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10.22.2020

'अपना ही गुरुर...' (कविता)

 मैसेंजर ऑफ ऑर्ट     22 October     कविता     No comments   

आदरणीय पाठकगण !

आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट के प्रस्तुतांक में पढ़ते और समझते हैं, ज़िंदगी की हक़ीक़त को कवि रोहित सुकुमार जी की कविता के माध्यम से......

कवि रोहित सुकुमार


अपना ही गुरुर 

अनसुनी करने लग जाता है
जब अपनी ही बातें,
धिक्कारती है
एक-एक रूह
सिसकियां भरती है 
हर एक साँस
काटने दौड़ता है
सेकण्ड का काँटा
और-
महसूस होती है घुटन 
पल-पल
इन सबको दबाये भी
जब इंसान में
चल रही होती हैं
आवाजाही साँसों की,
तब मरे होने
और मरे जैसे होने का
हो जाता है अन्तर खत्म
क्योंकि-
घर की बात घर में ही रखने
वाली सीख दे दी जाती है
हमें जन्मघुट्टी में ही !

नमस्कार दोस्तों ! 

'मैसेंजर ऑफ़ ऑर्ट' में आप भी अवैतनिक रूप से लेखकीय सहायता कर सकते हैं । इनके लिए सिर्फ आप अपना या हितचिंतक Email से भेजिए स्वलिखित "मज़ेदार / लच्छेदार कहानी / कविता / काव्याणु / समीक्षा / आलेख / इनबॉक्स-इंटरव्यू इत्यादि"हमें  Email -messengerofart94@gmail.com पर भेज देने की सादर कृपा की जाय ।


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