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4.22.2021

कालजयी कृति 'शोक का पुरस्कार' का पोस्टमार्टम...(लघु प्रेरक समीक्षा)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     22 April     समीक्षा     No comments   

आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, उपन्यास वेंटिलेटर इश्क़ के लेखक द्वारा समीक्षित कथासम्राट प्रेमचंद की कहानी शोक का पुरस्कार की अद्वितीय समीक्षा.......


प्रेमचंद रचित कहानी 'शोक का पुरस्कार' के समय ऐसी व्यवस्था थी कि शादी होने के बाद भी पत्नी का चेहरा न देखा जा सके ? शादी करके भी पति तरसे ! तब इसप्रकार की नाबालिग शादी के क्या फायदे ?

कथाविन्यास को लेकर चलूँ, तो अभी जब 21वीं सदी में कोरोना इतनी ताकतवर हैं कि उस जमाने में फैले हैज़ा की क्या बिसात ? कुछ ही क्षणों में व्यक्ति को लील ले ! तब भी भयावह और आज भी ! सिर्फ बीमारी अथवा वायरस का नाम अलग हो चुका है ! प्रस्तुत कथा में कई चीजें अलहदा है, जिसे सुव्यवस्थित नहीं किया जा सका है !

जो भी हो, प्रस्तुत कथा में खेद वाली रुकावटें होने के बावजूद बांधती जरूर है, किन्तु यह नहीं बता पाती है कि इतने दिनों तक साथ रहने के बाद भी कोई पात्र किसी अन्य पात्र को क्यों नहीं पहचान पाते हैं, तो वहीं 250 शब्दों से अधिक पढ़ने की यात्रा तय करने के बाद ही कथा की वास्तविक सच्चाई समझ में आने लगती है !

नमस्कार दोस्तों ! 


'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।

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