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6.03.2014

'बयान 1 : कालचक्र'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     03 June     कविता     No comments   

"*सुधन्वा*" (गीति नाट्य) -- डॉ. एस पॉल ।
(प्रस्तुत गीति-नाट्य में 12 पात्र 12 आयामों का प्रकटीकरण है, यथा:- कालचक्र, अश्वमेध-यज्ञ, अश्व, महाभारत, काल, चम्पकपुरी, राजा हंसध्वज, शंख-लिखित, अवतार, भारतवर्ष, कृष्णार्जुन और सुधन्वा । ध्यातव्य है, 'सुधन्वा' ऐतिहासिक नायक थे । )


मैसेंजर ऑफ ऑर्ट में आज से हर महीने पढ़ते है डॉ. एस.पॉल की कविताओं के बयान ,....'सुधन्वा', आइये पढ़े ...


कालचक्र
-----------
सृष्टिपूर्व  मैं शब्द  था,  फिर अंड - पिंड -  ब्रह्माण्ड  बना,
जनक-जननी,  भ्रातृ-बहना, गुरु-शिष्य   औ' खंड  बना ।
हूँ काल मैं, शव-चक्र  समान,  सत्य-तत्व,  रवि-ज्ञान भला,
प्रकाश-तम, जल-तल, पवन-पल, युद्ध-शांत, विद्या-बला ।
परम-ईश्वर, सरंग-समता, पूत - गुड़- गूंग आज्ञाकारी बना,
देव-दनुज, यक्ष-प्रेत-कीट, मृणाल-खग  मनु उपकारी बना।
युग-युग   में  अनलावतार  हो,  जम्बूद्वीप   में  कर्म   बना,
मर्म  के  जाति-खंड पार  हो,  कि   कर्तव्य  राष्ट्रधर्म बना ।
हूँ  संत-पुरुष, अध्यात्म-विज्ञ, तो  पंचपाप  को पूर्ण जला,
अकर्म-शर्म, कर्मांध-दर्प, तांडव - नृत्य - कृत्य स्वर्ण गला ।
हर्ष - उत्कर्ष  हो  सहर्ष  मित्र , अपना  जीवन - संग बना ,
त्याग - सेवा, संतोष - उपासना   का,  क्लीव - अंग  बना ।
रस - अपभ्रंश  में,  गीति - नाट्य -  कवि,  ऊँ - भक्ति बना ,
भक्ति   की   अभिव्यक्ति   से ,  मुक्ति   की   शक्ति   बना  ।


क्रमशः ...
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