आदरणीय पाठकगण, आइये मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं श्रीमान सुधीर मौर्य की जानदार कविता....
कुछ पुरानी किताबो में
अब भी रखे हैं प्रेम पत्र
रंग-बिरंगी स्याही से लिक्खे
कुछ इत्र में
तो कुछ आंसुओं में डूबे हुए
पुरानी अलमारी में
अब रक्खी है वो किताबें
जिनमें रक्खे तुम्हारे प्रेम पत्रो की वजह से
कभी सीलन नहीं लगती
मैं टटोल कर किताबों के पन्ने
ढूंढ कर पढ़ लेता हूँ
रोज एक प्रेम पत्र
और दमक उठता है मेरा चेहरा
ठीक उस रोज की तरह
जब तुम्हारी कोई सहेली
मुझे दे जाती थी
तुम्हारा प्रेम पत्र।
नमस्कार दोस्तों !
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