'विश्व हिंदी दिवस' के शुभावसर पर मैसेंजर ऑफ आर्ट के आदरणीय पाठकगण, आइये, पढ़ते हैं, 'वर्ल्ड आइकॉनिक टीचर्स अवॉर्ड' से सम्मानित सुश्री अर्चना कुमारी द्वारा समीक्षित उपन्यासकार तत्सम्यक् मनु के हिंदी उपन्यास 'the नियोजित शिक्षक' की शानदार समीक्षा.......
हालाँकि मैं विज्ञान शिक्षिका हूँ, परंतु हिंदी उपन्यास 'the नियोजित शिक्षक' पढ़ने से लगा कि प्रत्येक व्यक्ति को साहित्यिक रुचि से सरोकार रहना ही चाहिए. यह उपन्यास पढ़ने के लिए मैंने 'विद्यालय' से दो दिनों की छुट्टी ली थी और इस छुट्टी का सदुपयोग कर इसे मैंने पढ़ भी ली. शिक्षिका होने के बावजूद मैं कई बातों से अनभिज्ञ थी, इसलिए इस उपन्यास के प्रति आभार व्यक्त करना चाहूँगी कि उसने मेरी आँखें खोल दी. इसके लिए उपन्यासकार श्री तत्सम्यक मनु को साधुवाद.
'the नियोजित शिक्षक' पढ़कर यह 'फील' की कि अध्यापन कार्य के दौरान हमें बहुत सारी ऐसी घटनाओं से रूबरू होने पड़ते हैं, जिसे बता पाना मुश्किल होती है ! कैसे विद्यार्थियों द्वारा यदा-कदा ही हमारे साथ बुरा बर्ताव किए जाते हैं कि अबतक कमाई इज्जत दाँव पर लग जाती है ? वहीं आजकल के स्टूडेंट्स विद्यालय में कैसे बर्ताव करते हैं ? कैसे अभिभावक द्वारा स्टूडेंट्स के छात्रवृत्ति के पैसों से अपनी इच्छा की बीड़ी सुलगाते हैं ? कैसे MDM के वक़्त पत्रकार खाने आ जाते हैं ? कैसे पत्रकारों द्वारा शिक्षकों को धमकाए जाते हैं ? कैसे बड़े से बड़े ऑफिसर भ्रष्टाचार फैलाते हुए 'विद्यालय' यानी शिक्षा के मंदिर को दूषित करते हैं.... इत्यादि-इत्यादि ?
अनेक घटनाएँ इस उपन्यास में मुझे पढ़ने को मिली है और विद्यालय से इतर कॅरियर, प्रतियोगिता आदि में आखिर क्यों BPSC में सही कैंडिडेट पहुँच नहीं पाते हैं ? आखिर क्यों लोग अपने बच्चों को शिक्षक बनाना नहीं चाहते हैं ? आखिर क्यों मातृत्व अवकाश में 9-10 माह गर्भवती रहनेवाली महिला कर्मियों के हिस्से सिर्फ 6 माह अवकाश और पुरुष कर्मियों को बच्चों के देखभाल के लिए सिर्फ 15 दिनों की छुट्टी ?
उपन्यास रोमांचक दुनिया में तो ले ही गयी है, साथ-साथ प्रेम को भी बलखाती दुनियाओं की सैर करा गयी है. उपन्यास में ऐतिहासिक जानकारी को लेकर यही कहना है कि आप जानेंगे 'कोसी' क्या है, तो वहीं उपन्यास पढ़कर ही मैं जान पायी कि कथा सम्राट प्रेमचंद 'कवि' भी थे, मैं यह भी जान पायी कि बिहार नाम क्यों और कैसे हैं ? यही नहीं, 'बिहार दिवस' 22 मार्च को तो है ही नहीं !
ज्यों-ज्यों उपन्यास के पात्रों से यारी हुई, त्यों-त्यों कथानायक का चरित्र-चित्रण विस्मित करते चला गया। उपन्यासकार ने स्थानीय आँचलिक भाषा का बेजोड़ तरीके से इस्तेमाल किए हैं, जिसे पढ़कर लगता है कि इस भाषा पर उनका 'विशेषाधिकार' प्राप्त हैं. इस आँचलिक भाषा 'अंगिका' का लेखक ने हिंदी रूपान्तर भी प्रस्तुत किया है.
ग्रामीण परिवेश का सुखद वर्णन लेखक द्वारा किया गया है, जिसे पढ़ते-पढ़ते मैं भी ग्रामीण वायुमंडल में प्रवेश कर गयी हूँ. उपन्यास में सौ फीसदी सच देने के लिए लेखक ने कई न्यूज़पेपर कटिंग्स का भी इस्तेमाल किया है यानी उपन्यास को लिखने के दौरान लेखक ने भाँति-भाँति के मुद्दे उठाए हैं, जिसे पढ़कर यही लगता है कि उपन्यास लेखन में काफी शोध हुआ है और यही शोधपरक जानकारी उपन्यास को 'कालजयी' बनाता है.
उपन्यास खत्म होते-होते आँखों से आँसू बह ही जायेंगे और जबाँ पर यही सवाल रह जाएंगे कि काश 'नियोजित शिक्षकों' के दर्द को सभी सरकारें समझ पाती !
नमस्कार दोस्तों !
'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं। इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।
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