अन्य माह की तरह अक्टूबर माह भी कई ऐतिहासिक तथ्यों को समेटे हैं, यथा- बुजुर्ग दिवस (पहली अक्टूबर), राष्ट्रपिता बापू और 'जय जवान, जय किसान' वाले शास्त्रीजी के जन्मदिवस (2 अक्टूबर), विश्व शिक्षक दिवस (5 अक्टूबर), भारतरत्न जेपी, नाना देशमुख जी सहित भारतीय सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्चन के जन्मदिवस (11 अक्टूबर), सदाबहार अभिनेत्री रेखा जी की जन्मदिन (12 अक्टूबर), संयुक्त राष्ट्र संघ का स्थापना दिवस (24 अक्टूबर), भारतरत्न सरदार पटेल का जन्मदिन और भारतरत्न इंदिरा जी की बलिदान दिवस (31 अक्टूबर) इत्यादि। आपके प्रिय 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' ने अक्टूबर 2021 के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' के लिए ऐसे ही महत्वपूर्ण शख्सियत को तराशे हैं, जो कम उम्र में ही गागर में सागर बन ऐतिहासिक पुस्तक 'सृजन फिर से' का ऐतिहासिक सृजन किए हैं। आइये, इस पुस्तक के सृजक श्री प्रशांत कुमार मिश्रा से लिए गए 'इनबॉक्स इंटरव्यू' के मार्फ़त उनके विचारों, भविष्य की योजनाओं और सुनहरे सपनों के बारे में रूबरू होते हैं, तो यह लीजिये...
श्रीमान प्रशांत कुमार मिश्रा |
(1.)आपके कार्यों/अवदानों को सोशल/प्रिंट मीडिया से जाना। इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के बारे में बताइये ?
उ:- सबसे पहले आपका तहे दिल से शुक्रिया। आपका एक विस्तृत क्षेत्र है। हिंदी साहित्य को आगे बढ़ाने के लिए आपका यह कार्य बहुत ही सराहनीय है, इससे हजारों-सैकड़ों नए लोग हिंदी साहित्य से जुड़े रहे हैं, जो अपने आप में एक गर्व की बात है। मुझे पढ़ना पसंद है, लेकिन अब लिखना भी एक जुनून बन चुका है, हालांकि लेखन की यात्रा का सफर शुरू किए अधिक समय नहीं हुआ है। अभी जिंदगी के 22 बसंत ही देखे हैं, जिनमें से शुरूआती 19 बसंत विद्यालय जीवन में व्यतीत हुए हैं और अंतिम तीन वर्ष एक स्थायी रोजगार पाने के संघर्ष में, अभी संघर्ष जारी है। विद्यालय के दौर में मैं जब विद्यालय की लाइब्रेरी में रखी पुस्तकों को देखता तो यह दुनिया हमें अपनी और आकर्षित करती। उस समय में लेखन की दुनिया से अनभिज्ञ था, फिर भी किसी भी पुस्तक के कवर पर लेखक की तस्वीर देख कर मन ही मन ललचाया करता। कभी-कभी तो उस लेखक की तस्वीर के ऊपर अपनी तस्वीर रख देता था और मन ही मन प्रसन्नता का अनुभव महसूस करता था। मैंने सोचा भी नहीं था कि किसी भी पुस्तक पर मेरी भी तस्वीर होगी, लेकिन मेरा यह सपना साकार हुआ। 'सृजन फिर से' पुस्तक का सृजन करने का विचार आया और सालभर से अधिक समय के कठिन परिश्रम के बाद जून 2020 में मेरी पहली पुस्तक मेरे हाथों में आ गई।
प्र.(2.)आप किसप्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
आपका यह प्रश्न काफी अच्छा लगा हम चाहे किसी भी कार्य क्षेत्र में कार्य करें, लेकिन प्रत्येक क्षेत्र में हमारी पृष्ठभूमि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मैं गांव में पला-बढ़ा हूँ, तो समाज की समस्याओं, कुरीतियों को जमीनी स्तर से समझने का अवसर मिला। 'सृजन फिर से' पुस्तक युवा शक्ति और नारी शक्ति को केंद्र में रखकर लिखी गई है, क्योंकि कोई भी समस्या हो या समाधान उनके केंद्र में कहीं न कहीं युवा और स्त्री ही होती है। विद्यालय के दिन हो या वर्तमान जनजीवन दोनों जगह के अनुभव, समस्याओं और उनके समाधान हेतु अपने तार्किक विचारों को लोगों तक पहुंचाने हेतु पुस्तक का सृजन किया।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से प्रेरित अथवा लाभान्वित हो रहे हैं ?
उ:-
लेखन वह कार्यक्षेत्र है, जिसमें यह भी महत्वपूर्ण होता है कि हमारा कार्य समाज को नई दिशा और दशा दे रहा है या नहीं ! हम जो लिख रहे हैं, उससे लोग प्रभावित हों और आपके विचारों से अपने विचारों को जोड़ सकें। साहित्य समाज का दर्पण है- यह बात जगजाहिर है, लेकिन जब वही दर्पण धुंधला हो जाए तो उसका प्रभाव समाज और सामाजिक जीवन पर भी पड़ता है। मेरा हर प्रयास रहेगा कि साहित्य समाज को आईना दिखा सके और अपनी पहली पुस्तक में हमें काफी हद तक सफलता भी मिली है।
प्र.(4.)आपके कार्यों में जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या आपके संगठन रूबरू हुए, उनमें से कुछ बताइये ?
उ:-
रुकावटें, विपरीत परिस्थिति और उतार-चढ़ाव ही तो जीवन को जीने लायक बनाते हैं। 'सृजन फिर से' पुस्तक के अनुसार "परिस्थितियां सभी के जीवन में विपरीत आती हैं, लेकिन महत्वपूर्ण यह होता है कि हम उनका सामना किस तरह से करते हैं। हम विपरीत परिस्थितियों के सामने घुटने टेक देते हैं या उन्हें अपने सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर देते हैं।" पुस्तक प्रकाशन के समय मेरे जीवन में भी कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन खुशी यह है कि हम इन सभी को पार कर अपनी पहली पुस्तक प्रकाशित करने के सपने को साकार कर सके।
प्र.(5.)अपने कार्यक्षेत्र हेतु क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होने पड़े अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के शिकार तो न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाए ?
उ:-
डिजिटल युग की चकाचौंध में किसी कार्य को करने और उसके बारे में जानकारी इकट्ठा करने में जितनी सुगमता है, उतनी कठिनाई भी। यह हमारी समझ पर निर्भर करता है कि हम उसका विश्लेषण कर अपने गंतव्य तक कैसे पहुंचे ? अपने सभी पाठकों से यही कहूंगा कि भ्रामक तत्वों से बचें,जल्दबाजी में निर्णय ना लेकर सावधानी बरतते हुए पूरी जानकारी और कार्य योजना के साथ कार्य प्रारंभ करें। दुनिया में अच्छे लोगों के बीच ही बुरे लोग रहते हैं और बुरे लोगों के बीच में ही अच्छे लोग.... और उन सभी को समझने का कार्य हमारा है।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट हैं या उनसबों को आपके कार्य से कोई लेना देना नहीं !
उ:-
जहाँ तक इस कार्यक्षेत्र को चुनने की बात है तो यह मेरा वह सपना है, जोकि मैंने खुली आँखों से देखा। लोगों तक अपने विचारों को पहुँचाने के लिए हमने इसे चुना। पारिवारिक सहयोग के बगैर कोई भी कार्य करना कठिन है और अगर करना भी चाहें तो हमें वह सफलता नहीं मिलेगी, जिसे हम पाना चाहते हैं। मेरे परिवार और पारिवारिक सदस्यों का पूरा सहयोग मिला है। 'सृजन फिर से' पुस्तक के अनुसार "परिवार तो ऐसी जगह है, जहाँ माँ की छड़ी खड़ी है और उनकी मार में भी प्रेम संजोयी है। हमें कहीं भी जाना हो, किन्तु परिवार से प्राप्त हिदायतें, सीखे हुए मूल्य और संस्कार परछाई की तरह हमारे साथ चले ही जाते हैं।"
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं ?
उ:-
किसी भी व्यक्ति की सफलता और असफलता में जितना महत्वपूर्ण वह व्यक्ति होता है, उतना ही महत्वपूर्ण होता है उसके आसपास का परिवेश, मित्रमंडली और वह सामाजिक परिवेश जहाँ वह रहता है। हम तारीख को शुरू तो कर देते हैं, लेकिन उसे पूरा करने का हौसला और संबल हमें उन लोगों से मिलता है, जो हमारा उत्साह बढ़ाते हैं और हमें प्रेरित करते हैं। उन तमाम लोगों में से मेरे प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका शिखा गुप्ता जी जिन्होंने हमेशा मेरा हौसलाअफ़जाई की। लेखन की दुनिया में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाले मेरे अनमोल मित्र अनमोल दुबे जी जिन्होंने जरूरत पड़ने पर मेरा मार्गदर्शन किया। बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षक के रूप में सेवा देने वाले प्रिय मित्र भाई संजीव त्रिपाठी जी, संदीप चतुर्वेदी जी और अनिरुद्ध नारायण शुक्ला जी जिनके शब्दों से मुझमें नवीन ऊर्जा और प्रेम संचरित हुआ। इसके साथ ही पूरे डीएलएड परिवार के सदस्यों और मेरे संपर्क में आए हरेक व्यक्तियों का विशेष सहयोग मिला। मेरे वो पाठकबंधु जिन्होंने मुझे लेखक बनाया और इस कार्यक्षेत्र का अहसास के साथ अनुभव कराया। अपने प्रिय मित्र आकाश द्विवेदी और विपुल मिश्रा को धन्यवाद अपना बहुमूल्य समय देने के लिए।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं ?
उ:-
मैंने अपने लेखन में हर संभव प्रयास किया है कि हम अपनी भारतीय संस्कृति और सभ्यता को आगे बढ़ा सकें और लोगों को उसके मूल्यों के प्रति जागरूक करा सकें। 'सृजन फिर से' पुस्तक के अनुसार "हमारी संस्कृति और संस्कारों की रक्षा करना, उसे आगे ले जाना हमारा कर्तव्य है, जिससे हमारी भावी पीढ़ी को उसके बारे में जानने के लिए इंटरनेट का सहारा ना लेना पड़े।"
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
एक बहुत बड़ा वर्ग भ्रष्टाचार से लड़ रहा है, लेकिन अभी मेरा दायरा वैसे वर्ग से छोटा है, जो सर्वोत्तम आचरण को बढ़ावा दे रहे हैं । हम यदि एकजुट होकर लड़ेंगे तो सफलता अवश्य प्राप्त होगी, इसके लिए हमें इस भरोसे में नहीं रहना है कि समाज के लोग बदलेंगे, समाज बदलेगा या उनकी सोच बदलेगी, बल्कि इस बदलाव की शुरुआत तो हमें खुद से ही करनी होगी।
प्र.(10.)इस कार्यक्षेत्र के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे या कोई सहयोग प्राप्त हुए या नहीं ? अगर मिले, तो क्या ?
उ:-
फिलहाल तो आर्थिक सहयोग के लिए किसी भी संस्था या व्यक्ति विशेष से कोई संपर्क नहीं हुआ है, लेकिन आर्थिक सहयोग की अतिरिक्त भी कई सहयोग हैं, जो प्राप्त हुए हैं, जैसे- अपनों का सहयोग, उनका प्रेम और आशीर्वाद। इस सफर में मेरे अजीज मित्र अमन मिश्रा जैसे साथी हरतरह से मेरी मदद करने के लिए तैयार रहते हैं। बस, इसीतरह से सबका सहयोग, आशीर्वाद और स्नेह मिलता रहे, एक लेखक के रूप में इसके अतिरिक्त मुझे और क्या ही चाहिए ?
प्र.(11.)आपके कार्यक्षेत्र में कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे का सामना करना पड़ा हो !
उ:-
अगर हमारे कार्य में मौलिकता है, तो हम इन सबसे दूर रह सकते हैं। फिलहाल तो मुझे इन सबसे सामना नहीं करना पड़ा है।
प्र.(12.)कोई पुस्तक, संकलन या ड्राफ्ट्स जो इस संबंध में प्रकाशित हो तो बताएँगे ?
उ:-
समाचार पत्रों, पत्रिकाओं के साथ-साथ मेरी पहली पुस्तक 'सृजन फिर से' प्रकाशित हुई है। अन्य विषयों पर भी कार्य चल रहा है, जो कि निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया है।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
हमारे पाठकों द्वारा पुस्तक 'सृजन फिर से' के लिए जो सम्मान प्राप्त हो रही है, यही मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है। यह खुशी हमारे लिए किसी भी पुरस्कार से कम नहीं है।
प्र.(14.)कार्यक्षेत्र के इतर आप आजीविका हेतु क्या करते हैं तथा समाज और राष्ट्र को अपने कार्यक्षेत्र के प्रसंगश: क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
सम्प्रति, मैं विद्यार्थी हूँ। शिक्षक बनना मेरा सपना है। मैंने 2017 में डीएलएड प्रशिक्षण सफलतापूर्वक पूर्ण किया है। उम्मीद ही नहीं, विश्वास है कि बहुत जल्द सरकारी शिक्षक बनने का सपना पूर्ण होगा, जिससे मुझे भी देश की भावी पीढ़ी के भविष्य का सृजन करने का अवसर मिलेगा। संदेश के तौर पर मैं यही कहूंगा कि हम जो भी कार्य करें, उसमें सकारात्मक रूप से, पूरी मेहनत, ईमानदारी और निष्ठा के साथ करें तथा अपना शत-प्रतिशत देने की कोशिश करें। 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' के इस कार्य के लिए आपको शुभकामनाएं और मुझे अपने मंच पर लाने के लिए आपका हार्दिक आभार। 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' नित्य नवीन ऊंचाइयों को छुए ऐसी कामना करता हूँ।
आप हँसते रहें, मुस्कराते रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "....... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
नमस्कार दोस्तों !
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