आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं, बिहार के युवा लेखक व कवि श्रीमान अभिलाष कुमार द्वारा रचित कविता ! यह रचना लॉकडाउन के दौरान विद्यार्थियों के साथ हुए दर्द की व्याख्या कर जाती है......
फ़ोटो साभार : गूगल |
मैं एक लड़का,
कुसंगति का मारा
Lockdown से हुआ प्रभावित
सभी दोस्तों ने छोड़ा साथ
हुआ तो अच्छा ही
खैनी-गुटखा खाने वाले लौंडों से था सम्पर्क हमारा
लेकिन मैंने कभी इसे चखा नहीं
इसलिए उन लौंडों से मेरा कभी पटा नहीं
न मुझे वे करते हैं कॉल,
पर खुद जाते हैं वे
अपनी प्रियसी साथ shopping मॉल
न ही करते हैं text,
इसलिए मैं अब करता हूँ दिन भर rest
अभी भी मेरे साथ है एक किताब,
कब का खत्म कर लिया हूँ इसे
इसलिए अब कैसा करूँ
उससे बर्ताव
ज़िन्दगी अकेले-अकेले हो रही है बेकार,
लेकिन कह गए हैं निदा फ़ाज़ली
किताबों को हटाओ,
और देखो दुनिया कैसी है तुम्हारी
माँ-बाप भी एक सपना है दिखाएं
कहते हैं तुम पर है हमारे संस्कारों का साया
पढ़ो जी-जान से,
बनो कलक्टर और कर दो समाज के दुश्मनों का सफाया
लेकिन अब हमसे अकेले पढ़ाई होती नहीं,
उम्र भी कम है नौकरी कहीं लगती नहीं
शक्कल भी खराब है,
इसलिए कोई प्रियसी भी पटती नहीं
इत्ती सी उमड़ में,
मिल गया है परिवार का इत्ता बोझ
कि टेढ़ी हो गयी गर्दन-रीढ़,
लाख कोशिश के बावजूद हो नहीं रहा सोझ
अब अकेलापन सहन नहीं होता हमसे
बात भी नहीं हो पा रही खुद से
तनाव का शिकार हुए जा रहे
इस lockdown में बिल्कुल हो गए हैं अकेले हम।
नमस्कार दोस्तों !
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