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2.22.2021

कालजयी कृति 'घर जमाई' का पोस्टमार्टम...(लघु प्रेरक समीक्षा)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     22 February     समीक्षा     No comments   

आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट की ताजा कड़ी में पढ़ते हैं, उपन्यास वेंटिलेटर इश्क़ के लेखक द्वारा समीक्षित कथासम्राट प्रेमचंद की कहानी घर जमाई की लघु प्रेरक समीक्षा.......

मैसेंजर ऑफ आर्ट

10 सालों में ही घर जमाई की इज्ज़त क्यों घट गई ? क्यों पति से पत्नी प्रेमबोल कहना भूल गयी ? अगर इसका कारण पत्नी का बालपन है, न-न-न बालमन है तो फिर 25 वर्षीय पति में यह बालपन या बालमन नहीं रहकर उसकी जगह गम्भीरता ने ओढ़ लिया ? अगर मान लूँ, उस जमाने में पुरुष ज्यादा गंभीर होते थे, तो फिर प्रेमचंद की अन्य कहानियों में कई-कई महिला पात्र इतनी गम्भीर कैसे और क्यों हो गयी ? अगर उस समय बाल विवाह होती थी, तो शादी के 10 साल बाद एक गणितीय आकलन लिए 'गुमानी' की उम्र को अभी के समयानुसार बालिग मान भी लूँ, तो क्या यही मान बैठूँ कि कथा सम्राट की लेखनी 'माँ' और 'पत्नी' के अंतर को सामाजिक परिवेश नहीं दे पाए ? क्या रिश्ते से बड़े-बड़बोले रुपये हो गए ?

....ऐसे कई सवाल उमड़-घुमड़ रहे हैं, जब से प्रेमचंद की कहानी 'घर जमाई' को नयनतारी की है, परंतु उनकी लेखनी ने इन सभी सवालों का जवाब नहीं दे पाए हैं अथवा अगर दे भी पाएँ हैं तो सिर्फ सवालों के माध्यम से ! सारांशत: कहना यही है कि सवाल का जवाब अगर सवाल ही है तो फिर लिखने का क्या मतलब ? पर हाँ, इसके बावजूद कहानी भावनात्मक 'ब्लैकमेल' करती नजर आती है !

नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय।
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