प्रेम पर कई किताबें लिखी गयी हैं, जिसमें अलग-अलग लेखकों ने भिन्न-भिन्न राय रखे हैं ! आइये, मैसेंजर ऑफ आर्ट में पढ़ते हैं श्रीमान चमन सिंह की प्रेम पर लिखी हुई अद्वितीय लघु आलेख...
प्रेम का दायरा हमने अब इतना छोटा कर दिया है कि वो हमारी सोच को भी छोटा किये दे रहा है, कभी प्राचीन फ़िल्मों को देखिये- मोहब्बत तो आँखों ही आँखों से ज़ाहिर हो जाती थी और प्रेम कहानी अमर भी हो जाती थी, अगर आप देखना चाहें तो बहुत सी प्राचीन फ़िल्में हैं और आज का दौर यह है कि मोहब्बत तो कहीं दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती। जिस्मों के आलिंगन को ही प्रेम, मोहब्बत, इश्क़ की परिभाषा दे दी गयी है, अपितु प्राचीन समय मे आँखों के इशारे, छोटी सी मुस्कान, कंधे पर सिर रख कर आँसू बहा लेना, ये सब प्रेम के प्रतीक हुआ करते थे... अब तो बिल्कुल ही प्रेम की परिभाषा को परिवर्तित कर दिया है और शायद इसीलिए अब प्रेम बचा भी नहीं है, क्योंकि प्रेम का दायरा अब जिस्म तय करता है....!
नमस्कार दोस्तों !
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