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3.03.2022

कड़ाके की ठंड में ‘स्कूल’ सिर्फ स्टूडेंट्स के लिए बंद होते हैं, शिक्षकों के लिए नहीं !

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     03 March     समीक्षा     No comments   

आइये, मैसेंजर ऑफ़ आर्ट में पढ़ते हैं, कटक के रहवासी श्री विकाश शर्मा द्वारा समीक्षित उपन्यासकार तत्सम्यक् मनु के हिंदी उपन्यास 'the नियोजित शिक्षक' की समीक्षा.......

जिन शिक्षकों के विद्यालय से पढ़कर कोई देश के प्रधानमंत्री बनते हैं, मुख्यमंत्री बनते हैं, IAS बनते हैं, IPS बनते हैं, ये लोग इसी शिक्षक के हालात पर कभी ध्यान नहीं देते हैं, अपितु PM, CM या पदाधिकारी बनने के बाद एक तारीख को इन्हें यादकर भूल जाते हैं.

हिंदी उपन्यास ‘the नियोजित शिक्षक’ ऐसा उपन्यास है, जो शुरूआती पन्नों से ही अचंभित और अनोखा है. उपन्यास में अर्द्ध सरकारीकर्मियों की ज़िन्दगी के बारे में लिखा गया है. हाँ, जिनमें नियमित शिक्षक नहीं आते हैं, अपितु नियोजित या पारा या कॉन्ट्रैक्ट व संविदावाले शिक्षक आते हैं, क्योंकि अगर ऐसे शिक्षकों का सम्मान हो पाते, तो “तत्सम्यक् मनु” की कलम से ऐसी कालजयी कृति नहीं निकलती !

एक पाठक होने के नाते जब मैंने यह उपन्यास पढ़ना शुरू किया, तो मुझे लगा कि सिर्फ शिक्षकों के अच्छे गुणों पर लेखक ने जिक्र किये होंगे, लेकिन जब मैं उपन्यास के समुन्दर में गोते लगाते रहा, तो मुझे मालूम चलते गया कि कुछेक शिक्षकों के कारण हम संघर्षशील शिक्षकों को दुआ-सलाम करना भूल गए हैं.

उपन्यास के अंदर एक नहीं, बल्कि कई ज़िन्दगियों की गाथाएँ हैं. कथानायक की ज़िन्दगी भी रहस्यों से अंटे पड़े हैं, जिसके अंदर प्रवेश करते ही हमें पन्ने -दर- पन्ने पलटने पड़ते हैं, ज्यों-ज्यों हम उपन्यास के अंदर जाने पर भींगते हैं; त्यों-त्यों अनेक रहस्य, अनसुलझे प्यार, अलहदा संघर्ष से गुजरते चले जाते हैं.

उपन्यास में एक वाक्य है-

“कड़ाके की ठंड में ‘स्कूल’ सिर्फ स्टूडेंट्स के लिए बंद होते हैं, शिक्षकों के लिए नहीं !”

यह सिर्फ एक वाक्य ही हमें शिक्षकों के दर्द को बता जाते हैं कि क्या ठंड सिर्फ बच्चों को ही लगते हैं ? क्या शिक्षक हाड़-मांस का जीवन नहीं होते हैं यानी उन्हें ठण्ड नहीं लगते ? उपन्यास में एक जगह लिखा है-

“शाकाहारी हेडमास्टर MDM मेनू के लिए अंडे की व्यवस्था क्यों करेंगे ?”

यह वाक्य भी शिक्षकों के दर्द को बताने के लिए काफी है. इस उपन्यास की कहानी शुरू से लेकर अंत तक न सिर्फ बाँधे रखती है, तो वहीं नई-नई जानकारी भी देती हैं.

अगर उपन्यास के बारे में कुछ शब्दों में कहूँ, तो यह उपन्यास पैसा वसूल है, किन्तु शिक्षकों के दर्द को भारत सरकार और राज्य सरकारों को अत्यावश्यकरूपेण ध्यान देने चाहिए.

नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं। इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।

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