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5.02.2015

'बयान 12 : सुधन्वा'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     02 May     कविता     No comments   

आज 'सुधन्वा' का अंतिम बयान पढ़ते है, आइये पढ़े...!
"*सुधन्वा*" (गीति नाट्य) -- डॉ. एस पॉल ।
(प्रस्तुत गीति-नाट्य में 12 पात्र 12 आयामों का प्रकटीकरण है, यथा:- कालचक्र, अश्वमेध-यज्ञ, अश्व, महाभारत, काल, चम्पकपुरी, राजा हंसध्वज, शंख-लिखित, अवतार, भारतवर्ष, कृष्णार्जुन और सुधन्वा । ध्यातव्य है, 'सुधन्वा' ऐतिहासिक नायक थे । )





सुधन्वा
--------
अंतिम - पात्र  प्रवीर सुधन्वा को, धन्ना - धन से कोई मेल नहीं,
सन्तातिथि  सेवक  होकर  भी , भगवान को पाना खेल  नहीं ।
दृढ़-प्रतिज्ञ अटल सुधन्वा  ,  द्वार पर भगवान लाना चाहता था,
तप  की  प्रतिगमन से आज , नहीं मौका छोड़ना चाहता  था  ।
सुधन्वा     जब      देखा    वहाँ ,  तो   कृष्ण   नहीं   थे    बैठे  ,
अर्जुन    केवल   खड़े   -  खड़े  ,  गाण्डीव   लेकर    ऐ    ऐंठे  ।
कृष्णभक्त   सुधन्वा  , कृष्ण  -  दर्शन   को   ले   बड़े   उत्सुक  ,
ललकार   से   कृष्ण   बुला , हे नर ! अर्जुन  से  लड़े   उपशुक ।
बच    तेल    कढ़ाही    से  निकल , सुधन्वा    अमर    बना  था ,
तीन - तीर   शपथ   लेकर    अर्जुन ,  यह     समर   बना   था  ।
त्रितीर   गमन  को   काट   दूंगा , ले    सुधन्वा   कृष्ण  -  शपथ ,
तीर -द्वय  काटकर  फिर  सुधन्वा, तीसरा  गिरा  आधा   कुपथ ।
अग्र   -   भाग    में     कृष्ण     हरे !  दर्शन    दे  -   दे   चिंगारी  ,
कटा  ग्रीवा  सुधन्वा  का  ,  कि  जन्मना  माँ  की कोख ए प्यारी ।
                                                        (समाप्त)
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