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11.10.2020

'यह सुबह की हवा चल रही है, साहब...' (कविता)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     10 November     कविता     No comments   

आइये मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं श्रीमान अमित गुप्ता जी की वर्त्तमान परिदृश्य लिखी हुई दिलमयी रचना...

श्रीमान अमित गुप्ता

यह सुबह की हवा चल रही है 
साहब !
सेहद के लिए फायदेमंद भी है
और नाजुक होने पर
हानिकारक भी,
क्योंकि गाँव के सभी 
मुहल्ले के लोग 
टहलने जाते हैं
ताकि पूरी दिनचर्या
सार्थक और अनुकूल बन सके
ये सुबह की हवा चल रही है 
साहब !

कब कहाँ से यह ठंडी
हवा मुड़ जाएगी
यह किसी को पता नहीं
यह मौसम का प्रतिरूप है 
साहब ! 
पुनः मेरे गाँव से पाँच किलोमीटर की दूरी पर 
राजातालाब जक्शन से
गुजराती हुई वह मालगाड़ी
अपनी तेज रप्तार व गति से
इंजन और बोगी के साथ
निरंतर चलती रहती है, सिलीगुड़ी तक
इस लिए सुबह की हवा चल रही है
साहब !

कितने यात्रीगण ऐसे भी है
पलती पेट के लिए 
इलाहाबाद के पथ पर निकल जाते हैं
अपनी परिवार व बाल बच्चों के लिए 
दो वक्त की रोटी इंतजार रहती है
कभी-कभी वह राहें अनजान बन जाती
यह सुबह की हवा चल रही है
साहब !


नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।


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