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8.14.2014

'बयान 3 : अश्व'

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     14 August     कविता     No comments   


"*सुधन्वा*" (गीति नाट्य) -- डॉ. एस पॉल ।
(प्रस्तुत गीति-नाट्य में 12 पात्र 12 आयामों का प्रकटीकरण है, यथा:- कालचक्र, अश्वमेध-यज्ञ, अश्व, महाभारत, काल, चम्पकपुरी, राजा हंसध्वज, शंख-लिखित, अवतार, भारतवर्ष, कृष्णार्जुन और सुधन्वा । ध्यातव्य है, 'सुधन्वा' ऐतिहासिक नायक थे । )


अश्व
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कोई गिनती नहीं,पशु में अश्व की,अश्व असत्य में सत्य है,
सृष्टि काल-ग्रास में, पृथ्वी पर जीवन, सबके सब मर्त्य है ।
रथ  में  जुते  जहाँ  अश्व  है, कि सारथिहीन मन चंचल है,
राजप्रासाद  की  बात  विदाकर, वन  में ग्राम - अंचल है ।
अश्वारोही   चमत्कृत,   पामर - मन   जब  वश   में   हो ,
हस्ती  औ'  वनकेशरी - शक्ति, कि अश्व  जब वश  में हो ।
शांति - अश्म  में  रस्म  देकर, अश्वमन  जीता  जाता  है ,
शान्ति-द्वार  से  स्वर्गद्वार  होकर, हरिद्वार खुल जाता है ।
रूप  अश्व है, गंधहीन  भी, ज्ञानहीन  भी  हो  सकता  है ,
चक्रवर्ती   बननेवाले   अश्व ,  दूसरे   का   उपभोक्ता  है ।
मत्स्य,  कच्छप,  शूकर  और  पशु-ढंग नरसिंहावतार है ,
पशु   है  निश्चित  ही   महान,  ज्ञान - रुपी  दशावतार  है ।
विशाल   अश्व   हूँह  !  अश्व  -  पीठ   पर   चाबुक   पड़े ,
वेदाध्ययन   करते -  करते  ,  कि    ज्ञानी   शम्बूक   मरे ।


क्रमशः ....

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