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4.25.2014

"कड़ी 9 : "तीन तलाक.....ब्लॉक"

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     25 April     कविता     No comments   


"तीन तलाक.....ब्लॉक"
बुढ़यापे होते हैं मर्मान्तक
तिल-तिल तिलसते देखी है, दादा-दादी को !
प्रेम-जुदाई होते हैं दर्दनाक
खुद को तिल-तिल टूटती देखी है, मैंने !
जानेवालों के दर्द भोगनेवाले
जिस भी गलती के शिकार हो
वह प्रायश्चित कर भी
क्षमा नहीं पाती !
क्योंकि वे औरों में रत यानी औरत जो थी !
क्योंकि औरत सिर्फ 'संधि' के लिए है,
पुरूष तो पररस है, पाने को चाह
'विच्छेद' लिए
उन्हें सिर्फ / दूसरे की पत्नी भायेगी
औरत अगर औरत की सहेली रहे
और वे कभी भी रहे पत्नीशुदा पुरूष को
कर बहिष्कार,
तो नहीं आएगी --
भोगों के परमेश्वर मर्दों को कहने को
तलाक-तलाक-तलाक
यानी 'त'.........लॉक ।
लॉक कर दीजिये, कंप्यूटर जी !
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