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5.06.2016

'मोनालिसा ...अरे -O-मोनालिसा ...कहाँ हो मोनालिसा !! मैं लियोनार्दो,आज का मनु !!'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     06 May     लघुकथा     No comments   

                           मोनालिसा .. अरे -O-मोनालिसा ...कहाँ हो मोनालिसा !!
                                          मैं लियोनार्दो , आज का मनु !!



पता नहीं वह रात हर रात की तरह ही थी ,जैसे दिन गुजरने के बाद शाम और शाम के बाद रात ,लेकिन इस रात में कुछ अलग जरूर था मैं शाम की चाय पीकर दोस्तों के साथ आ रहा था दोस्त भी वही थे जो बाकि दिनों की तरह चाय पीने जाते थे !

शानू,उमेश,आकाश,पवन,बाबा यानि अभिजीत,प्रशांत,राहुल और मैं , हम तंग गलियों से गुजरते ,मुस्कुराते और गप्पे मारते...गप्पे भी ऐसी वाली नहीं ,
AIB ROAST से भी आगे वाला गप ,मतलब आप समझ गए होंगे 'ऑल इंडिया बक....' आगे आप खुद समझदार है !!
हम लोग बढे जा रहे थे अचानक दूर से आती रौशनी ने हमें रुकने पर विवश कर दिया , आखिर क्या था इस रौशनी में किसी को मालूम नहीं था कि आगे क्या होने वाला है इनकी ज़िन्दगी में सभी अनभिज्ञ थे ??
ये रौशनी सूर्य की रौशनी जैसे तेज लिए हुए थे !! सभी उसी रौशनी को देख रहे थे कोई और था !!
जो बड़े ध्यान से उस रौशनी को निहार रहा था वो उसी दोस्तों में है  बाबा अपने कपालमस्तक के गोल-गोल आँखों से उस रौशनी को उन सबमे भी सबसे गौर से निहार रहा था ।
क्रमशः ...
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