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4.05.2015

'बयान 11 : कृष्णार्जुन'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     05 April     कविता     No comments   


"*सुधन्वा*" (गीति नाट्य) -- डॉ. एस पॉल ।
(प्रस्तुत गीति-नाट्य में 12 पात्र 12 आयामों का प्रकटीकरण है, यथा:- कालचक्र, अश्वमेध-यज्ञ, अश्व, महाभारत, काल, चम्पकपुरी, राजा हंसध्वज, शंख-लिखित, अवतार, भारतवर्ष, कृष्णार्जुन और सुधन्वा । ध्यातव्य है, 'सुधन्वा' ऐतिहासिक नायक थे । )


कृष्णार्जुन
------------
गाण्डीव    धरा,  अर्जुन    चला  ,  रथ    पर   हो   सवार  ,
अश्वमेध   का   घोड़ा   आगे ,  पीछे    में  सैनिक   हजार  ।
विजयी - विजयी  की  नाद , बात  बहुत - ही  पुरातन  थी ,
घोड़ा  हिन्  - हिन्  कर  ठहरा , चम्पकपुरी भी पुरातन थी ।
अर्जुन  के  रथ  पर अर्जुन  केवल, न मातालि, न  कृष्ण था ,
सारथी अलग थे अलग - वलग , न   काली  ,  न   वृष्ण था ।
सामने  अड़े  थे - एक  छोरे  ,  छट्टलवन  के  अभिमन्यु  थे  ,
तब   कुश-जैसे  राम  के  आगे , वीर-बाँकुरे क्रांतिमन्यु   थे  ।
सुधन्वा  -  नाम      कहलाता ,   दिया     परिचय     उन्होंने  ,
सारथी  कृष्णचन्द्र  को  बुला ,  कहा  पुनः  -  पुनः   उन्होंने ।
अर्जुन  सोच  रहा  -    जन्मे  आगे  मेरे , मेढक-सा  टर्राटा  है,
छोटी  मुँह  से  बड़ी  बात   कह , परदिल  को  घबराता   है  ।
आत्म - स्मरण , कृष्ण - समर्पण, कर छोड़ा एक तीक्ष्ण वाण,
धराशायी   हो, कृष्ण  दर्शन कर , निकल  सुधन्वा  का  प्राण ।

क्रमशः...
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