आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट के आज की कड़ी में पढ़ते हैं, उपन्यास वेंटिलेटर इश्क़ के लेखक द्वारा समीक्षित कथासम्राट प्रेमचंद की कहानी पूस की रात की अद्वितीय समीक्षा.......
क्या प्रेमचंद के ग्रामीण पात्र गालियाँ नहीं बकते ? ग्रामीण क्षेत्रों में छोटी-छोटी बातों पर ही लोग गुस्से में आ जाते हैं और स्टाइलिस्ट गालियों की बौछारें छोड़ देते हैं, पर वहीं कहानी 'पूस की रात' में 'हल्कू' के जीवन में त्रासदी हो गयी और वे सामाजिक ताने एवं गालियों को खुशी-खुशी ग्रहण कर सहनशक्ति का इतिहास रच दिए, जैसे 'सहना' के बारे में उनके मन में जो विचार आए ! अगर ग्रामीण भाषा में लिखना साहित्य है, तो फिर गालियाँ भी तो ग्रामीण लोग 'सभ्य' होकर इस्तेमाल करते हैं, ये कथित सभ्य गालियाँ भी साहित्य का मजबूत विन्यास है।
जो भी हो, पर 'पूस की रात' जहाँ पशु प्रेम पर आधारित सामाजिक सत्य है, तो वहीं प्रेमचंद इस कथा में यह वर्णित नहीं कर पाये कि खेती भूमि की कितनी भाग में हुई ? कितनी नीलगायों ने फसलों को क्षति पहुंचाई और ईख की खेती क्या उस सीजन में होती भी है ?
काश ! प्रेमचंद यह भी बता पाते और यह लिख पाते कि 8 चिलम पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, पर आज के युग में कोई 'जबरा' ऐसी हालत में मिल जाय, तो कई सामाजिक संगठन 'पोस्टर मार्च' जरूर निकाल देंगे !
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