वर्ष 2020 अवसान पर है, 2020 ने कई परिजनों और प्रियजनों को हमसे छीन लिया, बावजूद यह वर्ष हमें कई सीख देकर विदा रहा है । हम मित्रो से दूर रहकर भी खुद से खुद के लिए जीना सीख लिया । यह दिसंबर माह कई जन्मदिवसों का गवाह भी रहा है, यथा- प्रभु यीशु मसीह, भारतरत्न मदन मोहन मालवीय और अटल बिहारी वाजपेयी, चौधरी चरण सिंह, वैज्ञानिक न्यूटन, गणितज्ञ रामानुजन, साहित्यकार बेनीपुरी, संगीतकार नौशाद, गायक मो. रफी इत्यादि। 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' दिसंबर 2020 के 'इनबॉक्स इंटरव्यू' के लिए हिंदी भाषा और साहित्य के चर्चित लेखक श्रीमान चमन सिंह का चयन किया है। आइये, हम उनसे रूबरू होते हैं । बहरहाल, उनके शब्दों में-- "मेरा नाम चमन सिंह है और मैं मध्यमवर्गीय परिवार से संबंधित हूँ। हम उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के छोटे से गाँव बरवारा से हैं। पिता जी आर्मी में रहते हुए देश की सेवा कर चुके हैं, जो कि अब रिटायर्ड हैं और अभी वर्तमान में बड़े भैया सेना में हैं । मेरी माता जी गृहिणी हैं। मेरी शिक्षा बी.टेक. (मेकैनिकल) है और वर्तमान में 'इंजीनियर' हूँ । लेखनकार्य के सहारे हिंदी की सेवा कर रहा हूँ।" लेखक श्री चमन सिंह को भविष्यार्थ शुभकामना है, साथ ही 'मैसेंजर ऑफ आर्ट' के सुधि पाठकों, समीक्षकों, कवि-लेखकों को नूतन वर्ष 2021 की शुभमंगलकामनाएँ....
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लेखक चमन सिंह |
प्र.(1.)आपके कार्यों/अवदानों को सोशल/प्रिंट मीडिया से जाना। इन कार्यों अथवा कार्यक्षेत्र के बारे में बताइये ?
उ:-
मैं अपने लेखनकार्य को कक्षा छह से ही कर रहा हूँ, मगर इसको सही रूप में कॉलेज आने के बाद ही दे पाया और साथ ही मुझे उस प्लेटफॉर्म पर आने में मीडिया, पत्रिकाओं व साथ ही फेसबुक और आपके जैसे प्लेटफॉर्म का बहुत ही योगदान रहा हैं।
प्र.(2.)आप किसप्रकार के पृष्ठभूमि से आए हैं ? बतायें कि यह आपके इन उपलब्धियों तक लाने में किस प्रकार के मार्गदर्शक बन पाये हैं ?
उ:-
लेखन के क्षेत्र में आने में सबसे अच्छा योगदान हमारे उत्तर प्रदेश बोर्ड का भी रहा है, जहाँ हम अंग्रेज़ी विषय को छोड़कर बाकी सारे विषय हिंदी में ही पढ़ते हैं और वहीं से हिंदी में पकड़ मजबूत हो जाती है ।
प्र.(3.)आपका जो कार्यक्षेत्र है, इनसे आमलोग किसतरह से प्रेरित अथवा लाभान्वित हो रहे हैं ?
उ:-
हमारे कार्यक्षेत्र से सबसे बड़ा जो फर्क पड़ता है, वह है- हमारी सभ्यता और संस्कृति, क्योंकि जिस प्रकार से अब देश में अंग्रेज़ी सभ्यता का आगाज़ होने लगा है, वहीं हमारी हिंदी भाषा विलुप्त होती जा रही है, वहाँ पर हमारा ये कार्य आम लोगों को ये हिम्मत देता हैं कि हिंदी हमारी आन-बान और शान है, जो अभी भी बरकरार है और हमेशा रहेगी।
प्र.(4.)आपके कार्यों में जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या आपके संगठन रूबरू हुए, उनमें से कुछ बताइये ?
उ:-
बाधाएं तो जीवन का हिस्सा है और जब हम कुछ अच्छा कर्म करने जाते हैं, तो बाधाएं आना स्वाभाविक है ! बाधाएं तब आती है,जब आज की पीढ़ी हिंदी पढ़ना तो दूर बोलना भी पसंद नहीं करती, मगर एक उम्र के बाद लोगों को एहसास जरूर होता है कि अपनापन तो अपनी भाषा में ही है।
प्र.(5.)अपने कार्यक्षेत्र हेतु क्या आपको आर्थिक दिक्कतों से दो-चार होने पड़े अथवा आर्थिक दिग्भ्रमित के शिकार तो न हुए ? अगर हाँ, तो इनसे पार कैसे पाए ?
उ:-
जब मुझे अपनी पहली किताब प्रकाशित करवानी थी, तब प्रकाशक ने ₹9,000 की मांग की थी, उस वक्त मैं कॉलेज में पढ़ता था और नौ हजार रुपए घरवालों से मांगना, वो भी किताब प्रकाशित करवाने के लिए और जब घर पर पहले ही आर्थिक तंगी चल रही हो, यह मेरे लिए बड़ी घटना थी, तब मैंने दो-तीन महीने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर रुपए जुटाए थे।
प्र.(6.)आपने यही क्षेत्र क्यों चुना ? आपके पारिवारिक सदस्य क्या इस कार्य से संतुष्ट हैं या उनसबों को आपके कार्य से कोई लेना देना नहीं !
उ:-
यह क्षेत्र मेरा सपना है और सपना तब और मजबूत हो जाता है, जब माँ और पिताजी की सहमति हो और सही मायने में शुरू में जब तक किताब प्रकाशित नहीं हुई थी, तब तक घर वालों को जानकारी थी भी नहीं, मगर किताब प्रकाशित होने के बाद घरवालों से पूरा सहयोग मिल रहा है ।
प्र.(7.)आपके इस विस्तृत-फलकीय कार्य के सहयोगी कौन-कौन हैं?
उ:-
मेरे इस कार्य के सहयोगी मेरे माता-पिता, बड़े भैया और गुरुजन रहे हैं और आज भी हैं।
प्र.(8.)आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं ?
उ:-
जैसा कि मैंने पहले भी बताया कि हमारे इस लेखनकार्य से भारतीय संस्कृति पर सबसे ज्यादा फर्क पड़ता है, क्योंकि हमारी हिंदी भाषा में सम्मान के लिए 'आप' शब्द बनाया गया है, जो कि अंग्रेज़ी में आप और तुम के लिए एक ही शब्द "यू " है और अगर दोनों की भावनाओं में जायेंगे, तो आपको समझ में आयेगा कि हमारी भाषा सभ्यता और संस्कृति दोनों को जन्म देती है।
प्र.(9.)भ्रष्टाचारमुक्त समाज और राष्ट्र बनाने में आप और आपके कार्य कितने कारगर साबित हो सकते हैं !
उ:-
हम कोशिश करते हैं कि अपने लेखों के माध्यम से इस समाज़ मे फैल रही विकृतियाँ, यथा-- गरीबी और भ्रष्टाचार को समाज़ से बहुत दूर ले जाए और उन लेखों के माध्यम से हम लोगों के दिल और दिमाग पर एक सही आचरण का प्रवाह करते हैं, जिससे असभ्य विचारों का प्रवाह रुक सके और सभ्य समाज़ का निर्माण हो सके !
प्र.(10.)इस कार्यक्षेत्र के लिए आपको कभी आर्थिक मुरब्बे या कोई सहयोग प्राप्त हुए या नहीं ? अगर मिले, तो क्या ?
उ:-
जी, ईमानदारी से अगर बताऊँ तो आर्थिक सहयोग कहीं से नहीं मिला है और न ही मिलना चाहिए, क्योंकि लेखों पर भावनाओं का अधिकार होता है और भावनाएं अगर आर्थिक रूप में बिक जाएं, मेरे या किसी के लिखने का कोई फायदा नहीं है, ये मेरी स्वयं की सोच है। ये ज़रूर बताना चाहूंगा कि जो किताबें अमेज़न या फ्लिपकार्ट जैसे प्लेटफॉर्म पर बिक रही हैं, वहाँ से ज़रूर सहयोग राशि आ जाती है, बाकी किसी पत्रिका या समाचार पत्र में लिखने के लिए अपनी तरफ से कभी भी आर्थिक डिमांड नहीं की।
प्र.(11.)आपके कार्यक्षेत्र में कोई दोष या विसंगतियाँ, जिनसे आपको कभी धोखा, केस या मुकद्दमे का सामना करना पड़ा हो !
उ:-
ऐसा हुआ नहीं कि इस कार्यक्षेत्र में कोई दोष या विसंगतियाँ आई हों, जिनसे हमें कभी धोखा, केस या मुकद्दमे का सामना करना पड़ा हो, क्योकि ये क्षेत्र है ही साफ़ दिल से अल्फाज़ों को बयां करने वालों का और जहाँ दिल साफ़ होते हैं, वहाँ धोखा या दोष जैसी विकृतियाँ आ ही नहीं सकती !
प्र.(12.)कोई पुस्तक, संकलन या ड्राफ्ट्स जो इस संबंध में प्रकाशित हो तो बताएँगे ?
उ:-
अब तक के लेखनक्षेत्र में खुद की चार किताबें प्रकाशित हैं- जिंदगी एक एहसास, उड़ता परिंदा, इश्क़ और तुम, कलम की रात । ये चार किताबें हैं, जो मेरी स्वयं की हैं, इनके अलावा बहुत से अन्य सामूहिक काव्य संकलनो में सहयोगी रहा हूँ।
प्र.(13.)इस कार्यक्षेत्र के माध्यम से आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, बताएँगे ?
उ:-
इस कार्य क्षेत्र के माध्यम से सबसे पहले मुझे "सर श्री " नामक सम्मान मिला था और उसके पश्चात माननीय केंद्रीय मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर जी द्वारा मेरी एक किताब का विमोचन हुआ, साथ ही पत्रकारिता के विशेष दिग्गज़ों द्वारा किताब का विमोचन किया गया, साथ ही कुछ वक्त पहले इस दुनिया को छोड़ कर जाने वाले अज़ीज़ शायर डॉ. राहत इंदौरी साहब से भी आशीर्वाद प्राप्त हुआ है।
प्र.(14.)कार्यक्षेत्र के इतर आप आजीविका हेतु क्या करते हैं तथा समाज और राष्ट्र को अपने कार्यक्षेत्र के प्रसंगश: क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
उ:-
अपने कार्यक्षेत्र के इतर आजीविका हेतु मैं 'मेकैनिकल इंजीनियर' हूँ, जहाँ से जीवनयापन चल जाता है । समाज़ और राष्ट्र को अपने कार्यक्षेत्र के माध्यम से यही संदेश देना चाहूँगा कि आप कोई भी कार्य करें, मगर उद्देश्य यही होना चाहिए कि उस कार्य से समाज़ की सभ्यता और संस्कृति में कोई भी हानि न हो, वरना उसी सभ्यता और संस्कृति में हमारे बाद की पीढ़ी रहेगी और जो परिणाम आयेगा, उस पीढ़ी में वो उसी सभ्यता और संस्कृति से आयेगा, जो हमने अपने संस्कारों से निर्माण किया होगा।
आप यूँ ही हँसते रहें, मुस्कराते रहें, स्वस्थ रहें, सानन्द रहें "..... 'मैसेंजर ऑफ ऑर्ट' की ओर से सहस्रशः शुभ मंगलकामनाएँ !
नमस्कार दोस्तों !
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