द है जिनके अर्थ समाज ने अपनी आवश्यकता के अनुसार स्त्री अस्तित्व को दबाने के लिए अपने स्वार्थ अनुसार तय किये हैं , साथी समाज ने तय किए हैं कुछ दायरे जिन दायरों का क्राइटेरिया यह निर्धारित करता है कि कौन अच्छा है और कौन बुरा है !
ऐसे में कब एक लड़की समाज के लिए बुरी बन जाती है, वह खुद नहीं समझ पाती हैं --"मैं अपनी देह को सिर्फ इसलिए क्यों छुपाऊं क्योंकि उसे कोई और घूरेगा , मुझ में देखने के लिए सिर्फ मेरी देह ही नहीं मेरी भावनाएं, मेरी संवेदनाएं भी है । हाड़-मांस के पुतले से इस भूख मिटाने वाली देह से इतर भी बहुत कुछ है मुझमें !
मैं यह सब बोल देती हूँ, खुलकर इसलिए मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ, मेरा उठना-बैठना चलना- बोलना सब तुम तय करो यह मुझे गंवारा नहीं बस, इसलिए मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ । मेरी बातों में सेक्स, कॉन्डोम और विस्पर का जिक्र है, इसलिए मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ ,मेरी वर्जिनिटी मेरे कैरेक्टर को जस्टिफाई करें मुझे यह पसंद है । इसलिए मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ !
मैं वो सारे काम करती हूँ जिन पर तुम अपना हक जमाते हो मैं रात को देर से घर आती हूं, मेरे को वर्कर लड़के हैं । मैं खुलकर बोलती हूं, हंसती हूं, इसलिए मैं अच्छी लड़की नहीं हूं ! मैं सर झुका कर पल्लू में छुपकर नहीं चलती मैं सजती हूँ, सँवरती हूँ, इसलिए क्योंकि मैं अच्छी दिखना चाहती हूँ, मेरा अच्छा दिखना तुम्हारी प्यास का निमंत्रण नहीं है, मैं ये खुलकर बोलती हूँ, इसलिए मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ ।
मैं लड़कों से खुलकर हंस कर बात करती हूं, मैं नशा करती हूं, जो अमूमन तुम भी करते, फिर मुझे अच्छाई का सर्टिफिकेट क्यों देते हो ? मैं शादी के बाद सिर्फ खाना नहीं बनाना चाहती, सिर्फ बच्चे नहीं करना चाहती, मैं भी अपने भविष्य के सपने देखती हूं, इसलिए मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ ।
"होना क्या, सोना है केवल !
और सोना तो , अच्छी लड़कियों के लिए है ही नहीं !
कल जो तन पूरा ढकती थीं,
घर की चार दिवारी में भी थी,
चौके-चूल्हे से जिनकी जिन्दगी बँधी थी,
उनकी आबरू भी तो तार-तार की है तुमने !"
जब से यह समाज में अच्छी लड़की के मानक तय हुए हैं, बस तबसे मैं अच्छी लड़की नहीं हूँ, यह एक लड़की का पत्र है, जो इस समाज के लिए अच्छी नहीं है....!
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।
Nice and true words.. really need to think on it.
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