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7.07.2014

'बयान 2 : अश्वमेध-यज्ञ'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     07 July     कविता     No comments   


"*सुधन्वा*" (गीति नाट्य) -- डॉ. एस पॉल ।
(प्रस्तुत गीति-नाट्य में 12 पात्र 12 आयामों का प्रकटीकरण है, यथा:- कालचक्र, अश्वमेध-यज्ञ, अश्व, महाभारत, काल, चम्पकपुरी, राजा हंसध्वज, शंख-लिखित, अवतार, भारतवर्ष, कृष्णार्जुन और सुधन्वा । ध्यातव्य है, 'सुधन्वा' ऐतिहासिक नायक थे । )



केवल  घोड़ा  छोड़  कहलाना ,  चक्रवर्ती,  अश्वमेध  नहीं ,
लौट  अश्व ,  उस  यज्ञस्थल  पर,  यह  भी  अश्वमेध  नहीं ।
होता    अश्वमेध   बहु -  अश्व -  मुक्ति  का,   यज्ञ   महान ,
होमादि   में   प्रवाह  पाप  कर , बन  पांडव  अज्ञ - महान ।
त्रेता    में   रामचंद्र  ने   किया,  अश्वमेध   का  दूत - गमन ,
अश्व  -  असुर -  पशुबुद्धि,  पान -  मद्य  औ' द्यूत - जलन ।
जहाँ  राम  ने  माया  सीता  की,  स्वर्ण  -  मूरत बनाया था ,
द्वापरा युद्धिष्ठिर तहाँ पर्वत से ,  रतन-जवाहरात लाया था ।
ऋचाओं  के  मन्त्र - सिद्धि  से , आदि  में   यश-गान  हुआ ,
यंत्र - तंत्र  के परा प्रणाली  से , उषाकाल  का  भान  हुआ ।
विजय   जहां   विशेष  है,  जय   की  महिमा  वहाँ  अपार ,
है    हवनकुण्ड  में  अक्षत  की ,  मंडित  गरिमा  -  संसार ।
हो  आकाशी  पुष्पवर्षा , पर  स्वहितार्थ  जो, अश्वमेध नहीं,
क्षमा ,दया , दीन - रक्षा - पूजा, जीव - सेवा , अश्वमेध सही।


   क्रमशः...
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