MESSENGER OF ART

  • Home
  • About Us
  • Contact Us
  • Contribute Here
  • Home
  • इनबॉक्स इंटरव्यू
  • कहानी
  • कविता
  • समीक्षा
  • अतिथि कलम
  • फेसबुक डायरी
  • विविधा

8.17.2016

'इरोम चानू को तत्कालीन केंद्र सरकार से दोस्ती गांठने चाहिए'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     17 August     आलेख     No comments   

"इरोम चानू को तत्कालीन केंद्र सरकार से दोस्ती गांठने चाहिए"

नवंबर 2000 से लेकर 9 अगस्त 2016 तक भूख हड़ताल रहना एक "अजीबो-गरीब" रिकॉर्ड है पर उन्होंने यह 'आमरण-अनशन' रिकॉर्ड बनाने के लिए नहीं किये थे बल्कि 'सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम' हटाने के लिए किये थे ?
आप सोच रहे होंगे भारत में इतने मेहनत के बाद कोई कानून या अधिनियम बनते है और कोई इसे हटाने के लिए "लगातार 16 वर्षों" से भूख हड़ताल पर है ?

कोई पागल ही होगा यह , आप भी जानते हैं-- यह पागल कौन है ? पर मैं इस मणिपुरी "44 वर्षीया अविवाहिता" को एक सच्चे और अहिंसक अर्थों में महिला "महात्मा गांधी" कहूँगा,  क्योंकि '21 वीं सदी' में जहाँ हिंसा इतनी बढ़ गयी है वहां एक सामान्य सी महिला ने इतने वर्षों तक असामान्य कार्य कि  भूखी रहकर उक्त क़ानून (पूर्वोत्तर राज्यों के विभिन्न हिस्सों में लागू इस कानून के तहत सुरक्षा बलों को थोड़ी-सी संशय पर ही किसी को भी देखते ही गोली मारने या बिना वारंट के जबरिया किसी के घर घुसकर गिरफ्तार करने या फिर इन सबके आर में महिला के साथ छेड़- छाड़ व बलात्कार को अंजाम देने की खुली छूट हासिल थी ------ संबंधी अधिकार वाला क़ानून ) के विरुद्ध इरोम  शर्मिला चानू ने इम्फाल के 'जस्ट पीस फाउंडेशन' नामक गैर सरकारी संगठन के बैनर तले अनशन शुरू की व भूख हड़ताल करती रहीं। सरकार ने शर्मिला के इस प्रयास को 'आत्महत्या' का प्रयास माना और फिर गिरफ्तार कर ली जाती रही । चूंकि यह गिरफ्तारी एक साल से अधिक नहीं हो सकती और उनकी भूख- हड़ताल लम्बी होती चली गयी, अतः हर साल उन्हें रिहा करते ही दोबारा गिरफ्तार कर लिया जाता था।नाक से लगी एक नली के जरिए उन्हें तरल पदार्थ दिया जाता था तथा इस के लिए पोरोपट / इम्फाल के सरकारी अस्पताल के एक कमरे को अस्थायी जेल बना दिया गया था । वे गांधीजी के मार्ग को चुनी । लगातार 16 वर्षों तक अनशन से उनकी शारीर क्षीणतम होती चली गयी और अपने व्यक्तिगत अरमानों को तिलांजलि भी दी, परंतु सरकार पसीजे भी नहीं । जब उन्हें लगा कि केजरीवाल की भाँति राजनीति चुनकर सदन पहुंची जाय, लेकिन 'मणिपुरी आयरन लेडी' के इस निर्णय से जनता क्षुब्ध है, जनता उनके विचारों से सहमत नहीं हैं और वहां की जनता खुले तौर उनकी  साथ नहीं दे रहा है । जनताओं को उनके व्यक्तिगत सपने से कोउ मतलब नहीं है, मानो जनता उन्हें हमेशा अनशनकारी माहिला के तौर पर ही देखते रहना ही चाहते थे की वे कोई देवी है.......और जनता को उनकी अरमानों से क्या मतलब है !!!!
क्या है--'सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम,1958 '
---------------------------------------------------------------

वैसे तो हर अधिनियम/कानून 'राज्य' और 'राष्ट्र' को सुचारु ढंग से चलाने के काम आते हैं,पर इस अधिनियम की शुरुआत जब हुयी, तब 'आतंकवाद' का साया पूर्वोंत्तर राज्य में बाहें पसारे था, यह कानून तो देश अखंडता के लिए बढ़िया है,पर आखिर इस क़ानून पर इतने बवाल क्यूं है ?
अगर इस कानून का इतिहास देखें तो ज्ञात होता है कि सर्वप्रथम ब्रिटिश राज में 15 अगस्त 1942 को एक सशस्त्र बल विशेषाधिकार अध्यादेश लाया गया था I इसका मुख्य कारण 09 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के द्वारा घोषित भारत छोड़ो आंदोलन का दमन करना था । वर्तमान में सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून-1958 उस अध्यादेश से भी बदतर है I ब्रिटिश अध्यादेश में सक्षम अधिकारी एक कैप्टन या उसके समकक्ष पद होता था I वर्तमान कानून के अंदर सक्षम अधिकारी एक हवलदार के स्तर का हो सकता है I इसके अलावा वर्तमान कानून में सशस्त्र बलों को बगैर वॉरंट के किसी भी घर में घुसना, तलाशी लेना अथवा उसे तोड़ने का भी अधिकार है, जैसा कि ब्रिटिश अध्यादेश में एस उल्लेख नहीं था, लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर एक स्वतंत्र प्रजातांत्रिक भारत के अंदर हमें क्‍यों इस तरह के कानून की आवश्यकता पड़ी ? सरकार का पक्ष है कि राज्यों को अलगाववाद एवं आतंकवाद से सुरक्षित रखने हेतु सशस्त्र बलों का भेजना आवश्यक है और ये सशस्त्र बल  इस विशेषाधिकार क़ानून के कार्य नहीं कर पाएंगे, क्योंकि आतंक से पूरा देश विखंडित हो सकता है और सुरक्षाकर्मियों को यह छूट नहीं हो तो आतंकवादी हमें नेस्तनाबूद करने में क्षण भी नहीं गँवायेगा । ब्लॉगर राकेश कुमार सिन्हा के ऐसा ही विचार है ।
लेकिन 'विशेषाधिकार' का मतलब यह तो नहीं कि किसी भी नागरिक को आप मार दें !!! वैसे इस कानून के अंतर्गत सशस्त्र बलों को तलाशी लेने, गिरफ्तार करने व बल प्रयोग करने आदि में सामान्य प्रक्रिया के मुकाबले अधिक स्वतंत्रता है तथा नागरिक / संस्थाओं के प्रति जवाबदेही की मात्रा क्षीण है।

अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड के ‘अशांत इलाकों’ में तैनात सैन्‍य बलों को ही शुरू में इस कानून के तहत विशेषाधिकार हासिल थे, लेकिन कश्मीर-समस्या के कारण जुलाई -1990 में यह कानून सशस्त्र बल (जम्मू एवं कश्मीर) विशेष शक्तियां अधिनियम, 1990 के रूप में जम्मू कश्मीर में भी लागू किया गया, लेकिन लद्दाख शहर इस कानून से अछूता रहा ।

इरोम दी ने भूख हड़ताल उस समय शुरू की थी, जब 2 नवम्बर को मणिपुर की राजधानी इंफाल के मालोम में असम राइफल्स के जवानों के हाथों 10 बेगुनाह लोग मारे गए थे। उन्होंने 4 नवम्बर 2000 को अपना अनशन शुरू किया था, इस उम्मीद के साथ कि 1958 से अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, असम, नगालैंड, मिजोरम और त्रिपुरा में और 1990 से जम्मू-कश्मीर में लागू 'आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट' (ए.एफ.एस.पी.ए. / आफ्सपा) को हटवाने में वह महात्मा गांधी के नक्शेकदम पर चल कर कामयाब होंगी, लेकिन अब 2016 भी समाप्ति पर है , पर इस  कानून का बुरा पक्ष अब भी बरकरार है , यह सवाल देश के उन्नत नागरिक के मुँह पर तमाचा के रूप में बरकरार है ? मोदी ने सैकड़ों कानून को हटाया, इसपर क्या वे संशोधन भी करेंगे !!!!

पर 16 वर्षों से थकान के बाद भी उनकी साथ देने के लिए कोई नहीं कि 9 अगस्त को उसने नली को छोड़कर खाने को जीभ से चखी और उसने कहा-- इस कानून को हटाने के लिए अब मैं चुनाव लड़ूंगी , 'मुख्यमंत्री' बनकर ही मैं इस कानून को हटा सकूंगी ,लेकिन चुनावी पार्टी उनके पक्ष में नहीं परंतु वे तय कर ली हैं, वे निर्विरोध चुनाव लड़ेंगी। केजरीवाल मुख्यमंत्री बनकर भी कौन - से बाघ मार रहे हैं । किसी को यह ज्ञात होनो चाहिए, क़ानून बनाने का कार्य संसद का है और कुछ क़ानून में यह 2/3 राज्यों के विधान मंडल से पारित भी  होने चाहिए । इसक लिए प्रभावित राज्यों को केंद्र सरकार से दोस्ती रखने जरूरी है ।


-- T.Manu ...
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg
Newer Post Older Post Home

0 comments:

Post a Comment

Popular Posts

  • 'रॉयल टाइगर ऑफ इंडिया (RTI) : प्रो. सदानंद पॉल'
  • 'महात्मा का जन्म 2 अक्टूबर नहीं है, तो 13 सितंबर या 16 अगस्त है : अद्भुत प्रश्न ?'
  • "अब नहीं रहेगा 'अभाज्य संख्या' का आतंक"
  • "इस बार के इनबॉक्स इंटरव्यू में मिलिये बहुमुखी प्रतिभाशाली 'शशि पुरवार' से"
  • 'जहां सोच, वहां शौचालय'
  • "प्यार करके भी ज़िन्दगी ऊब गई" (कविताओं की श्रृंखला)
  • 'कोरों के काजल में...'
  • 'बाकी बच गया अण्डा : मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट'
  • "समाजसेवा के लिए क्या उम्र और क्या लड़की होना ? फिर लोगों का क्या, उनका तो काम ही है, फब्तियाँ कसना !' मासिक 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में रूबरू होइए कम उम्र की 'सोशल एक्टिविस्ट' सुश्री ज्योति आनंद से"
  • "शहीदों की पत्नी कभी विधवा नहीं होती !"
Powered by Blogger.

Copyright © MESSENGER OF ART