आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, श्रीमान कमलेश झा की रचना........
श्रीमान कमलेश झा |
तोड़ गुलामी की बेड़ी को मना रहे आजादी वर्षगांठ।
आजादी के इस अमृत महोत्सव मना रहे आजादी वर्षगांठ।।
नमन तुम्हें हे भारत माता नमन तुम्हें हे वीर सपूत।
गुलामी की उस बेड़ी को तोड़ने का जिसने प्रयास किया भरपूर।।
शीश किए जिसने भी अर्पण उस सैनिक को करते नमन।
भारत की रक्षा में जिसने अर्पित कर दिए अपना तन और मन।।
नवनिर्माण के इस चौराहे करते रहना है विचार।
पीछे किए गए भूलों पर करना होगा पुनः विचार।।
कमी कहां थी सोचों में जिससे दंश मिल रहा बारंबार।
उन सोचों को सही दिशा दे कर करना बस अब भूल सुधार।।
प्रगति की राह प्रशस्त हो और गढ़ें हम नव इतिहास।
विश्व पटल पर परचम लहराकर गढ़ ले बस नव इतिहास।।
बंदे भारत गाते जाएं मिलकर के हम सब मिल साथ।
अपनी अपनी क्षमता से भारत के विकास में दे दें साथ।।
विश्वगुरु का परचम अपना चलता जायेगा अपने साथ।
विश्व पटल पर तिरंगा अपना फहरेगा फिर अपने आप।।
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