MESSENGER OF ART

  • Home
  • About Us
  • Contact Us
  • Contribute Here
  • Home
  • इनबॉक्स इंटरव्यू
  • कहानी
  • कविता
  • समीक्षा
  • अतिथि कलम
  • फेसबुक डायरी
  • विविधा

5.17.2021

कालजयी कृति 'डिक्री के रुपये' का पोस्टमार्टम...(लघु प्रेरक समीक्षा)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     17 May     समीक्षा     No comments   

आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट की टटका कड़ी में पढ़ते हैं, उपन्यास वेंटिलेटर इश्क़ के लेखक द्वारा समीक्षित कथासम्राट प्रेमचंद की कहानी डिक्री के रुपये की शानदार समीक्षा.......


प्रेमचंद रचित कथा 'डिक्री के रुपये' !

क्या न्याय खरीदे जा सकते हैं ? पहले तो 'हाँ' और उनकी ही कथा 'पंच परमेश्वर' को लेकर बाद में 'ना' ! आज भी न्याय पाने महँगे हैं ! क्या प्रेमचंदीय युग में 20 हज़ार रुपये मामूली रकम होती थी ?

कोई कितना भी सही क्यों न हो, किन्तु जब स्वयं पर आफ़त आ जाती है, तो खुद को बचाने के लिए झूठ का सहारा लेना पड़ता है ! वकालती कार्यवाही से यही कुछ निसार आ पैठती है, तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है ? प्रस्तुत कथापात्र कैलास (कैलाश) के पास रुपये कहाँ से आए ? यह स्पष्ट नहीं हो सका है ?

जो भी ही, प्रेमचंद की कहानी 'डिक्री के रुपये' में कथापात्र नईम और कैलास को लेकर जो भी कथात्मक चरित्र-चित्रण लेखनीबद्ध हुई है, यह विवरण किसी भी पाठक को बोझिल लगेगा, क्योंकि इसतरह का परिचय मनोमस्तिष्क में टिक नहीं पाती है, एक जगह स्थिर नहीं हो पाती है कि कौन क्या है ? ....बावजूद कथा कभी बाँधती है, तो कभी मानस बुलबुले में छेड़ती भी है !

नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।
  • Share This:  
  •  Facebook
  •  Twitter
  •  Google+
  •  Stumble
  •  Digg
Newer Post Older Post Home

0 comments:

Post a Comment

Popular Posts

  • 'रॉयल टाइगर ऑफ इंडिया (RTI) : प्रो. सदानंद पॉल'
  • 'महात्मा का जन्म 2 अक्टूबर नहीं है, तो 13 सितंबर या 16 अगस्त है : अद्भुत प्रश्न ?'
  • "अब नहीं रहेगा 'अभाज्य संख्या' का आतंक"
  • "इस बार के इनबॉक्स इंटरव्यू में मिलिये बहुमुखी प्रतिभाशाली 'शशि पुरवार' से"
  • 'बाकी बच गया अण्डा : मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट'
  • "प्यार करके भी ज़िन्दगी ऊब गई" (कविताओं की श्रृंखला)
  • 'जहां सोच, वहां शौचालय'
  • "शहीदों की पत्नी कभी विधवा नहीं होती !"
  • 'कोरों के काजल में...'
  • "समाजसेवा के लिए क्या उम्र और क्या लड़की होना ? फिर लोगों का क्या, उनका तो काम ही है, फब्तियाँ कसना !' मासिक 'इनबॉक्स इंटरव्यू' में रूबरू होइए कम उम्र की 'सोशल एक्टिविस्ट' सुश्री ज्योति आनंद से"
Powered by Blogger.

Copyright © MESSENGER OF ART